भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों के हित में काम करने वाले संगठनों का आरोप है कि ये मौतें भोपाल मेमोरियल हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर के आइसोलेशन वार्ड में हुईं. यह भी आरोप है कि मौत इसलिए हुई क्योंकि वार्ड में किसी भी डॉक्टर की पूर्णकालिक ड्यूटी नहीं लगाई गई थी.
भोपाल: वर्ष 1984 में हुई भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों के हित में काम करने वाले संगठनों ने आरोप लगाया है कि भोपाल मेमोरियल हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर (बीएमएचआरसी) के अधिकारी जान-बूझकर जिला और राज्य सरकार के संबंधित अधिकारियों को कोविड-19 बीमारी से मारे गए गैस पीड़ितों की संख्या कम करके बता रहे हैं.
गैस पीड़ितों के कई संगठनों का प्रतिनिधित्व करने वाले ‘भोपाल ग्रुप फॉर इनफॉरमेशन एंड एक्शन’ की रचना ढींगरा ने शुक्रवार को जारी एक बयान में कहा कि बीएमएचआरसी के आइसोलेशन वार्ड में कोविड- 19 की वजह से हुई सात गैस पीड़ितों की मौतों की अस्पताल द्वारा न तो भोपाल जिला प्रशासन और न ही मध्य प्रदेश सरकार एवं केंद्र सरकार के अधिकारियों को जानकारी दी गई है.
संगठनों ने प्रदेश के अतिरिक्त मुख्य सचिव स्वास्थ्य, निदेशक गैस राहत और भोपाल के जिलाधिकारी को पत्र लिखकर मामले में अस्पताल के अधिकारियों के खिलाफ जांच और कार्रवाई की मांग की है.
ढींगरा ने कहा कि कोविड-19 से गैस पीड़ित सात मृतकों में से दो की मौत अगस्त में और पांच की मृत्यु सितंबर में हुई थी और इनमें ज्यादातर मरीज पल्मोनरी (फेफड़े संबंधी बीमारी) विभाग के थे.
उन्होंने कहा कि ये सभी मौतें अस्पताल के आइसोलेशन वार्ड में हुई. इन सात मृतकों के नाम मध्य प्रदेश सरकार और जिला प्रशासन को भी नहीं दिए गए हैं. इसी की वजह से इन मृतकों की गिनती कोविड-19 के स्वास्थ्य बुलेटिन में भी नहीं हो पाई है.
हालांकि, भोपाल के मुख्य चिकित्सा और स्वास्थ्य अधिकारी (सीएमएचओ) प्रभाकर तिवारी ने कहा कि संबंधित अधिकारी इन मौतों के बारे में जानकारी देते हैं तो इसे बुलेटिन में शामिल किया जाएगा.
उन्होंने यह भी कहा कि जब भी विभाग इन मौतों की जांच के निर्देश देगा, इसकी जांच की जाएगी.
ढींगरा ने कहा कि 20 सितंबर को भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) को उनके द्वारा संचालित अस्पताल बीएमएचआरसी के आइसोलेशन वार्ड में सितंबर माह में गैस पीड़ितों की मृत्यु होने की खबर भी हमने दी थी.
उन्होंने आरोप लगाया कि ये मौतें आइसोलेशन वार्ड में खराब व्यवस्था की कारण हुईं, क्योंकि इन मरीजों को देखने के लिए आइसोलेशन वार्ड में एक भी डॉक्टर की पूर्णकालिक ड्यूटी नहीं लगाई गई थी और आज भी वही हालात बरकरार है.
उन्होंने कहा कि ऐसी ही शिकायत उच्चतम न्यायालय द्वारा गठित निगरानी समिति को भी सौंपी गई थी और उनके द्वारा जवाब मांगने पर भी बीएमएचआरसी द्वारा कोई जवाब नहीं दिया गया है.
गैस पीड़ितों के संगठनों ने यह भी मांग की है कि जिला प्रशासन इस बात की भी जांच कराए की कोरोना वायरस से संक्रमण की शुरुआत से लेकर अभी तक कोविड-19 पीड़ित कितने गैस पीड़ितों की मृत्यु अस्पताल में हुई है और दोषी अधिकारियों पर कार्रवाई की जाए.
उन्होंने कहा कि कोविड-19 संक्रमण का असर सामान्य आबादी के मुकाबले गैस पीड़ितों में कई गुना ज्यादा है. सबसे बड़ी विडंबना है कि जो अस्पताल सिर्फ गैस पीड़ितों को सही इलाज देने के उद्देश्य से बनाया गया था, वही अस्पताल गैस पीड़ितों में कोविड-19 की वजह से हो रही मौतों के आंकड़ों को कम करने में लगा है.
बता दें कि बीते जून महीने में भोपाल ग्रुप फॉर इन्फॉर्मेशन एंड एक्शन के एक रिपोर्ट में कहा गया था कि भोपाल में कोविड-19 से जान गंवाने वाले लोगों में 75 प्रतिशत गैस पीड़ित थे. भोपाल शहर में 11 जून तक कोरोना से 60 मौतें हुई थीं, जिनमें से 48 गैस पीड़ित थे.
गौरतलब है कि दिसंबर 1984 में भोपाल के एक कीटनाशक संयंत्र यूनियन कार्बाइड कारखाने से जहरीली गैस का रिसाव हुआ था, जिसमें हजारों लोगों की मौत हो गई थी. यह विश्व की सबसे बड़ी औद्योगिक त्रासदियों में से एक थी.
इस दुर्घटना के पीड़ित अब तक विभिन्न गंभीर बीमारियों से जूझ रहे हैं, जिनमें दिल, फेफड़े, सांस संबंधी रोग और किडनी व कैंसर आदि मुख्य बीमारियां हैं.
तब लीक हुई मिथाइल आइसोसाइनाइट (एमआईसी) नामक जहरीली गैस के दुष्प्रभाव गैस पीड़ितों की तीसरी पीढ़ी तक में देखे जा रहे हैं. गैस कांड के कई वर्षों बाद जन्मे लोग भी गंभीर बीमारियों का शिकार हैं.
गैस पीड़ितों के बच्चे अब तक शारीरिक कमियों के साथ पैदा हो रहे हैं, लेकिन अब कोरोना संक्रमण के चलते गैस पीड़ितों के लिए हालात और भी अधिक भयावह हो गए हैं.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)