आंध्र प्रदेश सीएम के आरोपों के बाद जस्टिस रमन्ना ने कहा, जजों में दबाव झेलने की खूबी होनी चाहिए

आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगनमोहन रेड्डी ने हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे को एक पत्र लिखकर आरोप लगाया है कि सर्वोच्च न्यायालय के दूसरे सबसे वरिष्ठ जज एनवी रमन्ना उनकी सरकार को गिराने की साज़िश कर रहे हैं.

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जस्टिस एनवी रमन्ना. (फोटो: पीटीआई)

आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगनमोहन रेड्डी ने हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे को एक पत्र लिखकर आरोप लगाया है कि सर्वोच्च न्यायालय के दूसरे सबसे वरिष्ठ जज एनवी रमन्ना उनकी सरकार को गिराने की साज़िश कर रहे हैं.

जस्टिस एनवी रमन्ना. (फोटो: पीटीआई)
जस्टिस एनवी रमन्ना. (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाईएस जगनमोहन रेड्डी द्वारा मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे को पत्र लिखकर जस्टिस एनवी रमन्ना के खिलाफ कई आरोप लगाने के बाद सुप्रीम कोर्ट के दूसरे सबसे वरिष्ठ जज जस्टिस रमन्ना ने कहा है कि जजों में ये खूबी होने चाहिए कि वे सभी तरह के दबावों को झेल सकें और विषम परिस्थितियों का डटकर मुकाबला कर सकें.

जस्टिस रमन्ना ने यह भी कहा कि मौजूदा समय में एक प्रभावी एवं स्वतंत्र न्यायपालिका की जरूरत है.

मालूम हो कि पिछले दिनों राज्य की जगनमोहन सरकार और हाईकोर्ट के बीच का विवाद उस समय खुलकर सामने आ गया, जब रेड्डी ने ये आरोप लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे को एक पत्र लिखकर कहा था कि सर्वोच्च न्यायालय के दूसरे सबसे वरिष्ठ जज एनवी रमन्ना उनकी सरकार को गिराने की साजिश कर रहे हैं.

आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री ने यह भी आरोप लगाया के कि जस्टिस रमन्ना टीडीपी नेता चंद्रबाबू नायडू के साथ अपने करीबी रिश्तों के चलते आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट की पीठों को प्रभावित कर रहे हैं.

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस एआर लक्ष्मण, जिनका 27 अगस्त को निधन हो गया था, की शोक सभा में बोलते हुए जस्टिस रमन्ना ने कहा, ‘एक अच्छा जीवन कहे जाने के लिए व्यक्ति को असंख्य गुणों के साथ जीना होता है, जिसमें विनम्रता, धैर्य, दया, काम के प्रति नैतिकता और लगातार सीखने तथा सुधारने का उत्साह शामिल है.’

उन्होंने आगे कहा, ‘खासकर जजों के लिए सबसे महत्वपूर्ण ये है कि उन्हें अपने सिद्धांतों के साथ समझौता नहीं करना चाहिए और अपने फैसलों में निडर होना चाहिए. जजों में ये ये खूबी होने चाहिए कि वे सभी तरह के दबावों को झेल सकें और विषम परिस्थितियों का डटकर मुकाबला कर सकें.’

मुख्यमंत्री जगनमोहन रेड्डी ने ऐसे समय पर सीजेआई को पत्र लिखा है जब वे खुद कई कानूनी मामलों का सामना कर रहे हैं. जस्टिस रमन्ना की अगुवाई वाली पीठ वकील अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही है, जिसमें वर्तमान एवं पूर्व विधायकों/सांसदों के खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों की जांच में तेजी लाने की मांग की गई है.

इस पीठ के एक आदेश के बाद आय से अधिक संपत्ति मामले में मुख्यमंत्री के खिलाफ विशेष सीबीआई अदालत में बीते नौ अक्टूबर को फिर से मामला फिर से शुरू किया गया. इसके अगले दिन ही मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव कल्लम ने मुख्यमंत्री द्वारा सीजेआई को लिखे पत्र को मीडिया में सार्वजनिक कर दिया था.

जस्टिस रमन्ना ने जस्टिस लक्ष्मण को याद करते हुए कहा, ‘उन्होंने कहा था कि हमें बार और बेंच की समर्पित एवं सामूहिक कोशिशें विरासत में मिली हैं, जिन्होंने उच्च दक्षता, पूर्ण अखंडता और निडर स्वतंत्रता की एक अखंड परंपरा स्थापित की है.’

जज ने आगे कहा, ‘एक जज के रूप में हमें ये याद रखना चाहिए और इन्हें संजोना चाहिए. हम सभी को उनके शब्दों से प्रेरणा लेनी चाहिए और एक जीवंत तथा स्वतंत्र न्यायपालिका बनाने का प्रयास करना चाहिए जो वर्तमान समय में आवश्यक है.’

