आंध्र प्रदेश: वाईएसआर कांग्रेस नेताओं की जजों पर टिप्पणी पर कोर्ट ने दिए सीबीआई जांच के आदेश

वाईएसआर कांग्रेस के नेताओं द्वारा सोशल मीडिया पर न्यायपालिका पर की गईं टिप्पणियों की सीबीआई जांच का आदेश देते हुए आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा कि अप्रैल से ही उच्च पदों पर बैठे लोगों द्वारा जजों के ख़िलाफ़ अपमानजनक टिप्पणियां की जा रही हैं. यह दर्शाता है कि न्यायपालिका के ख़िलाफ़ जंग छेड़ दी गई है.

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(फोटो साभार: फेसबुक)

वाईएसआर कांग्रेस के नेताओं द्वारा सोशल मीडिया पर न्यायपालिका पर की गईं टिप्पणियों की सीबीआई जांच का आदेश देते हुए आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा कि अप्रैल से ही उच्च पदों पर बैठे लोगों द्वारा जजों के ख़िलाफ़ अपमानजनक टिप्पणियां की जा रही हैं. यह दर्शाता है कि न्यायपालिका के ख़िलाफ़ जंग छेड़ दी गई है.

(फोटो साभार: फेसबुक)
(फोटो साभार: फेसबुक)

नई दिल्ली: सीआईडी जांच पर नाराजगी व्यक्त करते हुए आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने सोमवार को सीबीआई को निर्देश दिया कि वह सत्तारूढ़ वाईएसआर कांग्रेस के नेताओं द्वारा सोशल मीडिया पर कुछ न्यायाधीशों और न्यायपालिका के खिलाफ की गईं कथित अपमानजनक टिप्पणियों के मामले की जांच करे.

जस्टिस राकेश कुमार और जस्टिस उमा देवी की पीठ ने केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) को मामले में प्राथमिकी दर्ज करने और आठ सप्ताह के भीतर रिपोर्ट सौंपने के निर्देश दिए.

सुनवाई के दौरान अदालत ने राज्य के अपराध जांच विभाग (सीआईडी) की जांच पर नाराजगी जताई और कहा कि वाईएसआर कांग्रेस के नेताओं के खिलाफ मामला सिर्फ इसलिए दर्ज नहीं किया गया, ताकि उन्हें बचाया जा सके.

कोर्ट ने राज्य सरकार को जांच में सीबीआई का सहयोग करने का निर्देश दिया.

उच्च न्यायालय ने सोशल मीडिया पर न्यायाधीशों और न्यायपालिका पर की गई टिप्पणियों का स्वत: संज्ञान लिया था.

ये टिप्पणियां उन अदालती फैसलों को लेकर की गई थीं, जो राज्य सरकार के पक्ष में नहीं थे. उच्च न्यायालय के निर्देश पर अदालत के रजिस्ट्रार जनरल ने सीआईडी में शिकायत दर्ज कराई थी और लोगों के नाम तथा संबंधित सबूत दिए थे.

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, रजिस्ट्रार ने विधानसभा अध्यक्ष तम्मिनेनी सीताराम, उप मुख्यमंत्री नारायण स्वामी, सांसदों वी. विजयसाई रेड्डी और नंदीग्राम सुरेश तथा सत्तारूढ़ वाईएसआरसीपी के अन्य नेताओं द्वारा कथित रूप से की गई टिप्पणियों के साक्ष्य प्रस्तुत किए थे.

अदालत ने मामले में सीआईडी की जांच पर संतोष व्यक्त नहीं किया और सवाल किया कि इन नेताओं के खिलाफ केस दर्ज क्यों नहीं किए गए.

पिछले हफ्ते सीआईडी द्वारा जांच के लिए टिप्पणियों का उल्लेख करते हुए अदालत ने कहा था, ‘ये टिप्पणियां लोकतंत्र के लिए खतरनाक हैं और यह न्यायपालिका पर हमला है. एक लोकतांत्रिक राज्य में अगर उच्च पदों पर बैठे व्यक्तियों द्वारा न्यायिक व्यवस्था के खिलाफ इस तरह की जंग छेड़ी जाती है तो निश्चित रूप से यह न्यायिक व्यवस्था के खिलाफ नागरिकों के मन में अनावश्यक संदेह पैदा करेगा, जो कि पूरी व्यवस्था को पंगु बना सकता है.’

अदालत ने आगे कहा था, ‘अगर सामान्य व्यक्ति सरकार के खिलाफ कोई टिप्पणी करता है तो तुरंत मामला दर्ज कर लिया जाता है, जब बड़े पदों पर बैठे लोगों द्वारा न्यायाधीशों और अदालतों के खिलाफ टिप्पणी की गई, तो मामले क्यों दर्ज नहीं किए गए? मौजूदा हालातों को देखते हुए हमें यह लग रहा है कि न्यायपालिका के खिलाफ जंग छेड़ दी गई है.’

मामले में सीबीआई जांच का निर्देश देते हुए कोर्ट ने कहा कि उन्होंने देखा है कि अप्रैल महीने से हाईकोर्ट जज एवं न्यायपालिका के खिलाफ सोशल मीडिया के माध्यम से अनाप-शनाप लिखा जा रहा है. आलम ये है कि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में दिए इंटरव्यू में भी इस तरह की बात की जा रही है.

