तीन कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ किसानों के विरोध प्रदर्शन को देखते हुए केंद्र सरकार ने पंजाब में प्रदर्शनकारी किसान संगठनों को बातचीत के लिए 14 अक्टूबर को दिल्ली बुलाया है.
नई दिल्ली: हाल में बनाए गए तीन विवादित कृषि कानूनों की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर उसकी प्रतिक्रिया मांगी है.
सीजेआई एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने केंद्र से चार हफ्तों के अंदर नोटिस पर जवाब मांगा है. पीठ में जस्टिस एएस बोपन्ना और वी. रामासुब्रमण्यन भी शामिल हैं.
पीठ राष्ट्रीय जनता दल के राज्यसभा सदस्य मनोज झा, केरल से कांग्रेस के लोकसभा सांसद टीएन प्रतापन और तमिलनाडु से द्रमुक के राज्यसभा सदस्य तिरुचि शिवा और राकेश वैष्णव की तरफ से दायर याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी.
याचिकाओं में आरोप लगाया गया कि है कि संसद द्वारा पारित कृषि कानून किसानों को कृषि उत्पादों का उचित मूल्य सुनिश्चित कराने के लिए बनाई गई कृषि उपज मंडी समिति व्यवस्था को खत्म कर देंगे.
तीन कानूनों- कृषक (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा करार अधिनियम 2020, कृषक उत्पाद व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सरलीकरण) अधिनियम 2020 और आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम 2020, राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की मंजूरी मिलने के बाद 27 सितंबर को प्रभावी हुए थे.
संसद के मानसून सत्र में पेश होने के साथ ही इन तीन कृषि कानूनों का देशभर के किसानों ने विरोध करना शुरू कर दिया. इनका सबसे अधिक विरोध पंजाब और हरियाणा में देखने को मिल रहा है.
इसे देखते हुए केंद्र सरकार ने पंजाब में प्रदर्शनकारी किसान संगठनों को 14 अक्टूबर में दिल्ली में बातचीत का न्योता दिया है. रिपोर्ट के अनुसार, पिछले पांच दिनों में केंद्र सरकार द्वारा प्रदर्शनकारी किसानों को भेजा गया यह दूसरा पत्र है.
पत्र 30 में से 29 प्रदर्शनकारी किसान संगठनों को भेजा गया है, जिसे कृषि सहयोग एवं किसान कल्याण विभाग के सचिव संजय अग्रवाल ने लिखा है.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, 10 अक्टूबर के पत्र में अग्रवाल ने लिखा, ‘कृपया इन विषयों पर चर्चा करने के लिए 14 अक्टूबर, 2020 को सुबह 11:30 बजे रूम नंबर 142, कृषि मंत्रालय, नई दिल्ली में भाग लें.’
हालांकि, फिलहाल किसान संगठनों ने बैठक में शामिल होने पर कोई फैसला नहीं किया है.
किसान संगठनों ने पिछले सप्ताह केंद्रीय कृषि विभाग द्वारा 8 अक्टूबर को उनकी चिंताओं को दूर करने के लिए आयाजित सम्मेलन में भाग लेने के निमंत्रण को अस्वीकार कर दिया था.
इन संगठनों ने कृषि कानूनों के खिलाफ अपने प्रदर्शन के तहत पंजाब में रेल यातायात को बाधित किया है जिससे ताप विद्युत संयंत्रों के लिए कोयले की आपूर्ति बुरी तरह प्रभावित हुई है.
भारतीय किसान यूनियन (दकौंदा) के महासचिव जगमोहन सिंह ने कहा, ‘हमें 14 अक्टूबर को एक बैठक का निमंत्रण मिला है.’
उन्होंने कहा, ‘कृषि सचिव की ओर से निमंत्रण आया है, जिसमें कहा गया है कि केंद्र सरकार किसानों से बात करना चाहती है. जालंधर में 13 अक्टूबर को होने वाली बैठक में सभी किसान संगठन तय करेंगे कि वार्ता के लिए दिल्ली जाना है या नहीं.’
पंजाब में किसानों की मांग है कि इन तीनों कानूनों को निरस्त किया जाए. प्रदर्शनकारी नए कानूनों को ‘किसान विरोधी’ बताते हुए इनके खिलाफ 24 सितंबर से राज्य के विभिन्न स्थानों पर रेलवे पटरियों पर ‘रेल रोको’ आंदोलन कर रहे हैं.
किसानों ने आशंका व्यक्त की है कि नए कानून न्यूनतम समर्थन मूल्य तंत्र को नष्ट कर देंगे, कृषि उपज बाजार समितियों को समाप्त कर देंगे और यह क्षेत्र कॉरपोरेट के नियंत्रण में चला जाएगा.
सरकार हालांकि कह रही है कि इन कानूनों से किसानों की आय बढ़ेगी, उन्हें बिचौलियों के चंगुल से मुक्ति मिलेगी और खेती में नई तकनीक की शुरुआत होगी.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)