हाथरस मामला: ईडी ने भीम आर्मी-पीएफआई में संबंध और सौ करोड़ की फंडिंग के दावे को ख़ारिज किया

हाथरस गैंगरेप को लेकर विरोध-प्रदर्शन करने के लिए पीएफआई द्वारा फंडिंग किए जाने के दावे किए गए थे. एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार ईडी ने कहा है कि संगठन द्वारा 100 करोड़ रुपये की फंडिंग किए जाने की बात सच नहीं है.

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हाथरस पीड़िता के परिवार के साथ भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर आजाद. (फोटो: स्पेशल अरेंजमेंट)

हाथरस गैंगरेप को लेकर विरोध-प्रदर्शन करने के लिए पीएफआई द्वारा फंडिंग किए जाने के दावे किए गए थे. एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार ईडी ने कहा है कि संगठन द्वारा 100 करोड़ रुपये की फंडिंग किए जाने की बात सच नहीं है.

हाथरस पीड़िता के परिवार के साथ भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर आजाद. (फोटो: स्पेशल अरेंजमेंट)
हाथरस पीड़िता के परिवार के साथ भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर आजाद. (फोटो: स्पेशल अरेंजमेंट)

नई दिल्ली: प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने भीम आर्मी और पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) में कोई संबंध होने से इनकार कर दिया है.

इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार, उसने यह भी कहा कि हाथरस गैंगरेप को लेकर विरोध प्रदर्शन करवाने के लिए 100 करोड़ की फंडिंग सामने आने की बात भी झूठ है.

बता दें कि बीते दिनों कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में यह दावा किया गया था कि ईडी को पीएफआई से जुड़े एकाउंट में सौ करोड़ रुपये डाले जाने की बात मालूम चली है, इसमें से पचास करोड़ मॉरीशस से आए हैं और अब एजेंसी इसके स्रोत और उद्देश्य की जांच कर रही है.

ज्ञात हो कि पीएफआई एक मुस्लिम संगठन है जिसे कट्टरपंथी माना जाता है. इसके अधिकतर कार्यकर्ता केरल और कर्नाटक में मौजूद हैं और यह लगातार उत्तर प्रदेश सरकार के निशाने पर है.

इससे पहले उत्तर प्रदेश सरकार ने नागरिकता (संशोधन) कानून विरोधी प्रदर्शनकारियों और पीएफआई की फंडिंग के बीच संबंध साबित करने का प्रयास किया था.

अब ईडी का यह स्पष्टीकरण उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर आजाद व अन्य के खिलाफ एफआईआर दर्ज किए जाने के बाद आया है.

आजाद पर यह एफआईआर तब दर्ज की गई थी, जब वे हाथरस में बर्बर मारपीट और कथित गैंगरेप का शिकार हुई 19 वर्षीय दलित पीड़िता के परिवार से मिलने उनके घर गए थे.

इंडिया टुडे के अनुसार, उत्तर प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक बृजलाल ने दावा किया था कि भीम आर्मी और अन्य संगठन परिवार को बहलाने-फुसलाने का प्रयास कर रहे हैं.

बृजलाल उत्तर प्रदेश अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष भी रह चुके हैं. उन्होंने यह भी दावा किया था कि पीएफआई और इससे संबद्ध कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया हाथरस मामले को लेकर हो रहे प्रदर्शनों में सक्रिय थे और दंगा भड़काने के लिए इन्होने सौ करोड़ रुपये दिए थे.

बृजलाल ने दावा किया, ‘मामले में एक नया मोड़ तब आया जब भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर अपने समर्थकों के साथ महिला को देखने अस्पताल में गए. पहले से ही तनावग्रस्त परिवार अलग-अलग सुझाव देने वालों के चलते उलझन में पड़ गया है और अब वे सीबीआई जांच और नार्को/पॉलीग्राफ टेस्ट से बच रहे हैं.’

हालांकि, आरोपियों के बजाय पीड़िता के परिवार का नार्को टेस्ट कराने के उत्तर प्रदेश सरकार के फैसले की चौतरफा आलोचना हुई है.

इस बीच, परिवार ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक याचिका दायर कर आरोप लगाया है कि कथित तौर पर पुलिस उन्हें उनके घर में कैद करके रख रही है और किसी से भी मिलने से रोक रही है.

वहीं, पुलिस ने हाथरस जा रहे केरल के पत्रकार सिद्दिक कप्पन सहित तीन अन्य लोगों को रास्ते में गिरफ्तार कर लिया था और कहा था कि वे पीएफआई के सदस्य हैं. उन चारों पर राजद्रोह और यूएपीए के तहत मामला दर्ज किया गया है.

आरोप है कि उत्तर प्रदेश के हाथरस ज़िले में 14 सितंबर को सवर्ण जाति के चार युवकों ने 19 साल की दलित युवती के साथ बर्बरतापूर्वक मारपीट करने के साथ कथित बलात्कार किया था.

अलीगढ़ के एक अस्पताल में इलाज के बाद उन्हें दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहां 29 सितंबर को उन्होंने दम तोड़ दिया था.

इसके बाद परिजनों ने पुलिस पर उनकी सहमति के बिना आननफानन में युवती का अंतिम संस्कार करने का आरोप लगाया, जिससे पुलिस ने इनकार किया था.

युवती के भाई की शिकायत के आधार पर चार आरोपियों- संदीप (20), उसके चाचा रवि (35) और दोस्त लवकुश (23) तथा रामू (26) को गिरफ्तार किया गया है.

युवती की मौत के बाद विशेष रूप से जल्दबाजी में किए गए अंतिम संस्कार के मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने स्वत: संज्ञान लेते हुए राज्य सरकार को नोटिस जारी किया है.

राष्ट्रीय महिला आयोग (एनसीडब्ल्यू) ने उत्तर प्रदेश पुलिस से जल्दबाजी में अंतिम संस्कार किए जाने पर जवाब मांगा है.

मुख्‍यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हाथरस की घटना की जांच के लिए एसआईटी टीम गठित की थी. एसआईटी की रिपोर्ट मिलने के बाद लापरवाही और ढिलाई बरतने के आरोप में दो अक्टूबर को पुलिस अधीक्षक (एसपी) विक्रांत वीर, क्षेत्राधिकारी (सर्किल ऑफिसर) राम शब्‍द, इंस्पेक्टर दिनेश मीणा, सब इंस्पेक्टर जगवीर सिंह, हेड कॉन्स्टेबल महेश पाल को निलंबित कर दिया गया था.

हालांकि, तीन अक्टूबर को मामले की जांच सीबीआई को सौंपे जाने की मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की घोषणा के बाद एक हफ्ते बाद भी मामला सीबीआई को नहीं सौपा जा सका है. जबकि एसआईटी को जांच करने के लिए 10 दिन का और समय दे दिया गया है.