उपचुनाव के प्रचार के दौरान कांग्रेस ने सरकार में वापसी का दावा करते हुए एक ‘आरोप-पत्र’ में भाजपा सरकार में हुए घोटालों की सूची देते हुए इनकी जांच करवाने की बात कही है. विधानसभा चुनाव से पहले भी पार्टी ने ऐसा पत्र जारी करते हुए यही कहा था. हालांकि सरकार आने के बाद इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया.
‘कांग्रेस की सरकार फिर वापस आ रही है. व्यापमं घोटाले की जांच हम फिर से करने वाले हैं. ई-टेंडर घोटाले के साथ-साथ बुंदेलखंड पैकेज की भी जांच करने वाले हैं.’
उक्त शब्द मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष कमलनाथ ने बीते 28 अक्टूबर को मध्य प्रदेश की बड़ा मलहरा विधानसभा सीट पर उपचुनाव प्रचार के दौरान आयोजित सभा में कहे थे.
संयोगवश इसी दिन कांग्रेस की ओर से सत्तारूढ़ भाजपा के खिलाफ एक ‘आरोप-पत्र’ भी जारी किया गया, जिसमें दावा किया गया कि सात माह की शिवराज सरकार के दौरान 17 घोटाले हो चुके हैं. ‘आरोप-पत्र’ में उन घोटालों का सूचीवार संक्षिप्त विवरण भी दिया गया. हालांकि इस संबंध में कोई दस्तावेज पेश नहीं किए गए.
वहीं, इस पर प्रतिक्रिया देते हुए भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष वीडी शर्मा ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके कांग्रेस की 15 महीने की कमलनाथ सरकार पर भी कई गंभीर घोटाले किए जाने के आरोप लगाए, लेकिन उन्होंने भी अपने आरोपों के समर्थन में कोई दस्तावेज पेश नहीं किया.
बात कांग्रेस द्वारा जारी ‘आरोप-पत्र’ की करें, तो इसमें शिवराज के सात माह के वर्तमान कार्यकाल के घोटालों के अतिरिक्त भाजपा के पुराने पंद्रह साल के शासन में हुए 15 चर्चित घोटालों का भी जिक्र किया गया है, जिसमें व्यापमं घोटाला, ई-टेंडर घोटाला, डंपर घोटाला, सिंहस्थ घोटाला, नर्मदा वृक्षारोपण घोटाला आदि का प्रमुख तौर पर उल्लेख है.
यहां कमलनाथ के उपरोक्त बयान और कांग्रेस के ‘आरोप-पत्र’ को संयुक्त रूप से देखें तो खास बात यह सामने आती है कि 2018 के विधानसभा चुनावों में भी कांग्रेस ने ऐसा ही एक ‘आरोप-पत्र’ जारी किया था.
24 पृष्ठीय उस दस्तावेज में भी भाजपा सरकार में हुए घोटालों की लंबी सूची पेश की गई थी और व्यापमं, ई-टेंडर, डंपर, सिंहस्थ, नर्मदा वृक्षारोपण आदि घोटालों का विशेष तौर पर उल्लेख किया था.
साथ ही, ‘आरोप-पत्र’ के साथ जारी ‘वचन-पत्र’ के बिंदु 41.5 में वचन दिया गया था कि राज्य में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद ‘जन आयोग’ का गठन करके भाजपा सरकार में हुए घोटालों की जांच कराई जाएगी और दोषियों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई करेंगे.
लेकिन सरकार बनने के बाद ऐसा कुछ नहीं हुआ. नतीजतन वे लोग जो ‘आरोप-पत्र’ और ‘वचन-पत्र’ की निर्माण प्रक्रिया से जुड़े थे, कांग्रेस सरकार के खिलाफ मुखर हो उठे थे.
इसलिए अब उपचुनावों में जब कांग्रेस ने फिर से ‘आरोप-पत्र’ जारी करने और भाजपा के घोटालों की जांच कराने की घोषणा का दांव खेला है तो कांग्रेस की नीयत पर शक किया जा रहा है.
