हाथरस मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट को देखने दें, कोई समस्या हुई तो हम हैं: सुप्रीम कोर्ट

हाथरस मामले को उत्तर प्रदेश से बाहर ट्रांसफर करने समेत कई याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मामले की निगरानी इलाहाबाद हाईकोर्ट ही करेगा. मामले में कई अन्य वकील भी बहस करना चाहते थे, जिस पर पीठ ने कहा कि हमें पूरी दुनिया की मदद की ज़रूरत नहीं है.

New Delhi: A view of Supreme Court of India in New Delhi, Thursday, Nov. 1, 2018. (PTI Photo/Ravi Choudhary) (PTI11_1_2018_000197B)
(फोटो: पीटीआई)

हाथरस मामले को उत्तर प्रदेश से बाहर ट्रांसफर करने समेत कई याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मामले की निगरानी इलाहाबाद हाईकोर्ट ही करेगा. मामले में कई अन्य वकील भी बहस करना चाहते थे, जिस पर पीठ ने कहा कि हमें पूरी दुनिया की मदद की ज़रूरत नहीं है.

New Delhi: A view of Supreme Court of India in New Delhi, Thursday, Nov. 1, 2018. (PTI Photo/Ravi Choudhary) (PTI11_1_2018_000197B)
(फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने गुरुवार को कहा कि हाथरस मामले की निगरानी इलाहाबाद हाईकोर्ट करेगा. इस मामले में एक दलित युवती के साथ कथित रूप से बर्बरतापूर्ण तरीके से सामूहिक बलात्कार और मारपीट की गई थी, जिसके बाद उसकी मृत्यु हो गई थी.

प्रधान न्यायाधीश एसए बोबडे, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस वी. रामासुब्रमण्यन की पीठ इस मामले को लेकर दायर जनहित याचिका और कार्यकर्ताओं तथा वकीलों के हस्तक्षेप के आवेदनों पर सुनवाई कर रही थी.

पीठ से कहा गया कि उत्तर प्रदेश में निष्पक्ष सुनवाई संभव नहीं है क्योंकि पहले ही जांच कथित रूप से चौपट कर दी गई है.

पीठ ने इस आशंका को दूर करते हुए कहा, ‘उच्च न्यायालय को इसे देखने दिया जाए. अगर कोई समस्या होगी तो हम यहां पर हैं ही.’

इस मामले में सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता, वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे, इंदिरा जयसिंह और सिद्धार्थ लूथरा सहित अनेक वकील विभिन्न पक्षों की ओर से मौजूद थे.

इस मामले में कई अन्य वकील भी बहस करना चाहते थे लेकिन पीठ ने कहा, ‘हमे पूरी दुनिया की मदद की आवश्कता नहीं है.’

सुनवाई के दौरान पीड़ित की पहचान उजागर न करने से लेकर उसके परिवार के सदस्यों और गवाहों को पूरी सुरक्षा और संरक्षण जैसे मुद्दों पर बहस हुई.

पीड़ित के परिवार के वकील ने इस मामले की सुनवाई उत्तर प्रदेश से बाहर राष्ट्रीय राजधानी की अदालत में स्थानांतरित करने की मांग की.

वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने भी इस मामले की यूपी में निष्पक्ष सुनवाई को लेकर अपनी आशंका व्यक्त की और गवाहों के संरक्षण का मुद्दा उठाया.

इससे पहले, सुनवाई शुरू होते ही सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने यूपी सरकार द्वारा दाखिल हलफनामे का जिक्र किया जिसमे पीड़ित के परिवार और गवाहों को प्रदान की गई सुरक्षा और संरक्षण का विवरण दिया गया था.

राज्य सरकार ने न्यायालय के निर्देश पर इस हलफनामे में गवाहों की सुरक्षा के बारे में सारा विवरण दिया है. राज्य सरकार इस मामले को पहले ही सीबीआई को सौंप चुकी है और उसने शीर्ष अदालत की निगरानी के लिए भी सहमति दे दी है.

मेहता ने न्यायालय के आदेश पर अमल करते हुए हलफनामा दाखिल करने का जिक्र करते हुए कहा कि पीड़ित के परिवार ने सूचित किया है कि उन्होंने वकील की सेवायें ली हैं और उन्होंने राज्य सरकार के वकील से भी उनकी ओर से मामले को देखने का अनुरोध किया है.

प्रदेश के पुलिस महानिदेशक की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने कहा कि पीठ से अनुरोध किया गया है कि गवाहों की सुरक्षा के लिए सीआरपीएफ तैनात की जानी चाहिए.

साल्वे ने कहा, ‘महोदय आप जिसे भी चाहें, सुरक्षा सौंप सकते हैं.’ उन्होंने कहा कि इसे राज्य सरकार पर किसी प्रकार का आक्षेप नहीं माना जाना चाहिए.

मेहता ने कहा, ‘राज्य पूरी तरह से अपक्षतपातपूर्ण है.’ पीड़ित के परिवार की ओर से पेश अधिवक्ता सीमा कुशवाहा ने कहा कि वे चाहते है कि जांच के बाद इसकी सुनवाई दिल्ली की अदालत में कराई जाए.

उन्होने कहा कि जांच एजेंसी को अपनी प्रगति रिपोर्ट सीधे शीर्ष अदालत को सौंपने का निर्देश दिया जाए.

