कोई भी क़ानून से ऊपर नहीं है, लेकिन कुछ लोगों को अधिक संरक्षण की ज़रूरत है: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने पालघर लिंचिंग और लॉकडाउन के बीच बांद्रा रेलवे स्टेशन के बाहर प्रवासी श्रमिकों की भीड़ जमा होने पर पत्रकार अर्णब गोस्वामी पर 'भड़काऊ' टिप्पणियों के लिए दर्ज दो एफआईआर की जांच पर रोक लगाने के बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश के ख़िलाफ़ महाराष्ट्र सरकार की याचिका की सुनवाई में यह टिप्पणी की.

(फोटो: पीटीआई)

सुप्रीम कोर्ट ने पालघर लिंचिंग और लॉकडाउन के बीच बांद्रा रेलवे स्टेशन के बाहर प्रवासी श्रमिकों की भीड़ जमा होने पर पत्रकार अर्णब गोस्वामी पर ‘भड़काऊ’ टिप्पणियों के लिए दर्ज दो एफआईआर की जांच पर रोक लगाने के बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश के ख़िलाफ़ महाराष्ट्र सरकार की याचिका की सुनवाई में यह टिप्पणी की.

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(फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने कथित रूप से भड़काने वाली टिप्पणियां करने के मामले में रिपब्लिक टीवी के प्रधान संपादक अर्णब गोस्वामी के खिलाफ दर्ज दो प्राथमिकियों की जांच पर रोक लगाने के बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश का महाराष्ट्र सरकार द्वारा विरोध करने पर सोमवार को कहा कि कुछ व्यक्तियों को अधिक गंभीरता से निशाना बनाया जाता है और उन्हें अधिक संरक्षण की जरूरत है.

इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, अदालत ने कहा कि ‘प्रेस की आजादी महत्वपूर्ण है, लेकिन रिपोर्टिंग की भी जिम्मेदारी होती है’ और ‘कुछ विषयों पर सोच-समझकर बोला जाना चाहिए.

सीजेआई एसए बोबडे, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एल. नागेश्वर राव की पीठ ने यह टिप्पणी उस वक्त की, जब महाराष्ट्र सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने हाईकोर्ट के 30 जून के आदेश पर सवाल उठाया और कहा कि यह संकेत नहीं दिया जाना चाहिए कि कुछ लोग कानून से ऊपर हैं.

पीठ ने कहा, ‘कोई भी कानून से ऊपर नहीं है, कुछ व्यक्तियों को सत्ता द्वारा अधिक गंभीरता से निशाना बनाया जाता है. आजकल इस तरह की संस्कृति हो गई है जिसमें कुछ व्यक्तियों को अधिक संरक्षण की आवश्यकता है.’

शीर्ष अदालत रिपब्लिक टीवी के प्रधान संपादक के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी पर रोक लगाने के हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली महाराष्ट्र की उद्धव ठाकरे सरकार की अपील पर सुनवाई कर रही थी.

ये प्राथमिकी कोविड-19 महामारी के कारण लॉकडाउन के दौरान पालघर में साधुओं की पीट-पीटकर हत्या और मुंबई के बांद्रा इलाके में बड़ी संख्या में प्रवासी कामगारों के जमावड़े के बारे में टीवी कार्यक्रमों में अर्णब गोस्वामी की टिप्पणियों के संबंध में दर्ज की गई थीं.

वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से सुनवाई के दौरान अर्णब गोस्वामी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने कहा कि ये प्राथमिकी सही नहीं है और एक राजनीतिक दल ने कई राज्यों में मामले दर्ज कराए हैं.

सिंघवी ने कहा कि हाईकोर्ट ने प्राथमिकी पर रोक लगा दी है और जांच भी निलंबित कर दी है जो नहीं किया जाना चाहिए था.

उन्होंने कहा, ‘एक आपराधिक मामले में राज्य को जांच नहीं करने के लिए कैसे कहा जा सकता है? आपको भी देखना चाहिए कि यह संदेश नहीं जाए कि कुछ लोग कानून से ऊपर हैं.’