आरटीआई कार्यकर्ता अजय दुबे भी 2018 के ‘आरोप-पत्र’ व ‘वचन-पत्र’ निर्माण की प्रक्रिया से जुड़े रहे थे लेकिन बाद में कमलनाथ सरकार द्वारा भाजपा के घोटालों के खिलाफ कोई कार्रवाई होती न देख उन्होंने विरोध स्वरूप पार्टी से किनारा कर लिया था.
अजय कहते हैं, ‘इन्होंने घोटालों की जांच और भ्रष्टाचार की रोकथाम के लिए जन आयोग और लोक आयोग बनाने का वचन दिया था, लेकिन 15 महीने के दौरान मुख्यमंत्री कमलनाथ और दिग्विजय सिंह ने हमसे ‘आरोप-पत्र’, ‘वचन-पत्र’ और भाजपा के घोटालों की जांच के संबंध में बात तक नहीं की. इन्होंने जांच शब्द को अपनी डिक्शनरी से गायब कर दिया था.’
वे आगे कहते हैं, ‘कमलनाथ और दिग्विजय सिंह सिंधिया को तो गद्दार कहते हैं, लेकिन स्वयं ‘आरोप-पत्र’ और ‘वचन-पत्र’ के साथ गद्दारी कर चुके हैं. इनकी नीयत पर शक न किए जाने का कोई आधार नहीं है.’
अब कांग्रेस सरकार में आई तो भाजपा सरकार के घोटालों की जांच होगी, इस संबंध में कांग्रेस की नीयत पर शक करने का वाजिब आधार भी है क्योंकि 15 महीनों की कमलनाथ सरकार में भाजपा के घोटालों की जांच करने के बजाय घोटालों से जुड़े लोगों को या तो उपकृत करने का काम किया गया था या फिर घोटाले हुए ही नहीं, ऐसा कहकर भाजपा को क्लीन चिट दी गई थी.
अब फिर कमलनाथ, सरकार में आने पर जिस व्यापमं घोटाले की जांच की बात कर रहे हैं, उसी व्यापमं घोटाले में संलिप्तता के चलते दो सालों तक जेल में रहे संजीव सक्सेना को कांग्रेस ने दिसंबर 2018 में प्रदेश कांग्रेस का महासचिव नियुक्त किया था.
हालांकि, कांग्रेस प्रवक्ता रवि सक्सेना का कहना है कि संजीव को पार्टी में तब पद दिया गया जब वे मामले में बरी हो गए थे. लेकिन, व्यापमं के व्हिसल ब्लोअर आनंद राय कहते हैं, ‘संजीव पांच मामलों में संलिप्त पाए गए थे और अब तक उन पर मुकदमे चल रहे हैं.’
यहां बता दें कि संजीव को अगस्त 2019 में वनरक्षक भर्ती घोटाले में अदालत से क्लीन चिट मिली थी लेकिन उन्हें कांग्रेस का महासचिव दिसंबर 2018 में ही बना दिया गया था.
उससे पहले कांग्रेस उन्हें 2018 के विधानसभा चुनावों में भोपाल-दक्षिण विधानसभा सीट से चुनाव लड़ाने की फिराक में थी, लेकिन उनके नाम के कयास लगते ही विरोध के स्वर बुलंद हो गए थे इसलिए कांग्रेस के नीयत पर शक का वाजिब आधार भी है.
इसी तरह 2019 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस ने इंदौर लोकसभा सीट से उन पंकज संघवी को चुनाव लड़ाया था जिनके ग्रुप ऑफ इंस्टिट्यूशन ऑफ गुजराती समाज ट्रस्ट के तहत चलने वाले पांच स्कूल-कॉलेजों में व्यापमं घोटाले के तहत सामूहिक नकल के मामले पकड़ में आए थे.
कुछ ऐसा ही डॉ. गुलाब सिंह किरार के मामले में भी हुआ था. व्यापमं घोटाले में आरोपी रहे किरार एक समय भाजपा से जुड़े हुए थे और पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के करीबियों में शुमार होते थे व उनकी सरकार में राज्यमंत्री का दर्जा रखते थे.