मेहता ने कहा कि सही स्थिति तो यह है कि राज्य सरकार पहले ही कह चुकी है कि उसे कोई आपत्ति नहीं है और कोई भी जांच कर सकता है. उन्होंने कहा कि सीबीआई ने 10 अक्टूबर से जांच अपने हाथ में ली है.

मेहता ने कहा कि पीड़ित की पहचान किसी भी स्थिति में सार्वजनिक नहीं की जानी चाहिए क्योंकि कानून इसकी अनुमति नही देता है.

सॉलिसिटर जनरल ने कहा, ‘कोई भी ऐसा कुछ नहीं लिख सकता जिसमें पीड़ित का नाम या और कुछ हो जिससे उसकी पहचान का खुलासा हो सकता हो.’

एक हस्तक्षेपकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने कहा कि इस समय आरोपी को नहीं सुना जाना चाहिए. उन्होंने कहा, ‘हमें राज्य में निष्पक्ष सुनवाई की उम्मीद नहीं है. जांच पहले ही चौपट की जा चुकी है.’

यह कहते हुए कि मामले में विशेष पब्लिक प्रॉसिक्यूटर नियुक्त किया जाए, उन्होंने कहा, ‘हम चाहते हैं कि संवैधानिक अदालत द्वारा मामले की निगरानी की जाए.

उन्होंने आगे कहा, ‘पीड़ित के परिवार और गवाहों को उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा दी गई सुरक्षा से हम संतुष्ट नहीं है. उन्नाव मामले की तरह इसमें भी सुरक्षा सीआरपीएफ को दी जानी चाहिए.’

उन्होंने आगे कहा कि यह वही सरकार है जिसके खिलाफ पीड़िता के परिवार की शिकायतें हैं.

एक आरोपी की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा ने कहा कि इस मामले का सारा विवरण पूरी मीडिया में है. पीठ ने लूथरा से कहा, ‘आप अधिकार क्षेत्र वाले उच्च न्यायालय जाएं.’

सॉलिसिटर जनरल ने एक संगठन द्वारा दायर आवेदन का विरोध किया, जिसमे हाथरस घटना की जांच सीबीआई को सौंपने का अनुरोध किया गया है.

मेहता ने कहा, ‘न्यायालय को यह निर्देश देना चाहिए कि किसी को भी पीड़ित के नाम पर धन एकत्र नहीं करना चाहिए. हमने पहले यह देखा है. मैं इस आवेदन का विरोध कर रहा हूं.’

एक हस्तक्षेपकर्ता ने कहा कि इस मामले की जांच न्यायालय की निगरानी में विशेष जांच दल से कराई जानी चाहिए.

गौरतलब है कि आरोप है कि हाथरस ज़िले में 14 सितंबर को सवर्ण जाति के चार युवकों ने 19 साल की दलित युवती के साथ बर्बरतापूर्वक मारपीट करने के साथ कथित बलात्कार किया था.

अलीगढ़ के एक अस्पताल में इलाज के बाद उन्हें दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहां 29 सितंबर को उन्होंने दम तोड़ दिया था.

इसके बाद परिजनों ने पुलिस पर उनकी सहमति के बिना आननफानन में युवती का अंतिम संस्कार करने का आरोप लगाया, जिसका पुलिस ने खंडन किया था.

इसके बाद युवती के भाई की शिकायत के आधार पर चार आरोपियों- संदीप (20), उसके चाचा रवि (35) और दोस्त लवकुश (23) तथा रामू (26) को गिरफ्तार

युवती के जल्दबाजी में 29 सितंबर की देर रात किए गए अंतिम संस्कार को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने स्वत: संज्ञान लेते हुए नोटिस जारी कर राज्य सरकार और पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों को 12 अक्टूबर को पेश होने को कहा था.

अदालत में पेश हुए पीड़िता के परिजनों ने इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ को बताया था कि जिला प्रशासन ने उनकी सहमति के बिना उनकी बेटी का अंतिम संस्कार कर दिया.

इसके बाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने हाथरस पीड़िता के शव को प्रशासन द्वारा आनन फानन में देर रात शव जलाए जाने की घटना को मानवाधिकार का उल्लंघन करार दिया था.

साथ ही अदालत ने मेडिकल रिपोर्ट का हवाला देते हुए पीड़िता के साथ बलात्कार न होने का दावा करने वाले अपर पुलिस महानिदेशक (कानून व्यवस्था) प्रशांत कुमार और जिलाधिकारी प्रवीण कुमार लक्षकार को भी कड़ी फटकार लगाई थी.

अदालत ने इस मामले की मीडिया रिपोर्टिंग के ढंग पर नाराजगी जाहिर करते हुए कहा था कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में दखल दिए बगैर हम मीडिया और राजनीतिक पार्टियों से भी गुजारिश करते हैं कि वे अपने विचारों को इस ढंग से पेश करें कि उससे माहौल खराब न हो और पीड़ित तथा आरोपी पक्ष के अधिकारों का हनन भी न हो.

अदालत ने कहा कि किसी भी पक्ष के चरित्र पर लांछन नहीं लगाना चाहिए और मुकदमे की कार्यवाही पूरी होने से पहले ही किसी को दोषी नहीं ठहराया जाना चाहिए.

मामले की अगली सुनवाई अब दो नवंबर को होगी. कोर्ट ने इस दिन हाथरस के तत्कालीन एसपी विक्रांत वीर को सुनवाई के दौरान उपस्थित रहने को कहा है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)