इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाथरस के तत्कालीन एसपी के ख़िलाफ़ कार्रवाई किए जाने और डीएम को बख़्श देने पर सवाल खड़े किए हैं. कोर्ट ने एक मेडिकल रिपोर्ट के हवाले से युवती के साथ बलात्कार न होने का दावा करने वाले अपर पुलिस महानिदेशक (कानून व्यवस्था) प्रशांत कुमार को फटकार लगाते हुए बलात्कार की परिभाषा में हुए बदलावों की जानकारी मांगी.
नई दिल्ली: इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले में 19 वर्षीय युवती के कथित गैंगरेप और उसकी मौत के मामले में प्रशासन द्वारा आनन फानन में देर रात शव जलाए जाने की घटना को प्रथम दृष्टया पीड़िता और उनके परिवार के लोगों के मानवाधिकार का उल्लंघन करार दिया है.
इसके साथ ही पीठ ने बीते सोमवार को दिए अपने आदेश में सरकार को हाथरस जैसे मामलों में शवों के अंतिम संस्कार के सिलसिले में नियम तय करने का भी निर्देश दिया है.
पीड़ित परिवार ने पीठ के समक्ष हाजिर होकर आरोप लगाया था कि प्रशासन ने उनकी बेटी के शव का अंतिम संस्कार उनकी मर्जी के बगैर आधी रात को करवा दिया था. परिजनों ने न्यायालय को बताया था कि अधिकारियों ने उनकी बेटी के शव को अंतिम दर्शन के लिए घर तक नहीं ले जाने दिया और न ही उसका चेहरा दिखाया.
#HathrasCase : HC says it does not find, at this stage, any good reason on behalf of the administration as to why they could not hand over the body to the family members for some time, say for even half an hour, to enable them to perform their rituals at home..
— The Leaflet (@TheLeaflet_in) October 13, 2020
जस्टिस पंकज मिठाल और जस्टिस राजन रॉय की पीठ ने कहा, ‘पीड़िता कम से कम अपने धार्मिक रीति-रिवाजों के अनुसार एक सम्मानजनक दाह संस्कार की हकदार थी, जो कि अनिवार्य रूप से उनके परिवार द्वारा किया जाना था. शवदाह एक संस्कार है, जिसे अंतिम संस्कार कहा जाता है और इसे एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान के रूप में मान्यता प्राप्त है. कानून और व्यवस्था का सहारा लेकर इससे समझौता नहीं किया जा सकता है.’
कोर्ट ने कहा कि उन्हें ऐसा कोई कारण नहीं मिला है जो इस बात को लेकर संतुष्ट कर सके कि आखिर क्यों हाथरस प्रशासन ने कुछ समय के लिए भी परिजनों को शव नहीं दिया, कम से कम आधे घंटे के लिए ही सही, ताकि वे अपने घर पर संस्कार कर पाते और इसके बाद रात में या फिर अगले दिन शवदाह किया जाता.
इस आधार पर अदालत ने कहा कि मामले में पुलिस/सीबीआई जांच के अलावा इस विषय पर विचार किया जाना है कि क्या परिजनों की इच्छा के विरुद्ध और उनके रीति-रिवाजों को दरकिनार करते हुए पीड़ित के शव का जल्दबाजी में अंतिम संस्कार किया गया था और क्या इस तरह की कार्रवाई से संविधान के अनुच्छेद 21 और 25 के तहत मौलिक या मानवाधिकारों का गंभीर उल्लंघन होता है.
कोर्ट ने कहा कि यदि ऐसा है तो इसके लिए कौन उत्तरदायी और जिम्मेदार होगा तथा पीड़ित के परिवार को इसके लिए कैसे मुआवजा दिया जाएगा.
कोर्ट ने कहा कि उसकी ‘चिंता’ फिलहाल दो बिंदुओं पर है. पहला, क्या पीड़िता और उनके परिवार के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन किया गया है. दूसरा बड़ा मुद्दा ये है कि क्या इन कीमती संवैधानिक अधिकारों, जो कि राज्य के सभी नागरिकों के लिए है, का आए दिन उल्लंघन तो नहीं हो रहा है.
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा, ‘स्वतंत्रता के बाद से शासन और प्रशासन का मार्गदर्शक सिद्धांत ‘सेवा’ और ’लोगों की रक्षा’ होना चाहिए, न कि ‘राज करना’ और ‘नियंत्रण’ हो, जैसा कि स्वतंत्रता से पहले था. सरकार को ऐसी स्थितियों से निपटने के लिए जिलाधिकारियों को दिशा-निर्देश देने के लिए उपयुक्त प्रक्रियाओं के साथ आना चाहिए.’
कोर्ट ने अपने 11 पेज के आदेश में पीड़ित परिवार को पर्याप्त सुरक्षा मुहैया कराने के भी निर्देश दिए. न्यायालय ने सरकार द्वारा इस मामले में सिर्फ तत्कालीन पुलिस अधीक्षक विक्रांत वीर के ही खिलाफ कार्रवाई किए जाने और जिलाधिकारी को बख्श देने पर सवाल भी खड़े किए.
Allahabad HC asks UP Govt whether it is fair to allow Praveen Kumar Laxkar to continue as DM #Hathras as the proceedings relating to late-night cremation in which he had a role to play, are pending before it. Govt tells it will look into this aspect and take a decision.
