81 वर्षीय तेलुगू कवि एवं कार्यकर्ता वरवरा राव को एल्गार परिषद मामले में 28 अगस्त 2018 को गिरफ़्तार किया गया था. उनकी पत्नी ने याचिका में कहा है कि राव की तबीयत बहुत ख़राब है, जिसके कारण उनकी लगातार देखभाल की ज़रूरत है.
नई दिल्ली: एल्गार परिषद मामले में गिरफ्तार हुए तेलुगू कवि एवं कार्यकर्ता वरवरा राव की पत्नी ने बीते गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में जमानत याचिका दायर कर कहा कि राव की बिगड़ती हालत को देखते हुए उन्हें तत्काल रिहा किया जाए.
उन्होंने दावा किया कि इतने दिनों तक वरवरा राव को जेल में रखना अमानवीय है.
पत्नी पेंड्यला हेमलता द्वारा दायर याचिका में अदालत से आग्रह किया गया है कि 81 वर्षीय वरवरा राव को अस्थायी चिकित्सा जमानत पर रिहा किया जाए और उन्हें अपने परिवार और प्रियजनों से मिलने के लिए हैदराबाद जाने की अनुमति दी जाए.
उन्होंने राव को इस आधार पर तत्काल रिहा करने की मांग की कि उन्हें निरंतर हिरासत में रखना क्रूरता और अमानवीय है, जिससे संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता) और हिरासत में उनकी गरिमा का उल्लंघन होता है.
याचिका में कहा गया है कि उनका वजन करीब 18 किलो कम हो गया है और वे कई बीमारियों से पीड़ित हैं.
याचिका में कहा गया, ‘याचिकाकर्ता के पति की स्वास्थ्य स्थिति बहुत खराब है और वह विभिन्न बीमारियों से ग्रस्त हैं. यह सर्वविदित है कि कोविड-19 मरीजों में समान लक्षण नहीं होते हैं. यह भी पता चला है कि कोविड-19 के कारण कई अंगों पर प्रभाव पड़ता है और प्रत्येक रोगी अलग-अलग लक्षण दिखाते हैं.’
याचिकाकर्ता ने यह भी कहा कि जब 28 अगस्त 2018 को राव को गिरफ्तार किया गया था, उस समय उन्हें कोई न्यूरोलॉजिकल समस्या नहीं थी. इसलिए इस बात की पूरी संभावना है कि कोविड-19 और सेंट जॉर्ज अस्पताल में अचानक गिरने के कारण उनमें न्यूरोलॉजिकल समस्याएं आई हैं, जैसा कि 30 जुलाई को नानावती अस्पताल द्वारा पेश किए गए मेडिकल रिपोर्ट में दर्शाया गया है.
उन्होंने कहा कि ऐसी समस्याओं के चलते मरीज की उचित देखभाल की जरूरत है. इससे पहले जब उन्हें छुट्टी दी गई थी, तो उन्हें सोडियम टेस्ट कराने की सलाह दी गई थी, जो कि जेल अधिकारियों द्वारा नहीं किया गया.
याचिका में कहा गया है कि 27 मई को राव को अस्पताल में भर्ती किया गया था लेकिन जून में उन्हें ‘जल्दबाजी में छुट्टी’ दे दी गई, जबकि चिकित्सा समस्याओं और कोविड-19 के आधार वाली उनकी जमानत याचिका लंबित थी. ऐसा उस समय किया गया जब उन्हें लगातार देखभाल की जरूरत थी.
याचिकाकर्ता ने कहा कि राव की स्वास्थ्य स्थिति लगातार बदतर बनी हुई है. उन्होंने कहा कि कवि को पेशाब संबंधी भी समस्या है और उन्हें डायपर का इस्तेमाल करना पड़ता है. चूंकि वे बिस्तर से उठ नहीं पाते, इसलिए उनके सहयोगी आरोपी उन्हें नहलाते हैं.
उन्होंने कहा कि राव की मानसिक स्थिति भी ठीक नहीं है.
