संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त मिशेल बैशलेट ने भारत में मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की गिरफ़्तारी को लेकर भी चिंता ज़ाहिर की है. उनकी टिप्पणी पर भारत की ओर से कहा गया है कि मानवाधिकार के नाम पर क़ानून का उल्लंघन माफ़ नहीं किया जा सकता.
जिनेवा/नई दिल्ली: संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त मिशेल बैशलेट ने भारत में मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी और गैर सरकारी संगठनों (एनजीओ) पर विदेशी अनुदान लेने के संबंध में लगाए गए प्रतिबंध को लेकर मंगलवार को चिंता व्यक्त की.
बैशलेट ने भारत सरकार से अपील की कि वह मानवाधिकार रक्षकों एवं एनजीओ के अधिकारों और अपने संगठनों की ओर से अहम काम करने की उनकी क्षमता की रक्षा करे.
उन्होंने एक बयान में कहा, ‘भारत का मजबूत नागरिक समाज रहा है, जो देश और दुनिया में मानवाधिकारों का समर्थन करने में अग्रणी रहा है, लेकिन मुझे चिंता है कि अस्पष्ट रूप से परिभाषित कानूनों का इस्तेमाल इन (मानवाधिकार की वकालत करने वाली) आवाजों को दबाने के लिए किए जाने की घटनाएं बढ़ रही हैं.’
बैशलेट ने खासकर ‘विदेशी अंशदान विनियमन कानून’ (एफसीआरए) के इस्तेमाल को चिंताजनक बताया जो जनहित के प्रतिकूल किसी भी गतिविधि के लिए विदेशी आर्थिक मदद लेने पर प्रतिबंध लगाता है.
🇮🇳 #India: UN Human Rights Chief @mbachelet draws attention to three different laws that are being used to restrict foreign funding for NGOs and stifle civil society voices, and have led to arrests of #HumanRights activists. Learn more: https://t.co/JG941TKgHD pic.twitter.com/fascWyqWkY
— UN Human Rights (@UNHumanRights) October 20, 2020
इस बीच, भारत ने गैर सरकारी संगठनों पर प्रतिबंधों और कार्यकर्ताओं की कथित गिरफ्तारी पर बैशलेट की चिंता पर मंगलवार को तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की और कहा कि मानवाधिकार के बहाने कानून का उल्लंघन माफ नहीं किया जा सकता तथा संयुक्त राष्ट्र इकाई से मामले को लेकर अधिक सुविज्ञ (जानकारी भरी) मत की आशा थी.
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने यह भी कहा कि भारत लोकतांत्रिक व्यवस्था वाला देश है, जो कानून के शासन और स्वतंत्र न्यायपालिका पर आधारित है.
उन्होंने कहा, ‘हमने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त की ओर से विदेशी अंशदान विनियमन अधिनियम (एफसीआरए) से संबंधित मुद्दे पर कुछ टिप्पणियां देखी हैं. भारत कानून के शासन और न्यायपालिका पर आधारित लोकतांत्रिक व्यवस्था वाला देश है.’
Read our statement on comments by UN High Commissioner for Human Rights on an issue related to Foreign Contribution Regulation Act (FCRA). pic.twitter.com/uPsMhktzJt
— Arindam Bagchi (@MEAIndia) October 20, 2020
श्रीवास्तव ने कहा, ‘कानून बनाना स्पष्ट तौर पर संप्रभु परमाधिकार है. हालांकि, मानवाधिकार के बहाने कानून का उल्लंघन माफ नहीं किया जा सकता. संयुक्त राष्ट्र इकाई से अधिक सुविज्ञ मत की आशा थी.’
इससे पहले, बैशलेट ने कहा कि एफसीआरए कानून अत्यधिक हस्तक्षेप करने वाले कदमों को न्यायोचित ठहराता है, जिनमें एनजीओ कार्यालयों पर आधिकारिक छापेमारी और बैंक खातों को सील करने से लेकर संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार निकायों से जुड़े नागरिक समाज संगठनों समेत एनजीओ के पंजीकरण निलंबित या रद्द करने तक के कदम शामिल हैं.
बेशलेट ने कहा, ‘मुझे चिंता है कि अस्पष्ट रूप से परिभाषित जनहित पर आधारित इस प्रकार के कदमों के कारण इस कानून का दुरुपयोग हो सकता है और इनका इस्तेमाल दरअसल मानवाधिकार संबंधी रिपोर्टिंग करने वाले और उनकी वकालत करने वाले एनजीओ को रोकने या दंडित करने के लिए किया जा रहा है, जिन्हें अधिकारी आलोचनात्मक प्रकृति का मानते हैं.’
उन्होंने कहा, ‘खासकर संशोधित नागरिकता कानून के खिलाफ इस साल की शुरुआत में देशभर में हुए प्रदर्शनों में संलिप्तता के कारण हालिया महीनों में मानवाधिकार कार्यकर्ताओं पर दबाव बढ़ा है.’
बैशलेट ने कहा, ‘प्रदर्शनों के संबंध में 1,500 से अधिक लोगों को कथित रूप से गिरफ्तार किया गया और कई लोगों के खिलाफ गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम कानून के तहत आरोप लगाया गया. यह ऐसा कानून है, जिसकी अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार मानकों के अनुरूप नहीं होने के कारण व्यापक निंदा की गई है.’
उन्होंने कहा कि कैथलिक पादरी स्टेन स्वामी (83) समेत कई लोगों को इस कानून के तहत आरोपी बनाया गया.
बता दें कि बीते सितंबर महीने में केंद्र सरकार ने विदेशी अंशदान विनियमन (संशोधन) विधेयक, 2020 को लोकसभा में पेश किया था. विपक्ष ने एफसीआरए में संशोधन का ये कहते हुए विरोध किया था कि सरकार इसके जरिये ‘आलोचकों पर निशाना’ साधना चाह रही है.
विधेयक में प्रावधान किया गया है कि केंद्र किसी एनजीओ या एसोसिएशन को अपना एफसीआरए प्रमाण-पत्र वापस करने की अनुमति दे सकेगा. यह संशोधन विदेशों से मिलने वाले चंदे से संबंधित नियमों को और कड़ा बनाने के लिए किया गया है.
विधेयक में कहा गया है कि कानून को और मजबूत करने की आवश्यकता इसलिए बढ़ गई, क्योंकि तमाम संगठनों द्वारा धन की हेराफेरी की जा रही है.
मसौदा विधेयक में कहा गया है कि कुल विदेशी कोष का 20 प्रतिशत से ज्यादा प्रशासनिक खर्च में इस्तेमाल नहीं होना चाहिए. वर्तमान में यह सीमा 50 प्रतिशत है.
विधेयक के लक्ष्य और कारणों के बारे में बयान में कहा गया है, ‘विदेशी अंशदान (योगदान) विधेयक 2010 को लोगों या एसोसिएशन या कंपनियों द्वारा विदेशी योगदान के इस्तेमाल को नियमित करने के लिए लागू किया गया था. राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा पहुंचाने वाली किसी भी गतिविधि के लिए विदेशी योगदान को लेने या इसके इस्तेमाल पर पाबंदी है.’
संशोधित एफसीआरए गैर सरकारी संगठनों के पदाधिकारियों के लिए आधार नंबर का उल्लेख करना अनिवार्य बनाता है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)