फरवरी में दिल्ली में हुई हिंसा मामले में जामिया मिलिया इस्लामिया के छात्र आसिफ़ इक़बाल तन्हा को 20 मई को गिरफ़्तार किया गया था. उनकी ज़मानत याचिका रद्द करते हुए स्थानीय अदालत के जज ने कहा कि सीएए के नाम पर हंगामेदार प्रदर्शन दिखाते हैं कि यह देश के ख़िलाफ़ असंतोष पैदा करने के उद्देश्य से किए गए थे.
नई दिल्लीः दिल्ली की एक स्थानीय अदालत ने उत्तर पूर्वी दिल्ली दंगा मामले में गिरफ्तार जामिया मिलिया इस्लामिया के छात्र आसिफ इकबाल तन्हा की जमानत याचिका मंगलवार को खारिज कर दी.
अदालत ने आसिफ की जमानत याचिका खारिज करते हुए कहा कि उन्होंने कथित तौर पर साजिश में सक्रिय भूमिका निभाई है.
आसिफ को दिल्ली दंगे से जुड़े एक मामले में गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनिय (यूएपीए) के तहत गिरफ्तार किया गया था.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अमिताभ रावत ने कहा कि नागरिकता संशोधन बिल की आड़ में हिंसक प्रदर्शन और अन्य हिंसक गतिविधियों से पता चलता है कि देश के खिलाफ असंतोष पैदा करने के इरादे से यह सब किया गया था.
पुलिस ने आसिफ पर जेएनयू के पूर्व छात्र उमर खालिद और जेएनयू छात्र शरजील इमाम के साथ मिलकर मुस्लिम बहुल इलाकों में चक्का जाम कर सरकार को उखाड़ फेंककर साजिश रचने का आरोप लगाया था.
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अमिताभ रावत ने कहा, ‘ऐसी गतिविधियों जिनसे देश की एकता और अखंडता के समक्ष खतरा पैदा हो, विभिन्न वर्गों के लोगों के बीच सामाजिक वैमनस्य और आतंक का माहौल पैदा हो, वे आतंकवादी कृत्य है.’
अदालत ने अपने आदेश में कहा, यह पूरी साजिश दिसंबर 2019 से शुरू हुई थी. जानबूझकर सड़कों को अवरुद्ध कर असुविधा फैलाई गई, जरूरी सेवाओं और सामानों की आपूर्ति बाधित की गई, जिसके परिणामस्वरूप फरवरी में हिंसा हुई. मिश्रित आबादी वाले क्षेत्रों में सड़कों को अवरुद्ध करने का लक्ष्य बनाया गया और आतंक पैदा किया गया. महिला प्रदर्शनकारियों को आगे करके पुलिसकर्मियों पर हमला आतंकवादी कृत्य के दायरे में आएगा.
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अमिताभ रावत ने 26 अक्टूबर को कहा कि इस बात पर भरोसा करने के पर्याप्त आधार हैं कि आसिफ के खिलाफ लगे आरोप प्रथमदृष्ट्या सही हैं.
न्यायाधीश ने कहा, ‘स्पष्ट रूप से यह कहना चाहूंगा कि देश के सभी नागरिकों को विरोध प्रदर्शन करने की स्वतंत्रता है, लेकिन वह उचित पाबंदियों के अधीन है.’
उन्होंने कहा, ‘इस बात में भी कोई संदेह नहीं कि हर नागरिक किसी कानून के बारे में अपनी राय रख सकता है जिसे वह अपनी समझ के मुताबिक अनुचित मानता है. किसी भी कानून के खिलाफ प्रदर्शन करने की स्वतंत्रता व अधिकार नागरिकों के पास है.’
आदेश में कहा गया, ‘हालांकि सीएए के नाम पर हंगामेदार प्रदर्शन और उसके साथ हिंसक गतिविधियां यह दिखाती हैं कि यह भारत के खिलाफ असंतोष पैदा करने के उद्देश्य से की गई थी.’
आदेश में कहा कि गवाहों के बयान से आसिफ के खिलाफ पर्याप्त आपत्तिजनक सामग्री है और एक गवाह ने स्पष्ट रूप से कहा कि प्रदर्शन की पूरी योजना पिंजरा तोड़, जामिया समन्वय समिति (जेसीसी) के सदस्यों और यूनाइटेड अगेंस्ट हेट द्वारा बनाई गई थी.
पुलिस का आरोप है कि आसिफ ने दंगों में इस्तेमाल के लिए मोबाइल फोन सिम खरीदने के लिए फर्जी दस्तावेजों का उपयोग किया. विरोध प्रदर्शन आयोजित करने के लिए यह सिम जामिया के एक और छात्र और सफूरा जरगर को दी गई.
स्क्रॉल की रिपोर्ट के मुताबिक, अदालत में सुनवाई के दौरान तन्हा के वकील सिद्धार्थ अग्रवाल ने कहा कि दिल्ली पुलिस चार्जशीट और अन्य दस्तावेज से पता चलता है कि तान्हा किसी भी अपराध में शामिल नहीं था.
अग्रवाल ने कहा, ‘आसिफ फरवरी 2020 में हुए दिल्ली दंगों के दौरान वहां मौजूद भी नहीं था और ऐसे किसी भी विरोध प्रदर्शन स्थल का दौरा नहीं था, जहां दंगे और हिंसा की घटनाएं हुई थीं.’
वकील ने कहा कि आसिफ के खिलाफ निराधार, मनगढ़ंत और झूठे आधारों पर यूएपीए लगाया गया है. बता दें कि यह दूसरी बार है जब आसिफ की जमानत याचिका खारिज की गई है.
मालूम हो कि इस साल फरवरी में उत्तर पूर्वी दिल्ली में हुई हिंसा मामले में जामिया मिलिया इस्लामिया के छात्र आसिफ इकबाल तन्हा को 20 मई को यूएपीए के तहत गिरफ्तार किया गया था.
आसिफ को दंगों के संबंध में सोची समझी साजिश का कथित रूप से हिस्सा होने के मामले में गिरफ्तार किया गया था.
गौरतलब है कि फरवरी में उत्तर पूर्वी दिल्ली में संशोधित नागरिकता कानून के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान सांप्रदायिक हिंसा भड़क गई थी. 13 अप्रैल तक पुलिस ने इस मामले में 800 से अधिक गिरफ्तारियां की थीं.
नए नागरिकता कानून के समर्थकों और इसका विरोध करने वालों के बीच उत्तर पूर्वी दिल्ली में 23 से 26 फरवरी के बीच झड़पें हुईं थीं, जिसमें 53 लोग मारे गए थे और सैकड़ों लोग घायल हो गए थे.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)