— The Leaflet (@TheLeaflet_in) October 13, 2020
अदालत ने अतिरिक्त मुख्य सचिव (गृह) अवनीश कुमार अवस्थी से भी सवाल किया कि क्या प्रवीण कुमार लक्षकार को हाथरस के डीएम पद पर बने रहने की अनुमति देना उचित था, क्योंकि देर रात दाह संस्कार से संबंधित कार्रवाई में उनकी भूमिका को लेकर मामला अभी लंबित है. अवस्थी ने अपने जवाब में कहा कि वह इस पहलू पर गौर करेंगे और फैसला लेंगे.
मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए अदालत ने राज्य सरकार के अधिकारियों, राजनीतिक पार्टियों तथा अन्य पक्षों को इस मुद्दे पर सार्वजनिक रूप से कोई भी बयान देने से परहेज करने को कहा है. साथ ही इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया से अपेक्षा की कि वे इस मुद्दे पर रिपोर्टिंग करने और परिचर्चा करते वक्त बेहद एहतियात बरतेंगे.
अदालत ने कहा कि मामले की जो भी जांच चल रही हैं, उन्हें पूरी तरह गोपनीय रखा जाए और इसकी कोई भी जानकारी लीक न हो.
न्यायालय ने मेडिकल रिपोर्ट का हवाला देते हुए पीड़िता के साथ बलात्कार नहीं होने का दावा करने वाले अपर पुलिस महानिदेशक (कानून व्यवस्था) प्रशांत कुमार और जिलाधिकारी प्रवीण कुमार लक्षकार को भी कड़ी फटकार लगाई.
Allahabad HC asks ADG (Law&Order) if he’s aware of legal amendments relating to definition of rape w.e.f 2013. Absence of semen during forensic examination, though a factor for consideration, would not by itself be conclusive as to whether rape had been committed or not.#hathras pic.twitter.com/604mZouNc7
— The Leaflet (@TheLeaflet_in) October 13, 2020
कुमार की अनभिज्ञता पर टिप्पणी करते हुए न्यायालय ने कहा कि उन्होंने एडीजी (कानून-व्यवस्था) से भी पूछताछ की कि क्या उन्हें साल 2013 में कानूनी संशोधनों के बाद बलात्कार की परिभाषा में हुए बदलावों के बारे में पता है. इसके अनुसार फॉरेंसिक जांच के दौरान वीर्य की अनुपस्थिति होने पर रेप होने से इनकार नहीं किया जा सकता है. इस पर कुमार ने जवाब दिया कि वे इसके बारे में जानते थे.
अदालत ने कुमार को बलात्कार की परिभाषा समझाते हुए उनसे पूछा कि उन्होंने ऐसा बयान क्यों दिया, जबकि वह मामले के जांच अधिकारी भी नहीं थे.
पीठ ने कहा कि कोई भी अधिकारी जो मामले की जांच से सीधे तौर पर नहीं जुड़ा है, उसे ऐसी बयानबाजी नहीं करनी चाहिए जिससे अनावश्यक अटकलें और भ्रम पैदा हो. प्रशांत कुमार ने इस पर सहमति जताई कि ऐसा नहीं होना चाहिए.
हाथरस मामले की मीडिया रिपोर्टिंग के ढंग पर नाराजगी जाहिर करते हुए अदालत ने कहा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में दखल दिए बगैर हम मीडिया और राजनीतिक पार्टियों से भी गुजारिश करते हैं कि वे अपने विचारों को इस ढंग से पेश करें कि उससे माहौल खराब न हो और पीड़ित तथा आरोपी पक्ष के अधिकारों का हनन भी न हो. किसी भी पक्ष के चरित्र पर लांछन नहीं लगाना चाहिए और मुकदमे की कार्यवाही पूरी होने से पहले ही किसी को दोषी नहीं ठहराया जाना चाहिए.
अदालत ने पीड़ित परिवार को पूर्व में प्रस्तावित मुआवजा देने का निर्देश देते हुए कहा कि अगर परिवार इसे लेने से इनकार करता है तो इसे जिलाधिकारी द्वारा किसी राष्ट्रीयकृत बैंक में जमा करा दिया जाए.
इस मामले की अगली सुनवाई अब दो नवंबर को होगी. कोर्ट ने इस दिन हाथरस के तत्कालीन एसपी विक्रांत वीर को सुनवाई के दौरान उपस्थित रहने को कहा है.
Allahabad HC says the then SSP of Hathras, Vikrant Vir, who is now under suspension has not appeared before it despite a Court order; instead, the present SSP has appeared. HC says it would want to hear Vikrant Vir in the next hearing.#HathrasCase pic.twitter.com/XscZnLJ4lb
— The Leaflet (@TheLeaflet_in) October 13, 2020
आरोप है कि पिछले महीने 14 सितंबर को हाथरस जिले के चंदपा थाना क्षेत्र के एक गांव की रहने वाली 19 वर्षीय दलित युवती से सवर्ण जाति के चार युवकों ने बर्बरतापूर्वक मारपीट करने के साथ सामूहिक बलात्कार किया. उसके बाद 29 सितंबर को दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में इलाज के दौरान उनकी मौत हो गई थी.
उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने घटना का स्वत: संज्ञान लेते हुए बीते 12 अक्टूबर को पीड़ित परिवार को अदालत में हाजिर होने को कहा था. इसके अलावा गृह विभाग के अपर मुख्य सचिव, पुलिस महानिदेशक समेत कई वरिष्ठ अधिकारियों को भी तलब कर मामले की सुनवाई की थी और अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)