उन्हें स्वयं राहुल गांधी ने 2019 के विधानसभा चुनावों के दौरान कांग्रेस पार्टी की सदस्यता दिलाई थी. चर्चा तब यह भी थी कि पार्टी उन्हें पोहरी विधानसभा सीट से चुनाव लड़ाने वाली थी, लेकिन जब हर ओर इसका विरोध हुआ तो पार्टी अपनी घोषणा से पलट गई और डॉ. किरार के पार्टी में शामिल होने को झूठी खबर बताया.
लेकिन, इस झूठी खबर पर सच की मुहर तब लग गई जब उन्हीं डॉ. किरार को पार्टी ने 2018 के लोकसभा चुनावों में अपने स्टार प्रचारकों की सूची में शामिल कर लिया.
इसी तरह, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के साले संजय मसानी पर एक समय कांग्रेस आरोप लगाती थी कि वे ही शिवराज के लिए व्यापमं, डंपर आदि घोटालों को संभालते थे. आज वही मसानी प्रदेश कांग्रेस में उपाध्यक्ष हैं.
वहीं, सरकार बनते ही कांग्रेस ने अभिभाषक अजय गुप्ता और शशांक शेखर को सरकारी अधिवक्ता नियुक्त किया था. जिस पर भाजपा ने आपत्ति जताई थी और दावा किया था कि दोनों ही वकील व्यापमं घोटाले के आरोपियों के वकील रह चुके हैं और अब वे ही व्यापमं घोटाले के आरोपियों को सजा कैसे दिलाएंगे?
इतना ही नहीं, 2018 में कांग्रेस ने भाजपा के जिन घोटालों की जांच कराने के नाम पर सरकार बनाई थी, सत्ता पाने के बाद बारी-बारी से उनमें भाजपा को क्लीन चिट देने का काम भी किया.
सिंहस्थ कुंभ घोटाले में स्वयं पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के बेटे शहरी विकास मंत्री जयवर्द्धन सिंह ने भाजपा सरकार को क्लीन चिट दे दी थी. इसी तरह वन मंत्री उमंग सिंघार ने शिवराज की नर्मदा यात्रा के दौरान हुए पौधारोपण घोटाले में भी क्लीन चिट दे दी थी.
दोनों ही मामलों में बाद में दिग्विजय सिंह ने आपत्ति दर्ज कराई तो कांग्रेस ने जांच की बात कही. इसी तरह मंदसौर में किसानों पर हुए गोलीकांड पर भी कांग्रेस ने एक समय भाजपा सरकार को क्लीन चिट देने का काम किया था.
रवि सक्सेना इस संबंध में कांग्रेस का पक्ष रखते हुए कहते हैं, ‘वह शिवराज समर्थक सरकारी अफसरों की कारस्तानी थी. उन्होंने ही विधानसभाओं में ऐसे जवाब बनाकर दिए थे और हमारे मंत्रियों ने उन्हें विधानसभा के पटल पर रख दिया था. वह एक प्रशासनिक त्रुटि थी जिसे हमने तत्काल सुधार लिया था.’
व्यापमं घोटाले के व्हिसलब्लोअर आनंद राय कहते हैं, ‘अब फिर से आरोप-पत्र लाए हैं और कमलनाथ कह रहे हैं कि व्यापमं व ई-टेंडर पर कार्रवाई करेंगे. जनता ने जब आपको पांच साल दिए थे, तो 16 महीने तक इंच भर भी नहीं हिले और अब फिर दावा कर रहे हैं कि कार्रवाई करेंगे. ये भी बताना चाहिए कि अब फिर सरकार बनवा दी तो कितने सालों में कार्रवाई करेंगे?’
वे आगे कहते हैं, ‘कांग्रेस ने हमें आरोप-पत्र और वचन-पत्र बनाने की प्रक्रिया में इसलिए शामिल किया था ताकि हमारे द्वारा सामने लाए जा रहे भाजपा सरकार के घोटालों पर उसे घेर सकें, लेकिन सरकार बनने के बाद जब कमलनाथ को आरोप-पत्र और वचन-पत्र की याद दिलाने जाते तो हमें अनसुना कर जाने की कह देते थे. वे कार्रवाई करते भी कैसे? व्यापमं घोटाले के सभी रसूखदार आरोपियों से जो घिरे रहते थे और उन्हें चुनाव भी लड़ाते थे.’