बीते जुलाई महीने में वरवरा राव के कोरोना वायरस से संक्रमित होने की पुष्टि हुई थी. तब उन्हें सेंट जॉर्ज अस्पताल शिफ्ट किया गया है. हालांकि उनमें कोई लक्षण नहीं थे.
साल 2018 में एल्गार परिषद मामले में पुणे पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए गए कई कार्यकर्ताओं और वकीलों में राव भी शामिल हैं. इस मामले को राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) को स्थानांतरित कर दिया गया है, जिसने बाद में और अधिक कार्यकर्ताओं और शिक्षाविदों को गिरफ्तार किया है.
इस मामले में हाल ही में सामाजिक कार्यकर्ता स्टेन स्वामी को भी हिरासत में लिया गया था. स्वामी की गिरफ्तारी के साथ एल्गार परिषद मामले के गिरफ्तार लोगों की संख्या बढ़कर 16 हो गई है.
मामले में पहले की दौर की गिरफ्तारियां जून 2018 में हुई थीं, जब पुणे पुलिस ने लेखक और मुंबई के दलित अधिकार कार्यकर्ता सुधीर धावले, यूएपीए विशेष और वकील सुरेंद्र गाडलिंग, गढ़चिरौली से विस्थापन मामलों के युवा कार्यकर्ता महेश राउत, नागपुर यूनिवर्सिटी के अंग्रेजी विभाग की प्रमुख शोमा सेन और दिल्ली के नागरिक अधिकार कार्यकर्ता रोना विल्सन शामिल थे.
दूसरे दौर की गिरफ्तारियां अगस्त 2018 से हुईं, जिसमें वकील अरुण फरेरा, सुधा भारद्वाज, लेखक वरवरा राव और वर्नोन गॉन्जाल्विस को हिरासत में लिया गया था.
शुरुआत में पुणे पुलिस इस मामले की जांच कर रही थी लेकिन महाराष्ट्र से भाजपा की सरकार जाने के बाद केंद्रीय गृह मंत्रालय ने नवंबर 2019 में इस मामले को एनआईए को सौंपा था.
इसके बाद एनआईए ने 14 अप्रैल 2020 को आनंद तेलतुम्बड़े और कार्यकर्ता गौतम नवलखा को गिरफ्तार किया और फिर जुलाई 2020 में प्रो. हेनी बाबू की गिरफ़्तारी हुई. आगे चलकर एनआईए ने कबीर कला मंच के रमेश गयचोर, ज्योति जगदाप और सागर गोरखे को भी गिरफ्तार कर लिया.
इससे पहले पुणे पुलिस ने पहली चार्जशीट दाखिल की थी, जो 5,000 से अधिक पेजों की थी. पुलिस ने दावा किया था कि जिन लोगों को गिरफ्तार किया गया है उनके कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (माओवादी) से संबंध हैं और 31 दिसंबर 2017 को एल्गार परिषद कार्यक्रम आयोजित करने में इन्होंने मदद की थी.
इस मामले में फरवरी 2019 में सप्लीमेंट्री चार्जशीट दाखिल की गई थी और राज्य सरकार का कहना था कि माओवादी नेता गणपति एल्गार परिषद मामले के मास्टरमाइंड हैं.
यह मामला 1 जनवरी, 2018 को पुणे के निकट भीमा कोरेगांव की जंग की 200वीं वर्षगांठ के जश्न के बाद हिंसा भड़कने से संबंधित है, जिसमें एक व्यक्ति की मौत हो गई थी और कई लोग घायल हो गए थे.
उसके एक दिन पहले 31 दिसंबर 2017 को पुणे के ऐतिहासिक शनिवारवाड़ा में एल्गार परिषद का सम्मेलन आयोजित किया गया था. आरोप है कि 31 दिसंबर 2017 को एल्गार परिषद समूह के सदस्यों ने भड़काऊ भाषण दिए थे, जिसके अगले दिन हिंसा भड़क गई थी.