भारतीय रिज़र्व बैंक के चार पूर्व गवर्नरों ने तेज़ी से बढ़ते वित्तीय घाटे और महामारी के चलते अत्यधिक बुरी स्थिति में पहुंची अर्थव्यवस्था को लेकर गहरी चिंता जताई है. उन्होंने एनपीए की तरह ही कई चुनौतियों के प्रति आगाह किया है.
नई दिल्ली: बैड लोन यानी कि एनपीए (नॉन-परफॉर्मिंग एसेट्स) की समस्या से जूझ रहे सरकारी बैंक महामारी के चलते बर्बाद हुई अर्थव्यवस्था को उबारने की दिशा में एक बड़ा संकट होंगे, जब तक कि सरकार इनकी मदद नहीं करती है.
वरिष्ठ पत्रकार तमल बंद्योपाध्याय की आने वाली किताब ‘Pandemonium: The Great Indian Banking Tragedy’ में रिजर्व बैंक के चार पूर्व गवर्नरों ने इस तरह की कई चुनौतियों के प्रति आगाह किया है.
`Pandemonium: The Great Indian Banking Tragedy' launch on 10 Nov, 5 pm IST. By ex @RBI Gov Subbarao, Dy Gov Acharya, Ex @TheOfficialSBI boss Rajnish Kumar & @udaykotak of @KotakBankLtd and @FollowCII President. On @LinkedIn live, @crossword_book & @RoliBooks platforms. @KBagrodia pic.twitter.com/E8z5Tz9CVp
— Tamal Bandyopadhyay (@TamalBandyo) November 2, 2020
जहां एक तरफ रघुराम राजन ने कंपनियों द्वारा अत्यधिक निवेश एवं बैंकरों की अधिकता को एनपीए की प्रमुख वजह बताया है, वहीं वाईवी रेड्डी ने कहा है कि बैड लोन न सिर्फ समस्या है बल्कि अन्य समस्याओं का प्रभाव है.
इसी तरह डी. सुब्बाराव एनपीए को एक बहुत बड़ी और वास्तविक समस्या के रूप में देखते हैं. सी. रंगराजन ने नोटबंदी जैसे नीतिगत फैसलों को इस समस्या में बढ़ोतरी का जिम्मेदार ठहराया है.
सितंबर 2008 से सितंबर 2013 तक रिजर्व बैंक के गवर्नर रहे सुब्बाराव ने कहा, ‘हां, बैड लोन एक बड़ी और वास्तविक समस्या है. लेकिन, जो भी बड़ा और वास्तविक है वह सरकार की वित्तीय बाधा है.’
विशेषज्ञों ने तेजी से बढ़ते वित्तीय घाटे और महामारी के चलते अत्यधिक बुरी स्थिति में पहुंची अर्थव्यवस्था को लेकर गहरी चिंता जताई है.
पिछले कुछ सालों में ही सरकारी बैंकों को 2.6 लाख करोड़ रुपये मिले हैं, लेकिन उनकी स्थिति अब भी बुरी बनी हुई है.
भारतीय रिजर्व बैंक के अनुसार एनपीए मार्च तक बढ़कर 12.5 प्रतिशत तक हो सकता है. यह पिछले दो दशकों में सबसे ज्यादा होगा. सरकारी बैंक विशेष रूप से कमजोर हैं और चूंकि प्रमुख उभरते बाजारों में बड़े पैमाने पर पूंजी घट रही है, इसलिए इनके समक्ष आगे और बड़ी चुनौतियां हैं.
साल 2003 से 2008 तक गवर्नर रहे रेड्डी ने नोटबंदी को बिना किसी योजना के लागू किया फैसला करार देते हुए कहा, ‘यदि हम मोटा-मोटी कहें तो एनपीए सिर्फ एक समस्या नहीं है, बल्कि ये अन्य समस्याओं का परिणाम है.’
वहीं 1992 से 1997 तक आरबीआई गवर्नर रहे रंगराजन ने कहा कि नोटबंदी जैसे फैसलों में बैंकिंग समस्या को और बढ़ा दिया है. उन्होंने कहा कि नोटबंदी एक ‘आर्थिक संकट’ थी.
हालांकि बैड लोन का संकट बढ़ने और इसके समाधान को लेकर इन विशेषज्ञों की राय अलग-अलग है. सभी इसे लेकर एकमत हैं कि सरकार को इसमें उचित भूमिका निभानी होगी.
अपने कार्यकाल में एनपीए के खिलाफ लड़ाई छेड़ने वाले रघुराम राजन ने कहा है कि समय रहते बैड लोन की पहचान की जानी चाहिए, इसे वसूला जाना चाहिए और प्रशासन पर फोकस होना चाहिए.
सुब्बाराव का कहना है कि एनपीए की जड़ें साल 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट से पहले की स्थिति में हैं और अब भी वही हालत बढ़ती आ रही है.
उन्होंने कहा कि महामारी से पहले भी भारत का वित्तीय क्षेत्र कठिन समय से गुजर रहा था. कुछ बैंक या एनबीएफसी को तब संभलने में मुश्किल आई, जब अचानक नियमों को कड़ा कर दिया गया.
रेड्डी ने कहा, ‘मेरा मानना है कि बैंकिंग सिस्टम जिस चीज से प्रभावित है वो सिर्फ बैंकिंग क्षेत्र में नहीं है, बल्कि यह काफी हद तक आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक सिस्टम का प्रतिबिंब है- खासकर सरकारी विभागों का.’
(समाचार एजेंसी पीटीआई से इनपुट के साथ)