दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा कि पड़ोसी राज्यों में पराली जलाना शुरू हो गया है और धुआं दिल्ली पहुंचने लगा है. उनका आरोप है कि केंद्र सरकार पर उत्तर भारत को प्रदूषण से बचाने में पूरी तरह विफल रही.
नई दिल्ली: हवा की गति कम होने और तापमान कम होने के चलते प्रदूषक तत्वों के हवा में जमा होने के कारण राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की वायु गुणवत्ता मंगलवार सुबह बहुत खराब श्रेणी में पहुंच गई. इस मौसम में पहली बार हवा की गुणवत्ता इतनी खराब हुई है.
पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय की वायु गुणवत्ता प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली के अनुसार, पंजाब, हरियाणा और पाकिस्तान के नजदीकी क्षेत्रों में खेतों में पराली जलाने की घटना में वृद्धि भी दिल्ली-एनसीआर में वायु गुणवत्ता को प्रभावित करने वाली है, महानगर में सुबह 9:30 बजे वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) 304 दर्ज किया, जो बहुत खराब श्रेणी में आता है.
सोमवार को 24 घंटे का औसत एक्यूआई 261 रहा, जो फरवरी के बाद से सबसे खराब है. यह रविवार को 216 और शनिवार को 221 दर्ज किया गया था.
दिल्ली के वजीरपुर में एक्यूआई 380, विवेक विहार में 355 और जहांगीरपुरी में 349 रही, जहां सबसे अधिक प्रदूषण का स्तर दर्ज किया गया.
उल्लेखनीय है कि 0 और 50 के बीच एक्यूआई को अच्छा, 51 और 100 के बीच संतोषजनक, 101 और 200 के बीच मध्यम, 201 और 300 के बीच खराब, 301 और 400 के बीच बहुत खराब और 401 और 500 के बीच गंभीर माना जाता है.
दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति के एक वरिष्ठ वैज्ञानिक ने कहा कि हवा की गुणवत्ता में गिरावट का कारण हवा की कम गति और कम तापमान हो सकता है जिसके चलते हवा में प्रदूषक जमा होने लगे हैं.
उन्होंने कहा, ‘पड़ोसी राज्यों में भी पराली जलाने की घटनाएं बढ़ गई है. इसके अलावा वेंटिलेशन इंडेक्स कम है.’
वेंटिलेशन इंडेक्स वह गति है जिस पर प्रदूषक पदार्थ फैल सकते हैं. हवा की 10 किमी प्रति घंटे से कम की औसत गति के साथ 6,000 वर्गमीटर प्रति सेकंड से कम का वेंटिलेशन इंडेक्स प्रदूषकों के बिखरने के लिए प्रतिकूल होता है.
सीपीसीबी के आंकड़ों के मुताबिक, दिल्ली-एनसीआर में पीएम 10 का स्तर सुबह नौ बजे 300 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर रहा. भारत में 100 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से नीचे पीएम10 का स्तर सुरक्षित माना जाता है.
पीएम 10, 10 माइक्रोमीटर के व्यास वाला सूक्ष्म अभिकण होता है, जो सांस के जरिये फेफड़ों में चले जाते हैं. यह स्वास्थ्य के लिए बहुत खतरनाक होता है. ये अभिकण धूल-कण इत्यादि के रूप में होते हैं.
पीएम 2.5 का स्तर 129 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर दर्ज किया गया. पीएम 2.5 का स्तर 60 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर तक सुरक्षित माना जाता है. पीएम 2.5 अति सूक्ष्म महीन कण होते हैं जो रक्तप्रवाह में भी प्रवेश कर सकते हैं.
नासा के कृत्रिम उपग्रह द्वारा ली गई तस्वीरों के मुताबिक, पंजाब के अमृतसर और फिरोजपुर और हरियाणा के पटियाला, अंबाला और कैथल के पास बड़े पैमाने पर आग जलती हुई दिखाई दी.
भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के अनुसार, मंगलवार सुबह हवा की अधिकतम गति 4 किलोमीटर प्रति घंटा थी. कम तापमान और स्थिर हवाएं वायु गुणवत्ता को प्रभावित करने के साथ जमीन के करीब प्रदूषकों के संचय में मदद करती हैं.
विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि दिल्ली-एनसीआर में हवा की खराब गुणवत्ता के कारण वायु प्रदूषण बढ़ने से कोविड-19 महामारी और बढ़ सकती है. वायु प्रदूषण दिल्ली के लिए एक गंभीर समस्या बन गई है.
सर्दियों में वायु प्रदूषण के उच्च स्तर से निपटने के लिए उठाए जा रहे कदमों की निगरानी के लिए दिल्ली सचिवालय में 10 सदस्यीय विशेषज्ञ टीम के साथ एक ग्रीन वार रूम स्थापित किया गया है. पर्यावरण विभाग ने भी धूल नियंत्रण मानदंडों का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की है.
