कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा कि किसी क़ानून की अनुपस्थिति में न तो राज्य सरकारें, न केंद्र और न ही उनकी एजेंसियां इस आधार पर नागरिकों को लाभ या सुविधाएं देने से इनकार कर सकते हैं कि उनके फोन में आरोग्य सेतु ऐप डाउनलोड नहीं है.
कर्नाटक हाईकोर्ट ने सोमवार को साफ किया कि किसी कानून की अनुपस्थिति में न तो राज्य और न ही केंद्र सरकारें और न ही उनकी एजेंसियां इस आधार पर नागरिकों को लाभ या सुविधाएं देने से इनकार नहीं कर सकती हैं कि उनके फोन में आरोग्य सेतु ऐप डाउनलोड नहीं है.
लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, चीफ जस्टिस अभय ओका और जस्टिस अशोक एस. किनागी की खंडपीठ ने यह स्पष्टीकरण तब जारी किया जब वे अनिवर ए. अरविंद की याचिका पर सुनवाई कर रहे थे.
अरविंद ने जनसुविधाएं हासिल करने के लिए आरोग्य सेतु ऐप को अनिवार्य बनाए जाने को चुनौती दी थी.
अंतरिम राहत की मांग करने वाली याचिका में दो अनुरोध किए गए. पहला यह कि आरोग्य सेतु ऐप इंस्टाल न करने के कारण नागरिकों को सुविधाएं मुहैया कराने से इनकार न करने और दूसरा, यह कि इस याचिका के लंबित रहने के दौरान आरोग्य सेतु ऐप और उससे इकट्ठे किए गए डेटा को जारी रखने पर रोक लगाने की मांग की, चाहे वह डेटा लोगों से स्वैच्छिक या अस्वैच्छिक तरीके से इकट्ठा किया गया हो.
केंद्र सरकार की ओर से पेश होते हुए वकील एमएन कुमार ने अपनी आपत्तियां दाखिल करने को लेकर समय मांगा.
वहीं, याचिकाकर्ता की ओर से पेश होते हुए वरिष्ठ वकील कॉलिन गोंजाल्विस ने कहा कि कई बार समय मांगा जा चुका है.
उन्होंने अदालत को बताया कि कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग द्वारा जारी सर्कुलर के तहत लगातार आरोग्य सेतु ऐप के डाउनलोड और इस्तेमाल को अनिवार्य किया गया है.
कुमार ने जवाब देते हुए कहा कि सभी अधिकारी राष्ट्रीय कार्यकारी समिति (एनईसी) के आदेश का पालन करने के लिए बाध्य हैं. एनईसी के आदेश में साफ तौर पर कहा गया कि आरोग्य सेतु ऐप का इस्तेमाल अनिवार्य नहीं हैं. कोई अधिकारी एनईसी आदेश का उल्लंघन नहीं कर सकता है. अभी तक कोई अधिकारी किसी नागरिक को सेवाएं इनकार नहीं कर सकता है.
महामारी के दौरान नरम रुख अपनाने के केंद्र सरकार के अनुरोध को मंजूर करते हुए पीठ ने निर्देश दिया कि केंद्र तीन नवंबर तक अपनी आपत्तियां दाखिल करे. मामले की अगली सुनवाई के लिए 10 नवंबर की तारीख तय की गई है.
याचिका में कहा गया कि कोविड प्रबंधन के लिए राष्ट्रीय दिशानिर्देश भारत के संविधान के अनुच्छे 14, 19 और 21 के तहत मिले मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हैं, जिसके तहत सभी सार्वजनिक और निजी कर्मचारियों के लिए ऐप के इस्तेमाल को अनिवार्य बनाया गया है.
याचिका में कहा गया कि 11 मई को प्रौद्योगिकी और डेटा प्रबंधन पर अधिकार प्राप्त समूह के अध्यक्ष ने एक आदेश जारी कर आरोग्य सेतु ऐप से डेटा हासिल करने और उन्हें साझा करने को अधिसूचित किया था. यह कानून की प्रकृति नहीं है और बिना किसी कानून के इस प्रोटोकॉल के तहत आरोग्य सेतु ऐप के इस्तेमाल को अनिवार्य नहीं बनाया जा सकता है. ऐप अत्यधिक डेटा एकत्र कर रहा है और यह ‘पुट्टास्वामी फैसले’ में बताए गए डेटा न्यूनीकरण और उद्देश्य सीमा के सिद्धांतों के खिलाफ जाता है.
इसमें यह भी कहा गया है कि सरकार द्वारा स्वैच्छिक तौर पर प्रचारित किया जा रहा आरोग्य सेतु ऐप अब अनिवार्य बन गया है.