सुप्रीम कोर्ट ने उसके समक्ष अपीलें दायर करने में सरकारी अधिकारियों द्वारा ‘अत्यधिक देरी’ करने पर नाराज़गी जताते हुए कहा कि उन्हें न्यायिक वक़्त बर्बाद करने के लिए ख़ामियाज़ा भरना चाहिए और ये क़ीमत ज़िम्मेदार अधिकारियों से वसूली जानी चाहिए.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने उसके समक्ष अपीलें दायर करने में सरकारी अधिकारियों द्वारा ‘अत्यधिक विलंब’ करने पर नाखुशी प्रकट की और कहा कि उन्हें ‘न्यायिक वक्त बर्बाद करने को लेकर खामियाजा भरना चाहिए’ तथा ऐसी कीमत जिम्मेदार अधिकारियों से वसूली जानी चाहिए.
जस्टिस एसके कौल की अगुवाई वाली पीठ ने कहा कि शीर्ष अदालत ऐसी जगह नहीं हो सकती है कि अधिकारी कानून में निर्धारित समय सीमा की अनदेखी कर जब जी चाहे, आ जाएं.
जस्टिस कौल और जस्टिस दिनेश माहेश्वरी की पीठ ने कहा, ‘हमने मुद्दा उठाया है कि यदि सरकारी मशीनरी समय से अपील/याचिका दायर करने में इतनी नाकाबिल और असमर्थ है तो समाधान यह हो सकता है कि विधानमंडल से अनुरोध किया जाए कि अक्षमता के चलते सरकारी अधिकारियों के लिए अपील/याचिका दायर करने की अवधि बढ़ायी जाए.’
पीठ ने 663 दिनों की देरी के बाद मध्य प्रदेश द्वारा दायर की गई अपील पर अपने आदेश में कहा, ‘(लेकिन) जब तक कानून है तब तक अपील/याचिका निर्धारित अवधि के अनुसार दायर करनी होगी.’
शीर्ष अदालत ने कहा कि देरी के लिए क्षमा आवेदन में कहा गया है कि दस्तावेजों की अनुपलब्धता एवं उनके इंतजाम की प्रक्रिया के चलते देर हुई और यह भी कि ‘नौकरशाही प्रक्रिया कार्य में कुछ देर होती है.’
पीठ ने कहा, ‘हम विस्तृत आदेश लिखने के लिए बाध्य हैं क्योंकि ऐसा जान पड़ता है कि सरकार और सरकारी अधिकारियों को दिए गए हमारे परामर्श का कोई फर्क नहीं पड़ा यानी सुप्रीम कोर्ट कोई ऐसी जगह नहीं हो सकती है जहां अधिकारी कानून में निर्धारित समय सीमा की अनदेखी कर जब जी चाहे, आ जाएं.’
समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि फाइलों पर बैठे रहने वाले और कुछ नहीं करने वाले अधिकारियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई और ऐसा मान लिया गया कि अदालत देरी को माफ कर देगी.
पीठ ने कहा, ‘इस प्रकार हमें एक संकेत भेजने के लिए विवश किया जाता है और हम आज सभी मामलों में ऐसा करने का प्रस्ताव करते हैं, जहां ऐसे निष्प्रभावी विलंब हैं कि हमारे सामने आने वाले सरकार या राज्य के अधिकारियों को न्यायिक समय की बर्बादी के लिए भुगतान करना होगा जिसका अपना मूल्य है. इस तरह की लागत जिम्मेदार अधिकारियों से वसूल की जा सकती है.’
पीठ ने देरी की आधार पर अपील को खारिज कर दिया और मध्य प्रदेश पर 25,000 रुपये का जुर्माना लगाया और कहा कि इसे चार सप्ताह के भीतर मध्यस्थता और सुलह परियोजना समिति के पास जमा किया जाना चाहिए.
अदालत ने कहा, ‘विशेष अवकाश याचिका दायर करने में देरी के लिए जिम्मेदार अधिकारियों से राशि वसूल की जाएगी और उक्त राशि की वसूली का प्रमाण पत्र भी इस अदालत में उक्त अवधि के भीतर दाखिल किया जाएगा.’
पीठ ने साफ किया कि यदि समय के भीतर उसके आदेश का अनुपालन नहीं किया जाता है, तो वह राज्य के मुख्य सचिव के खिलाफ अवमानना कार्यवाही शुरू करने के लिए विवश होगा.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)