सरकार राष्ट्रीय राजधानी में धान के खेतों में पूसा बायो-डीकंपोजर घोल का छिड़काव भी शुरू करने जा रही है. विशेषज्ञों का कहना है कि यह 15 से 20 दिनों में फसल अवशेष को खाद में बदल सकता है और इस तरह से पराली को जलने से रोका जा सकता है, जिसके जरिए वायु प्रदूषण को कम किया जा सकता है.
मालूम हो कि लॉकडाउन के दौरान बीते मार्च महीने में राजधानी दिल्ली में पिछले छह महीने में वायु गुणवत्ता अच्छी श्रेणी में पहुंची गई थी और प्रदूषण भी कम हुआ था.
मार्च महीने में ही केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने देशव्यापी लॉकडाउन के दौरान पिछले पांच दिनों में दिल्ली सहित अन्य महानगरों के वायु प्रदूषण के स्तर में 20 से 25 प्रतिशत तक की गिरावट दर्ज की थी. इसके अनुसार, लॉकडाउन के दौरान वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) पर देश के 104 प्रमुख शहरों में हवा की गुणवत्ता संतोषजनक स्तर पर पहुंच गई थी.
वहीं, वायु गुणवत्ता पर निगरानी के लिए पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की संस्था ‘सफर’ के मुताबिक वायु प्रदूषण से सर्वाधिक प्रभावित चार महानगरों- दिल्ली, मुंबई, अहमदाबाद और पुणे में जनता कर्फ्यू के दौरान वाहन जनित प्रदूषण और विकास कार्यों से उत्पन्न धूल की मात्रा में खासी गिरावट दर्ज की गई थी.
केंद्र उत्तर भारत में प्रदूषण को नियंत्रित करने में रहा पूरी तरह विफल: सिसोदिया
केंद्र सरकार पर उत्तर भारत को प्रदूषण से बचाने में पूरी तरह विफल रहने का आरोप लगाते हुए दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने मंगलवार को उससे प्रदूषण को नियंत्रित करने और पराली जलाने पर रोक लगाने के लिए अहम भूमिका निभाने की अपील की.
सिसोदिया ने पत्रकारों से कहा, ‘पड़ोसी राज्यों में पराली जलाना शुरू हो गया है और धुआं दिल्ली पहुंचने लगा है. दिल्ली सरकार ने सालभर प्रदूषण घटाने के लिए कई कदम उठाए, लेकिन ऐसा क्यों है कि जब पराली जलाए जाने लगे तभी अचानक सभी प्रदूषण को लेकर चिंतित हो गए और सालभर इस विषय पर कुछ किया ही नहीं गया.’
उन्होंने कहा, ‘हम बार-बार कहते हैं कि प्रदूषण से बस दिल्ली ही नहीं बल्कि पूरा उत्तर भारत प्रभावित होता है.’
उपमुख्यमंत्री ने कहा, ‘जब पराली के जलने का धुआं दिल्ली पहुंचता है तो उसकी तीव्रता कुछ घट जाती है, लेकिन कल्पना कीजिए कि पंजाब और हरियाणा में रह रहे लोगों को यह कितनी बुरी तरह प्रभावित कर रहा होगा जहां वाकई पराली जलाया जाता है.’
पराली जलाये जाने से वायु प्रदूषण बहुत बढ़ जाता है और पंजाब एवं हरियाणा समेत विभिन्न राज्यों की सरकारों ने इसे रोकने के लिए कठोर उपायों को लागू करने तथा किसानों को फसल के अवशेषों को खत्म करने के लिए मशीन देने जैसे कई कदम उठाए हैं.
सिसोदिया ने कहा कि केंद्र को जिम्मेदारी लेनी चाहिए. उन्होंने केंद्र सरकार से उत्तर भारत में प्रदूषण को नियंत्रित करने और पराली जलाने पर रोक लगाने के लिए अहम भूमिका निभाने की अपील की.
उन्होंने कहा, ‘इस साल कोविड-19 संकट के चलते पराली जलाया जाना बहुत घातक है. केंद्र सरकार उत्तर भारत को प्रदूषण से बचाने में पूरी तरह विफल रही है. दिल्ली सरकार सालभर प्रदूषण रोकने के लिए लगातार प्रयास कर रही है लेकिन केंद्र सरकार हाथ पर हाथ धरकर बैठी है और जब प्रदूषण स्तर बढ़ जाता है तो बस दिखावा करती है.’
उपमुख्यमंत्री ने इस संदर्भ में पौधरोपण, ई-वाहन नीति, बसों की संख्या बढ़ाने आदि का जिक्र किया. उन्होंने पर्यावरण प्रदूषण (रोकथाम एवं नियंत्रण) प्राधिकरण की भूमिका पर सवाल उठाया और उससे ठोस कदम उठाने की अपील की.
इससे पहले मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा था कि राज्य सरकारों को एक-दूसरे पर दोषारोपण करने के बजाय मिलकर पराली जलाने के मुद्दे का हल ढूंढना चाहिए, जो दिल्ली एवं एनसीआर में सर्दियों के दिनों में सालाना मुश्किल का एक बड़ा कारण है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)