केंद्र सरकार ने दूरसंचार कंपनियों के घाटे को कम करने के लिए ऐसा किया है. बीएसएनएल को 2019-20 में 15,500 करोड़ रुपये का घाटा हुआ था, जबकि एमटीएनएल का घाटा 3,694 करोड़ रुपये रहा था.
नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने अपने सभी मंत्रालयों, सार्वजनिक विभागों और सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों (पीएसयू) के लिए सरकारी दूरसंचार कंपनियों भारत संचार निगम लिमिटेड (बीएसएनएल) और महानगर संचार निगम लिमिटेड (एमटीएनएल) की सेवाओं के उपयोग को अनिवार्य कर दिया है.
दूरसंचार विभाग (डीओटी) द्वारा जारी एक ज्ञापन में कहा गया, ‘भारत सरकार ने अपने सभी मंत्रालयों/विभागों, सीपीएसई, केंद्रीय स्वायत्त निकायों द्वारा बीएसएनएल और एमटीएनएल की सेवाओं के अनिवार्य रूप से इस्तेमाल की मंजूरी दी है.’
इस ज्ञापन पर 12 अक्टूबर की तारीख अंकित है और इसे वित्त मंत्रालय से परामर्श के बाद केंद्र सरकार के सभी सचिवालयों और विभागों को जारी किया गया.
ज्ञापन में कहा गया कि बीएसएनएल और एमटीएनएल की दूरसंचार सेवाओं के इस्तेमाल को अनिवार्य करने का निर्णय मंत्रिमंडल ने लिया.
दूरसंचार विभाग ने सभी मंत्रालयों, विभागों, सीपीएसई (सेंट्रल पब्लिक सेक्टर इंटरप्राइजेस) और केंद्रीय स्वायत्त संगठनों से कहा है कि वे इंटरनेट, ब्रॉडबैंड, लैंडलाइन और लीज्ड लाइन जरूरतों के लिए बीएसएनएल या एमटीएनएल नेटवर्क का अनिवार्य रूप से उपयोग करें.
यह आदेश सरकारी दूरसंचार कंपनियों के घाटे को कम करने के लिए किया गया है, जो तेजी से अपने ग्राहक आधार को खो रहे हैं.
बीएसएनएल को 2019-20 में 15,500 करोड़ रुपये का घाटा हुआ था, जबकि इस दौरान एमटीएनएल का घाटा 3,694 करोड़ रुपये रहा.
मालूम हो कि पिछले साल अक्टूबर में केंद्र सरकार ने वित्तीय संकट से जूझ रहीं सार्वजनिक क्षेत्र की दूरसंचार कंपनियों बीएसएनएल और एमटीएनएल के लिए 69,000 करोड़ रुपये के पुनरुद्धार पैकेज की घोषणा की थी.
इसके तहत एमटीएनएल का बीएसएनएल में विलय, संपत्तियों की बिक्री या पट्टे पर देना और कर्मचारियों के लिए स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति योजना (वीआरएस) की पेशकश किया जाना शामिल था.
बीएसएनएल कर्मचारी यूनियन वीआरएस का विरोध किया था. बीएसएनएल के चेयरमैन एवं प्रबंध निदेशक पीके पुरवार को लिखे पत्र में यूनियन ने कहा था कि स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति योजना (वीआरएस) के बाद कंपनी की वित्तीय स्थिति और खराब हुई है. विभिन्न शहरों में श्रमबल की कमी की वजह से नेटवर्क में खराबी की समस्या बढ़ी है.
बीते सितंबर महीने में बीएसएनएल कर्मचारी यूनियन ने दावा किया था कि स्वैच्छिक वीआरएस योजना लागू होने के बाद भी कंपनी अपने कर्मचारियों को समय पर वेतन नहीं दे पा रही है.
बीएसएनएल कर्मचारी यूनियन के महासचिव पी. अभिमनी ने कहा था कि बीएसएनएल के करीब 30,000 ठेका श्रमिकों को पहले ही बाहर किया जा चुका है. करीब 20,000 और ठेका श्रमिकों को बाहर करने की तैयारी चल रही है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)