अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि पत्र की टाइमिंग और प्रेस कॉन्फ्रेंस के ज़रिये इसे सार्वजनिक करना बिल्कुल संदिग्ध कहा जा सकता है. पर ये पत्र सीजेआई बोबडे को लिखा गया था और वे इन आरोपों से वाक़िफ हैं, इसलिए अटॉर्नी जनरल द्वारा अवमानना कार्यवाही की इजाज़त देना उचित नहीं होगा.
नई दिल्ली: अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने सुप्रीम कोर्ट के एक न्यायाधीश जस्टिस एनवी रमन्ना और आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट के कुछ अन्य न्यायाधीशों के विरुद्ध आरोप लगाने पर राज्य के मुख्यमंत्री जगनमोहन रेड्डी तथा उनके प्रधान सलाहकार अजेय कल्लम के खिलाफ अवमानना कार्यवाही शुरू करने की सहमति नहीं दी.
वेणुगोपाल की राय थी कि मुख्यमंत्री और उनके प्रधान सलाहकार का आचरण ‘प्रथमदृष्टया अवज्ञाकारी’ है, लेकिन उन्होंने यह कहते हुए कार्यवाही शुरू करने की सहमति नहीं दी कि रेड्डी ने भारत के मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे को पत्र लिखा है और मामला उनके पास विचाराधीन है.
AG KK Venugopal declines to give consent to initiate contempt proceedings against Andhra Pradesh CM, YS Jaganmohan Reddy and his Principal Advisor as the alleged contemptuous letter was addressed to the CJI, who is seized of the matter. pic.twitter.com/NiRHiDWRvA
— The Leaflet (@TheLeaflet_in) November 2, 2020
भाजपा नेता और वकील अश्विनी उपाध्याय ने वेणुगोपाल को पत्र लिखकर रेड्डी तथा उनके सलाहकार के खिलाफ अवमानना कार्यवाही शुरू करने की सहमति देने की मांग की थी.
उपाध्याय को लिखे पत्र में वेणुगोपाल ने कहा, ‘मैंने आपकी याचिका को ध्यान से पढ़ा है. मेरा मानना है कि मुख्यमंत्री द्वारा भारत के मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे को 06.10.2020 की तारीख में लिखे गए पत्र में आपत्तिजनक टिप्पणियां की गई थीं. बाद में 10.10.2020 को मुख्यमंत्री के प्रमुख सलाहकार अजेय कल्लम ने इस पत्र को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में सार्वजनिक किया इसलिए मुख्य न्यायाधीश संबंधित पत्र में लगाए गए आरोपों की प्रकृति के बारे में बिल्कुल वाकिफ हैं.’
उन्होंने आगे कहा, ‘मेरी राय में इस पत्र की टाइमिंग और प्रेस कॉन्फ्रेंस के जरिये इसे सार्वजनिक करना बिल्कुल संदिग्ध कहा जा सकता है, क्योंकि जस्टिस रमन्ना ने 16.09.2020 को एक आदेश पारित किया था जिसमें उन्होंने चुने गए प्रतिनिधियों के खिलाफ दर्ज मामलों की सुनवाई में तेजी लाने का निर्देश दिया था. जैसा कि आपने खुद अपने पत्र में उल्लेख किया है कि मुख्यमंत्री के खिलाफ 31 आपराधिक मामले लंबित हैं.’
अटॉर्नी जनरल ने कहा, ‘इसलिए प्रथमदृष्टया इस तरह का कृत्य अवज्ञाकारी है. हालांकि यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि अवमानना का ये मामला उस पत्र से जुड़ा है जिसे मुख्यमंत्री ने सीधे भारत के मुख्य न्यायाधीश को लिखी थी, जिस पर अजेय कल्लम द्वारा प्रेस कॉन्फ्रेंस किया गया था. इस तरह ये मामला अब मुख्य न्यायाधीश के पास है. इसलिए मामले में हस्तक्षेप करना मेरे लिए उचित नहीं होगा. इन कारणों से, मैं भारत के सर्वोच्च न्यायालय की आपराधिक अवमानना के लिए कार्यवाही शुरू करने की सहमति को अस्वीकार करता हूं.’
रेड्डी ने मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखकर आरोप लगाया था कि उनकी लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई सरकार को गिराने और अस्थिर करने के लिए आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट का इस्तेमाल किया जा रहा है.
मुख्यमंत्री जगनमोहन रेड्डी ने ऐसे समय पर सीजेआई को पत्र लिखा है जब वे खुद कई कानूनी मामलों का सामना कर रहे हैं.
जस्टिस रमन्ना की अगुवाई वाली पीठ वकील अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही है, जिसमें वर्तमान एवं पूर्व विधायकों/सांसदों के खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों की जांच में तेजी लाने की मांग की गई है.
इस पीठ के एक आदेश के बाद आय से अधिक संपत्ति मामले में मुख्यमंत्री के खिलाफ विशेष सीबीआई अदालत में बीते नौ अक्टूबर को फिर से मामला फिर से शुरू किया गया.
इसके अगले दिन ही मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव कल्लम ने मुख्यमंत्री द्वारा सीजेआई को लिखे पत्र को मीडिया में सार्वजनिक कर दिया था.
मालूम हो कि 10 अक्टूबर को हुई एक प्रेस वार्ता के बाद मुख्यमंत्री के प्रमुख सलाहकार अजेय कल्लम ने 6 अक्टूबर 2020 को लिखे गए इस पत्र की प्रतियां बांटते हुए मुख्यमंत्री का लिखा एक नोट पढ़कर सुनाया था, जिसमें मुख्यमंत्री ने आरोप लगाया था कि जस्टिस रमन्ना ने राज्य की पिछली चंद्रबाबू नायडू-तेलुगूदेशम पार्टी (टीडीपी) सरकार में अपने प्रभाव का इस्तेमाल अपनी बेटियों के पक्ष में किया.
जगन रेड्डी ने हाईकोर्ट में जजों की नियुक्ति, रोस्टर और केस आवंटन को लेकर भी सवाल उठाए थे. मीडिया को दिए गए नोट में कहा गया था-
- ‘जबसे नई सरकार ने नायडू के 2014-2019 के कार्यकाल में लिए गए कदमों के बारे में इन्क्वायरी शुरू की, यह स्पष्ट है कि जस्टिस रमन्ना ने चीफ जस्टिस जितेंद्र कुमार माहेश्वरी के माध्यम से राज्य के न्यायिक प्रशासन को प्रभावित करना शुरू कर दिया.’
- ‘माननीय जजों का रोस्टर, जहां चंद्रबाबू नायडू के हितों से जुड़ी नीति और सुरक्षा के महत्वपूर्ण मामले पेश किए जाने थे, वे कुछ ही जजों को मिले- जस्टिस एवी शेषा सई, जस्टिस एम. सत्यनारायण मूर्ति, जस्टिस डीवीएसएस सोमय्याजुलु और जस्टिस डी. रमेश.
गौरतलब है कि हाईकोर्ट ने बीते 18 महीनों में जगनमोहन रेड्डी सरकार के कई महत्वपूर्ण फैसलों की अनदेखी करते हुए लगभग 100 आदेश पारित किए हैं.
जिन फैसलों को हाईकोर्ट द्वारा रोका गया है उनमें अमरावती से राजधानी के स्थानांतरण के माध्यम से प्रशासन का विकेंद्रीकरण, आंध्र प्रदेश परिषद को खत्म करने और आंध्र प्रदेश राज्य चुनाव आयोग आयुक्त एन. रमेश कुमार को पद से हटाने के निर्णय शामिल हैं.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)