अजय दुबे कहते हैं कि काठ की हांडी बार-बार नहीं चढ़ती, लेकिन कांग्रेस ‘आरोप-पत्र’ लाकर और जांच की बात करके यह नाकाम कोशिश फिर से कर रही है.
वे कहते हैं, ‘कमलनाथ और दिग्विजय सिंह को शर्म आनी चाहिए कि सरकार में रहते जिस मुद्दे पर उन्होंने मुंह नहीं खोला, हमसे एक बार बात तक करना जरूरी नहीं समझा फिर चाहे बात सिंहस्थ घोटाले की हो या फिर व्यापमं, ई-टेंडर और बुंदेलखंड पैकेज घोटाले की, आज उस पर जनता को फिर झूठा वादा कर रहे हैं.’
इस पर रवि सक्सेना कहते हैं, ‘हमारी कार्रवाई धीरे-धीरे स्वरूप ले रही थी, उसी से तो घबराकर भाजपा ने हमारी सरकार गिराई थी क्योंकि उन्हें लग गया था कि जांच आगे बढ़ी तो वे जेल चले जाएंगे.’
हालांकि रवि के इन दावों को सिरे से खारिज करते हुए आनंद राय कहते हैं, ‘अगर इन्होंने कार्रवाई की होती तो सरकार ही नहीं गिरती. नया आरोप-पत्र लाकर बस जनता की आंखों में धूल झोंकी जा रही है. हकीकत तो यह है कि ये भाजपा से मिल-जुलकर काम करते हैं. दोनों पक्ष ही घोटालेबाज हैं.’
अपने आरोपों के समर्थन में वे उदाहरण भी देते हैं और कहते हैं, ‘मैंने सरकार गिरने के साल भर पहले ही नरोत्तम मिश्रा का स्टिंग ऑपरेशन करके वीडियो कमलनाथ को सौंप दिया था जिसमें नरोत्तम विधायकों की खरीद-फरोख्त करके सरकार गिराने का सौदा कर रहे थे. लेकिन, कमलनाथ ने सालभर तक उस पर कोई कार्रवाई नहीं की जबकि उन्हें करना यह था कि नरोत्तम पर भ्रष्टाचार रोधी कानून और राजद्रोह के तहत कार्रवाई करते.’
आनंद आगे कहते हैं, ‘इसका क्या मतलब निकलता है? इस सबके बाद भी अगर आप उम्मीद करते हैं कि सरकार बनाने पर कमलनाथ भाजपा के घोटालों पर कार्रवाई करेंगे तो भूल जाइए.’
अजय भी कांग्रेस पर भाजपा से मिलीभगत के आरोप लगाते हैं. वे कहते हैं, ‘कमलनाथ और दिग्विजय के अपने निजी हित हैं. केंद्र में भाजपा की सरकार है. इसलिए वे अपने निजी हितों के चलते उससे टकराना नहीं चाहते. तभी तो पूरा चुनाव बीत चला लेकिन इनकी ही सरकार में उजागर हुए हनीट्रैप कांड पर कांग्रेस ने एक शब्द भी नहीं बोला और न ही आरोप-पत्र में उसका जिक्र किया जबकि हनीट्रैप में भाजपा के नेता बुरी तरह फंसे हुए थे.’
बहरहाल, यह बात शायद कांग्रेस नेता भी समझते हैं कि सरकार में रहने के दौरान वे भाजपा के घोटालों पर कार्रवाई करने के वादे को निभा नहीं पाए थे.
इसलिए आरोप-पत्र जारी करते समय पूर्व मंत्री सज्जन सिंह वर्मा कहते नजर आए, ‘हमसे यह गलती हुई कि वचन-पत्र को पूरा करने में लगे रहे और घोटालों की जांच में पीछे रहे गए.’
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं.)