हालांकि इस पर पीठ ने टिप्पणी की, ‘यह विशुद्ध रूप से मौखिक मामले से जुड़ा बौद्धिक मसला है. यह कोई हथियार आदि की बरामदगी से संबंधित नहीं है. आप को जांच का अधिकार है लेकिन आप किसी को परेशान नहीं कर सकते. यह इस तरह से नहीं किया जा सकता जैसा किया गया है.’

पीठ ने सिंघवी से सवाल किया कि वह बताएं कि सरकार क्या नहीं करेगी. इस पर सिंघवी ने कहा कि गिरफ्तारी नहीं होगी और पुलिस के सामने पेश होने के लिए अर्णब को 48 घंटे पहले सम्मन जारी किए जाएंगे.

महाराष्ट्र सरकार की इस दलील का साल्वे ने विरोध किया कि जांच रोकी नहीं जानी चाहिए. उन्होंने कहा कि पुलिस अर्णब से करीब 17 घंटे पूछताछ कर चुकी है और और समाचार चैनल के संपादकीय कर्मचारियों से करीब 160 घंटे पूछताछ की गई है.

उन्होंने कहा, ‘यह किसी तरह का मजाक हो रहा है. चैनल के सीईओ, सीएफओ ओर पूरे संपादकीय स्टाफ से पूछताछ की जा चुकी है.’

इस पर पीठ ने कहा, ‘हम इस दलील का समर्थन नहीं करते हें कि किसी से सवाल नहीं किए जाने चाहिए.’

साल्वे ने जब कहा कि व्यक्ति मानहानि का मामला दायर कर सकता है लेकिन यह प्राथमिकी दर्ज करने का मामला नहीं हैं, तो पीठ ने कहा, ‘हम आपसे कुछ न कुछ आश्वासन चाहते हैं और कुछ ऐसी स्थिति हैं जिनमें आपको सावधानी बरतनी चाहिए.’

पीठ ने इस मामले को दो सप्ताह बाद सूचीबद्ध कर दिया. पीठ ने हाईकोर्ट के रोक लगाने के आदेश को हटाने की महाराष्ट्र सरकार की अपील पर कोई आदेश पारित नहीं किया लेकिन अर्णब और अन्य को इस पर नोटिस जारी किए.

हाईकोर्ट ने 30 जून के आदेश में इस तथ्य का जिक्र किया था कि अर्णब गोस्वामी की टिप्पणियां कांग्रेस और उसकी अध्यक्ष सोनिया गांधी की ओर इंगित थीं, लेकिन उन्होंने ऐसा कोई वक्तव्य नहीं दिया जो विभिन्न सांप्रदायिक समूहों के बीच सार्वजनिक कटुता या हिंसा को उकसाने वाला हो.

हाईकोर्ट ने अपने आदेश में शीर्ष अदालत की इस टिप्पणी को उद्धृत किया कि भारत की आजादी उस समय तक सुरक्षित रहेगी जब तक पत्रकारों में किसी प्रकार की धमकी या भय के बगैर बोलने का साहस रहेगा.

हाईकोर्ट ने यह भी कहा था कि समाचार जगत को एक ही दृष्टिकोण का पालन करने के लिए बाध्य किए जाने पर नागरिकों की स्वतंत्रता भी नहीं रह पाएगी.

हाईकोर्ट ने इन दो प्राथमिकी को निरस्त करने के लिए अर्णब गोस्वामी की याचिका अंतिम सुनवाई के लिए स्वीकार करते हुये पुलिस को निर्देश दिया था कि इस मामले का निबटारा होने तक कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं की जाये.

अर्णब के खिलाफ एक प्राथमिकी 21 अप्रैल को पालघर घटना के सिलसिले में नागपुर में दर्ज हुयी थी जिसे बाद में शीर्ष अदालत के निर्देश पर मुंबई के एनएम जोशी मार्ग थाने में स्थानांतरित कर दिया गया.

वहीं, दूसरी प्राथमिकी 29 अप्रैल को बांद्रा रेलवे स्टेशन के बाहर एक मस्जिद के निकट प्रवासी कामगारों के एकत्र होने की घटना के संबंध में पायधोनी थाने में दर्ज हुई थी.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)