सीआईडी द्वारा दर्ज एफआईआर के मुताबिक राज्य में अंग्रेजी मीडियम में शिक्षा देने के सरकार के आदेश को आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट द्वारा खारिज किए जाने के बाद न्यायालय के खिलाफ कथित अपमानजनक पोस्ट लिखे गए थे.

इस तरह की टिप्पणियों की भरमार तब और बढ़ गई जब हाईकोर्ट ने राज्य चुनाव आयुक्त एन. रमेश कुमार को हटाने के आदेश को खारिज कर दिया था.

मालूम हो कि राज्य की जगनमोहन रेड्डी सरकार और हाईकोर्ट के बीच का विवाद उस समय खुलकर सामने आ गया, जब हाल ही में रेड्डी ने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे को ये आरोप लगाते हुए एक पत्र लिखकर कहा कि सर्वोच्च न्यायालय के दूसरे सबसे वरिष्ठ जज एनवी रमण उनकी सरकार को गिराने की साजिश कर रहे हैं.

आंध्र प्रदेश मुख्यमंत्री ने यह भी आरोप लगाया कि जस्टिस रमण टीडीपी नेता चंद्रबाबू नायडू के साथ अपने करीबी रिश्तों के चलते आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट की पीठों को प्रभावित कर रहे हैं.

10 अक्टूबर को हुई एक प्रेस वार्ता के बाद मुख्यमंत्री के प्रमुख सलाहकार अजेय कल्लम ने 6 अक्टूबर 2020 को लिखे गए इस पत्र की प्रतियां बांटते हुए मुख्यमंत्री का लिखा एक नोट पढ़कर सुनाया, जिसमें मुख्यमंत्री ने आरोप लगाया था कि जस्टिस रमन्ना ने राज्य की पिछली चंद्रबाबू नायडू-तेलुगुदेशम पार्टी (टीडीपी) सरकार में अपने प्रभाव का इस्तेमाल अपनी बेटियों के पक्ष में किया.

जगन रेड्डी ने हाईकोर्ट में जजों की नियुक्ति, रोस्टर और केस आवंटन को लेकर भी सवाल उठाए थे. मीडिया को दिए गए नोट में कहा गया था-

  • ‘जबसे नई सरकार ने नायडू के 2014-2019 के कार्यकाल में लिए गए क़दमों के बारे में इन्क्वायरी शुरू की, यह स्पष्ट है कि जस्टिस रमन्ना ने चीफ जस्टिस जितेंद्र कुमार माहेश्वरी के माध्यम से राज्य के न्यायिक प्रशासन को प्रभावित करना शुरू कर दिया.’
  • ‘माननीय जजों का रोस्टर, जहां चंद्रबाबू नायडू के हितों से जुड़े नीति और सुरक्षा के महत्वपूर्ण मामले पेश किए जाने थे, वे कुछ ही जजों को मिले- जस्टिस एवी शेषा सई, जस्टिस एम. सत्यनारायण मूर्ति, जस्टिस डीवीएसएस सोमय्याजुलु और जस्टिस डी. रमेश.

गौरतलब है कि हाईकोर्ट ने बीते 18 महीनों में जगनमोहन रेड्डी सरकार के कई महत्वपूर्ण फैसलों की अनदेखी करते हुए लगभग 100 आदेश पारित किए हैं.

जिन फैसलों को हाईकोर्ट द्वारा रोका गया है उनमें अमरावती से राजधानी के स्थानांतरण के माध्यम से प्रशासन का विकेंद्रीकरण, आंध्र प्रदेश  परिषद को खत्म करने और आंध्र प्रदेश राज्य चुनाव आयोग आयुक्त एन. रमेश कुमार को पद से हटाने के निर्णय शामिल हैं.

जगन रेड्डी के मीडिया नोट में आगे कहा गया, ‘सरकार ने नदी की पारिस्थितिकी को सुरक्षित करने के लिए इसके खादर में हुए अतिक्रमण को हटाने का निर्णय लिया था, लेकिन अदालत द्वारा इस प्रक्रिया को रोक दिया गया.’

उधर तेलुगु देशम पार्टी ने जगन रेड्डी के आरोपों को ‘न्यायपालिका के खिलाफ जानबूझकर किया गया षड्यंत्र’ बताकर इसे खारिज कर दिया और कहा कि इससे अधिक ज्यादती नहीं हो सकती है.

टीडीपी पोलितब्यूरो के सदस्य यनमाला रामाकृष्णुडु ने बयान जारी कर कहा कि जब आपकी सरकार के गैर कानूनी और असंवैधानिक कृत्यों से परेशान कोई व्यक्ति या संगठन अदालत से न्याय पाना चाहता है और अगर अदालत से राहत मिल जाती है तो आप उन पर आरोप कैसे लगा सकते हैं.

उन्होंने दावा किया कि पत्र से रेड्डी की नायडू के खिलाफ ‘ईर्ष्या’ भी झलकती है.

इस बीच आंध्र प्रदेश कांग्रेस समिति के अध्यक्ष सेक शैलजानाथ ने कहा, ‘वाईएसआरसी ने न्यायपालिका पर एक सीधा हमला किया, क्योंकि राज्य सरकार के फैसले अदालतों में ठुकराए जा रहे थे.’

जगन के इस पत्र के आधार पर नोएडा के एक वकील ने शीर्ष अदालत के वरिष्ठ जज पर आरोप लगाने के लिए उनके खिलाफ कार्रवाई की मांग करते सुप्रीम कोर्ट में याचिका भी दाखिल की है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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