झारखंड में भी सीबीआई को अब जांच के लिए राज्य सरकार की अनुमति लेनी होगी

झारखंड में मुख्य विपक्षी भाजपा ने इस क़दम की आलोचना की और आरोप लगाया कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और उनकी सरकार ने अपने भ्रष्टाचार को छिपाने के लिए यह क़दम उठाया है. बीते दो महीने में झारखंड चौथा राज्य है, जिसने ​सीबीआई को मिली आम सहमति रद्द कर दी है.

/
हेमंत सोरेन. (फोटो: पीटीआई)

झारखंड में मुख्य विपक्षी भाजपा ने इस क़दम की आलोचना की और आरोप लगाया कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और उनकी सरकार ने अपने भ्रष्टाचार को छिपाने के लिए यह क़दम उठाया है. बीते दो महीने में झारखंड चौथा राज्य है, जिसने सीबीआई को मिली आम सहमति रद्द कर दी है.

हेमंत सोरेन. (फोटो: पीटीआई)
हेमंत सोरेन. (फोटो: पीटीआई)

रांची: झारखंड सरकार ने बृहस्पतिवार को एक आदेश जारी कर सीबीआई को राज्य में शक्तियों और न्यायक्षेत्र के इस्तेमाल के लिए दी गई सहमति को वापस ले लिया है.

मुख्यमंत्री कार्यालय के एक बयान में कहा गया है कि राज्य सरकार द्वारा इस संबंध में जारी आदेश के बाद केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को अब झारखंड में शक्तियों और न्यायक्षेत्र के इस्तेमाल के लिए आम सहमति नहीं होगी, जो झारखंड सरकार (तत्कालीन बिहार) द्वारा 19 फरवरी 1996 को जारी एक आदेश के तहत दी गई थी.

राज्य की मुख्य विपक्षी भारतीय जनता पार्टी ने इस कदम की आलोचना की और आरोप लगाया कि मुख्यमंत्री और उनकी सरकार ने अपने भ्रष्टाचार को छिपाने के लिए यह कदम उठाया है.

इसके साथ ही झारखंड देश के उन राज्यों में शुमार हो गया है जहां अब किसी मामले में कार्रवाई के लिए सीबीआई को राज्य सरकार की अनुमति लेनी होगी.

ऐसा आदेश पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश (उस समय चंद्रबाबू नायडू की सरकार थी), केरल, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, सिक्किम, त्रिपुरा और राजस्थान सरकार पहले ही जारी कर चुकी हैं. हालांकि, बाद में आंध्र प्रदेश में जगनमोहन रेड्डी के नेतृत्व वाली सरकार ने सीबीआई को वापस यह अधिकार अपने राज्य में दे दिया था.

झारखंड से पहले सीबीआई से यह अधिकार वापस लेने वाला महाराष्ट्र अंतिम राज्य था. महाराष्ट्र ने 22 अक्टूबर को आदेश जारी कर सीबीआई से यह अधिकार वापस लिया था.

भाजपा के झारखंड प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश ने राज्य सरकार पर निशाना साधते हुए कहा, ‘कहीं न कहीं दाल में कुछ काला है, जिसके कारण सरकार को यह कदम उठाना पड़ा है.’

उन्होंने कहा, ‘सरकार के इस कदम की जितनी आलोचना की जाए वह कम है. दुनिया की सर्वश्रेष्ठ जांच एजेंसियों में एक सीबीआई को झारखंड जैसे राज्य में अब अपना काम करने के लिए राज्य सरकार की अनुमति लेनी होगी, यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है.’

इससे पहले बीते चार नवंबर को केरल ने भी मामलों की जांच के लिए सीबीआई को दिए गए आम सहमति के प्रावधान को वापस ले लिया था.

बीते अक्टूबर महीने में महाराष्ट्र सरकार ने दिल्ली विशेष पुलिस प्रतिष्ठान के सदस्यों (सीबीआई) को दिल्ली विशेष स्थापना प्रतिष्ठान कानून, 1946 (डीपीएसई एक्ट) के तहत राज्य में शक्तियों और न्यायक्षेत्र के इस्तेमाल की सहमति को वापस लेने संबंधी एक आदेश जारी किया था.

दरअसल सीबीआई ‘दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम’ द्वारा शासित है. सीबीआई इस अधिनियम की धारा छह के तहत काम करती है. सीबीआई और राज्यों के बीच सामान्य सहमति होती है, जिसके तहत सीबीआई अपना काम विभिन्न राज्यों में करती है, लेकिन अगर राज्य सरकार सामान्य सहमति को रद्द कर दे, तो सीबीआई को उस राज्य में जांच या छापेमारी करने से पहले राज्य सरकार से अनुमति लेनी होगी.

बीते जुलाई महीने में राजस्थान की अशोक गहलोत सरकार ने दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना (डीएसपीई) अधिनियम, 1946 की धारा 6 के तहत ‘आम सहमति’ के प्रावधान को रद्द कर दिया था, जो राज्य में सीबीआई जांच के लिए आवश्यक होती है.

इसी तरह जनवरी 2019 में कांग्रेस शासित छत्तीसगढ़ ने राज्य में मामलों की जांच के लिए सीबीआई को दी गई सामान्य सहमति वापस ले ली थी. साल 2018 में पश्चिम बंगाल सरकार ने सीबीआई को राज्य में छापे मारने या जांच करने के लिए दी गई ‘सामान्य रजामंदी’ वापस ले ली थी.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)