जस्टिस रमन्ना ने यह भी कहा, ‘न्यायपालिका की सबसे बड़ी ताकत उसमें लोगों का विश्वास है. विश्वास और स्वीकार्यता के लिए आदेश नहीं दिया जा सकता है, उन्हें अर्जित करना पड़ता है.’

इस बीच सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (एससीबीए) की कार्यकारी समिति ने एक प्रस्ताव पारित कर जगनमोहन रेड्डी के कदम की निंदा की है और कहा है कि इस तरह पत्र को सार्वजनिक नहीं किया जाना चाहिए था.

एससीबीए ने कहा कि संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों द्वारा इस तरह का कार्य करना संविधान में दिए न्यायपालिका की स्वतंत्रता को प्रभावित करता है.

हालांकि एससीबीए के अध्यक्ष दुष्यंत दवे ने इस प्रस्ताव का विरोध किया है और कहा है कि केवल जांच से ही पता चल सकेगा कि जज के खिलाफ आरोप सही हैं या गलत. ऐसे मौके पर इस तरह का प्रस्ताव उचित नहीं है.

ऑल इंडिया बार एसोसिएशन (एआईबीए) के चेयरमैन और वरिष्ठ वकील आदिश सी. अग्रवाल ने भी जस्टिस रमन्ना के खिलाफ मुख्यमंत्री जगनमोहन रेड्डी की टिप्पणियों की निंदा की है. उन्होंने रेड्डी के खिलाफ अवमानना कार्यवाही शुरू करने की मांग की है.

मालूम हो कि 10 अक्टूबर को हुई एक प्रेस वार्ता के बाद मुख्यमंत्री के प्रमुख सलाहकार अजेय कल्लम ने 6 अक्टूबर 2020 को लिखे गए इस पत्र की प्रतियां बांटते हुए मुख्यमंत्री का लिखा एक नोट पढ़कर सुनाया था, जिसमें मुख्यमंत्री ने आरोप लगाया था कि जस्टिस रमन्ना ने राज्य की पिछली चंद्रबाबू नायडू-तेलुगूदेशम पार्टी (टीडीपी) सरकार में अपने प्रभाव का इस्तेमाल अपनी बेटियों के पक्ष में किया.

जगन रेड्डी ने हाईकोर्ट में जजों की नियुक्ति, रोस्टर और केस आवंटन को लेकर भी सवाल उठाए थे. मीडिया को दिए गए नोट में कहा गया था-

  • ‘जबसे नई सरकार ने नायडू के 2014-2019 के कार्यकाल में लिए गए कदमों के बारे में इन्क्वायरी शुरू की, यह स्पष्ट है कि जस्टिस रमन्ना ने चीफ जस्टिस जितेंद्र कुमार माहेश्वरी के माध्यम से राज्य के न्यायिक प्रशासन को प्रभावित करना शुरू कर दिया.’
  • ‘माननीय जजों का रोस्टर, जहां चंद्रबाबू नायडू के हितों से जुड़ी नीति और सुरक्षा के महत्वपूर्ण मामले पेश किए जाने थे, वे कुछ ही जजों को मिले- जस्टिस एवी शेषा सई, जस्टिस एम. सत्यनारायण मूर्ति, जस्टिस डीवीएसएस सोमय्याजुलु और जस्टिस डी. रमेश.

गौरतलब है कि हाईकोर्ट ने बीते 18 महीनों में जगनमोहन रेड्डी सरकार के कई महत्वपूर्ण फैसलों की अनदेखी करते हुए लगभग 100 आदेश पारित किए हैं.

जिन फैसलों को हाईकोर्ट द्वारा रोका गया है उनमें अमरावती से राजधानी के स्थानांतरण के माध्यम से प्रशासन का विकेंद्रीकरण, आंध्र प्रदेश  परिषद को खत्म करने और आंध्र प्रदेश राज्य चुनाव आयोग आयुक्त एन. रमेश कुमार को पद से हटाने के निर्णय शामिल हैं.

उधर तेलुगू देशम पार्टी ने जगन रेड्डी के आरोपों को ‘न्यायपालिका के खिलाफ जानबूझकर किया गया षड्यंत्र’ बताकर खारिज कर दिया और कहा कि इससे अधिक ज्यादती नहीं हो सकती है.

टीडीपी पोलित ब्यूरो के सदस्य यनमाला रामाकृष्णुडु ने बयान जारी कर कहा कि जब आपकी सरकार के गैर कानूनी और असंवैधानिक कृत्यों से परेशान कोई व्यक्ति या संगठन अदालत से न्याय पाना चाहता है और अगर अदालत से राहत मिल जाती है तो आप उन पर आरोप कैसे लगा सकते हैं.

उन्होंने दावा किया कि पत्र से रेड्डी की नायडू के खिलाफ ‘ईर्ष्या’ भी झलकती है.

जगन के इस पत्र के आधार पर नोएडा के एक वकील ने शीर्ष अदालत के वरिष्ठ जज पर आरोप लगाने के लिए उनके खिलाफ कार्रवाई की मांग करते सुप्रीम कोर्ट में याचिका भी दाखिल की है.

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