पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या मामले में उम्रक़ैद की सज़ा काट रहे एजी पेरारिवलन ने अनुच्छेद 161 के तहत राज्यपाल के पास माफ़ी के लिए याचिका दायर की थी. 21 मई, 1991 में तमिलनाडु के श्रीपेरम्बदूर में एक चुनावी सभा के दौरान एक महिला आत्मघाती हमलावर ने राजीव गांधी की हत्या कर दी थी.
नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने राजीव गांधी हत्याकांड के एक मुजरिम की सजा माफी की याचिका तमिलनाडु के राज्यपाल के पास दो साल से भी ज्यादा समय से लंबित होने पर मंगलवार को नाराजगी व्यक्त की.
शीर्ष अदालत ने याचिकाकर्ता एजी पेरारिवलन के वकील से जानना चाहा कि क्या इस मामले में न्यायालय संविधान के अनुच्छेद 142 में प्रदत्त अपने अधिकार का इस्तेमाल कर राज्यपाल से इस पर निर्णय करने का अनुरोध कर सकता है.
राजीव गांधी हत्याकांड में उम्रकैद की सजा काट रहे पेरारिवलन ने अनुच्छेद 161 के तहत राज्यपाल के पास यह याचिका दायर की थी. इसी अनुच्छेद के तहत राज्यपाल को किसी आपराधिक मामले में क्षमा देने का अधिकार प्राप्त है.
जस्टिस एल. नागेश्वर राव, जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस अजय रस्तोगी की पीठ ने कहा, ‘हम इस समय अपने अधिकार क्षेत्र का इस्तेमाल नहीं करना चाहते लेकिन हम इस बात से खुश नहीं है कि तमिलनाडु सरकार की सिफारिश दो साल से लंबित है.’
न्यायालय 46 वर्षीय पेरारिवलन की उस याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें उसने इस मामले में अपनी उम्रकैद की सजा सीबीआई के नेतृत्व वाली एमडीएमए की जांच पूरी होने तक निलंबित रखने का अनुरोध किया है.
इस मामले की सुनवाई के दौरान पेरारिवलन की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन से पीठ ने कहा, ‘राज्यपाल को मंत्रिपरिषद की मदद और सलाह से काम करना है, लेकिन अगर राज्यपाल आदेश पारित नहीं करें तो आप हमें बताएं कि न्यायालय क्या कर सकता है?’
पीठ ने शंकरनारायणन से कहा कि वह न्यायालय को इस तथ्य से अवगत कराएं कि किस तरह से वह राज्यपाल से फैसला लेने का अनुरोध कर सकता है और इस संबंध में कानून क्या कहता है.
शीर्ष अदालत ने इसके बाद तमिलनाडु की ओर से पेश अधिवक्ता बालाजी श्रीनिवासन से जानना चाहा कि राज्य सरकार न्यायालय के किसी आदेश के बगैर ही राज्यपाल से आदेश पारित करने का अनुरोध क्यों नहीं कर सकती? शंकरनारायणन ने कहा कि राज्यपाल ने एमडीएमए की रिपोर्ट मांगी है.
इस पर पीठ ने केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसीटर जनरल केएम नटराज से सवाल किया कि क्या राज्य सरकार ने एमडीएमए की रिपोर्ट भेजने के लिए कोई अनुरोध किया है.
नटराज ने कहा कि इस हत्याकांड में व्यापक साजिश की जांच अभी चल रही है. यह जांच ब्रिटेन और श्रीलंका सहित कई देशों में फैली है.
पीठ ने नटराज से कहा कि व्यापक साजिश का मकसद यह पता लगाना था कि क्या इसमें दोषी ठहराए गए व्यक्तियों के अलावा अन्य लोग भी शामिल थे.
पीठ ने नटराज से कहा, ‘यह उन लोगों के संबंध में नहीं है जो दोषी ठहराए जा चुके हैं और जेल में हैं.’
पीठ ने कहा कि व्यापक साजिश की जांच करीब 20 साल से लंबित है.
पीठ ने कहा कि व्यापक साजिश के पहलू की जांच में दो दशक बाद भी केंद्र कह रहा है कि वह दूसरे देशों को भेजे गए अनुरोध पत्रों का जवाब प्राप्त करने की प्रक्रिया में है.
इस मामले को 23 नवंबर के लिए सूचीबद्ध करते हुए पीठ ने नटराज से कहा, ‘आप इसे देखिए और हमें बताएं.’
पीठ ने याचिकाकर्ता और केंद्र सरकार को इस मामले में अतिरिक्त दस्तावेज दाखिल करने की अनुमति प्रदान की है.
राज्य सरकार ने इससे पहले न्यायालय को बताया था कि मंत्रिपरिषद ने नौ सितंबर, 2018 को एक प्रस्ताव पारित किया था और इस मामले में सभी सात दोषियों को उनकी सजा पूरी होने से पहले ही रिहा करने की राज्यपाल से सिफारिश की थी.
शीर्ष अदालत ने 21 जनवरी को राज्य सरकार से कहा था कि वह बताए कि उसने इस मामले में एक मुजरिम की माफी की याचिका पर क्या कोई निर्णय लिया है.
पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की 21 मई, 1991 की रात में तमिलनाडु के श्रीपेरम्बदूर में एक चुनावी सभा के दौरान एक महिला आत्मघाती हमलावर ने हत्या कर दी थी.
इस घटना में आत्मघाती महिला धनु सहित 14 अन्य व्यक्ति मारे गए थे और यह संभवत: पहला आत्मघाती विस्फोट था जिसमें किसी बड़े नेता की जान गई थी.
इस हत्याकांड के सिलसिले में वी. श्रीहरण उर्फ मुरुगन, टी. सतेंद्रराजा उर्फ संथन, एजी पेरारिवलन उर्फ अरिवु, जयकुमार, रॉबर्ट पायस, पी. रविचंद्रन और नलिनी 28 साल से अधिक समय से जेल में बंद हैं.
शीर्ष अदालत ने 18 फरवरी, 2014 को तीन दोषियों- मुरुगन, संथन और पेरारिवलन- की मौत की सजा उम्रकैद में तब्दील कर दी थी, क्योंकि उनकी दया याचिकाओं पर फैसला लेने में अत्यधिक विलंब हुआ था.
शीर्ष अदालत ने मई 1999 में इस हत्याकांड में पेरारिवलन, मुरुगन, संतन और नलिनी की मौत की सजा बरकरार रखी थी.
हालांकि, अप्रैल, 2000 में तमिलनाडु सरकार की सिफारिश पर राज्यपाल ने नलिनी की मौत की सजा को उम्रकैद में तब्दील कर दिया था.
मालूम हो कि तमिलनाडु सरकार दो मार्च, 2016 को केंद्र सरकार को पत्र लिखा था. इसमें कहा गया था कि राज्य सरकार ने राजीव गांधी हत्याकांड के सात दोषियों को रिहा करने का निर्णय लिया है, परंतु शीर्ष अदालत के 2015 के आदेश के अनुरूप इसके लिए केंद्र की सहमति लेना अनिवार्य है.
इस पर अगस्त 2018 में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि वह राजीव गांधी हत्याकांड के सात दोषियों को रिहा करने के तमिलनाडु सरकार के प्रस्ताव का समर्थन नहीं करती है, क्योंकि इन मुजरिमों की सजा की माफी से खतरनाक परंपरा नींव पड़ेगी और इसके अंतरराष्ट्रीय नतीजे होंगे.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)