मुज़फ़्फ़रपुर और आसपास के क्षेत्रों में अमूमन अगस्त-सितंबर में चमकी बुखार का भीषण प्रकोप देखने को मिलता है, पर इस बार मामले भी कम आए और मौतें भी कम हुईं. हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि बावजूद इसके बिहार को चमकी बुखार से निपटने के लिए अभी और तैयारी करनी होगी.
मुज़फ्फ़रपुर जिले के मुसहरी प्रखंड के मनिका विशुनपुर गांव के मुसहरी टोले में चुनचुन देवी अपनी झोपड़ी के सामने अकेली खड़ी हैं. उनकी दोनों बेटियां और बेटा पास में ही खेल रहे हैं. रवीना का जिक्र आते ही उनकी आंखें सजल हो गईं.
गिरते आंसुओं के बीच उन्होंने बताया, ‘आज भी ओकर बहुत याद आवेला. आज उ रहत त हमके एक लोटा पानी देवे लायक रहत. सरकार चार लाख रूपया का मदद देहलस लेकिन उससे बेटी थोड़े न लौट के आई.’
पिछले वर्ष 11 जून को चुल्हाई राम और चुनचुन की बेटी रवीना की चमकी बुखार से मौत हो गई थी. रवीना की उम्र उस समय साढ़े चार वर्ष की थी. चुल्हाई और चुनचुन की चार संतानों में रवीना तीसरी थी. उससे बड़ी रीना और रेणु है. रवीना से छोटा बेटा कृष्णा है.
चुनचुन देवी 11 जून की काली सुबह को याद कर आज भी सिहर जाती है. रवीना को पहले हल्का बुखार हुआ और फिर उसे झटके आए. वे उसे लेकर मुसरही प्रखंड स्थित सरकारी अस्पताल ले गए.
चुल्हाई बताते हैं कि डॉक्टरों ने रवीना को तुरंत श्रीकृष्णा मेडिकल कॉलेज ((एसकेएमसीएच) रेफर कर दिया. चुनचुन को लेकर वे मेडिकल कॉलेज पहुंचे और बच्ची को भर्ती कराया. वहां भर्ती होने के 24 घंटे के अंदर रवीना की मौत हो गई.
चुनचुनने बताया कि उन्हें रवीना के बीमार होने के पहले चमकी बुखार के बारे में कोई जानकारी नहीं थी. रवीना की मौत के बाद स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारी कई बार आए और इस बुखार के बारे में बताया कि बच्चों को धूप में न जाने दें. भूखा न सोने दें और पानी उबालकर पिलाएं. इस वर्ष भी आए थे और यही जानकारी देकर गए.
रवीना की मौत के डेढ़ महीने बाद चुल्हाई को बिहार सरकार की ओर से चार लाख रुपये की आर्थिक सहायता मिली. भूमिहीन चुल्हाई ने इस पैसे से आधा कट्ठा जमीन खरीदी है. शेष पैसे सुरक्षित रखे हैं.
वे पहले भी मजदूरी करते थे और आज भी मजदूरी कर रहे हैं. कोरोना लॉकडाउन के पहले वह इस वर्ष जनवरी में मजदूरी करने हैदराबाद गए थे, लॉकडाउन में गांव लौट आए.
तबसे यहीं हैं, छठ के बाद फिर से जाने की सोच रहे हैं. कहते हैं कि ‘गरीब आदमी मजदूरी नहीं करेगा तो खाएगा क्या?’
उनके घर के पास चुनाव के पहले नल-जल योजना के तहत पानी सप्लाई की टोंटी लगी है लेकिन अभी पानी नहीं आ रहा है.
पिछले वर्ष इस ग्राम पंचायत में चार बच्चों की मौत चमकी बुखार से हुई थी. इससे पूरे गांव के लोग सकते में आ गए थे. इस वर्ष कोई भी बच्चा चमकी बुखार से बीमार नहीं पड़ा.
मनिका विशुनपुर ग्राम पंचायत के मुखिया अरविंद कुमार सिंह ने बताया, ‘मुसरही में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र बन गया है लेकिन रात में डॉक्टर के न रहने की शिकायत अक्सर आती है. अभी एक गर्भवती महिला की मौत हो गई. जब लोग अस्पताल पर पहुंचे थे तो वहां पर कोई डॉक्टर मौजूद नहीं था. इसे लेकर बवाल भी हुआ था.’
उन्होंने बताया कि इस वर्ष चमकी बुखार को लेकर समय से जागरूकता अभियान चलाया गया था.
इसी गांव के एक प्रवासी अजय पासवान मजदूर की 19 महीने की बेटी आराध्या चमकी बुखार की चपेट में आने के बाद बच तो गई, लेकिन अब तक पूरी तरह से ठीक नहीं हो पाई है.
आराध्या जब दो माह की थी, तो उसे बुखार के बाद चमकी आया. घर के लोग उसे मुसहरी प्रखंड स्थित सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र ले गए जहां से उसे एसकेएमसीएच रेफर कर दिया गया. कई दिन तक इलाज चलता रहा. जान तो बच गई लेकिन अब तक वह न ठीक से खड़ी हो पाती है, न बैठ पाती है. आंख से ठीक से दिखाई भी नहीं दे रहा है और महीने में एक से दो बार अब भी झटका आता है.
आराध्या के पिता अजय पासवान मजदूर हैं और दिल्ली में मजदूरी करते हैं. आराध्या का इलाज इस समय दिल्ली के कलावती सरन अस्पताल में हो रहा है. अजय की पत्नी संगीता भी दिल्ली में रह रही हैं.
चिकित्सक कहते हैं कि इलाज लंबा चलेगा. गांव में अजय की मां जयमाला से बात हुई. उन्होंने बताया कि पूरा परिवार इलाज में हो रहे खर्चे से परेशान है. आराध्या का इलाज कराने के लिए ही लॉकडाउन में कोई काम न होने के बावजूद अजय और संगीता दिल्ली में रुके रहे.
इस वर्ष मुजफ्फरपुर और आस-पास के जिलों में चमकी बुखार का हमला उस तरह नहीं था जैसा कि पिछले वर्ष था. 2019 में एसकेएमसीएच में चमकी बुखार के 500 से अधिक केस रिपोर्ट हुए थे और 150 से अधिक बच्चों की मौत हुई थी.
एसकेएमसीएच के अधीक्षक डॉ. सुनील शाही ने बताया कि इस वर्ष जनवरी से अब तक चमकी बुखार एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम (एईएस) के 80 केस आए हैं जिसमें 11 की मौत हुई है.
उन्होंने बताया, ‘मेडिकल कॉलेज में 100 बेड का आईसीयू वॉर्ड मार्च महीने में बनकर तैयार होकर हमें मिल गया था. इस बार हमारे पास पर्याप्त बेड उपलब्ध थे. चमकी बुखार से प्रभावित आस-पास के जिलों में जागरूकता अभियान चलाने के कारण इस वर्ष केस की संख्या कम हुई. सीएचसी-पीएचसी में इलाज की व्यवस्था होने के कारण बहुत से मरीजों का इलाज वहीं पर हो गया.’
नेशनल वेक्टर बार्न डिजीज कंट्रोल प्रोग्राम (एनवीबीडीसीपी) के अनुसार, इस वर्ष सितंबर माह तक बिहार में एईएस के 136 केस सामने आए, जिसमें 19 लोगों की मौत हो गई. जापानी इंसेफेलाइटिस (जेई) के आठ केस रिपोर्ट हुए, जिसमें एक की मौत की सूचना हैं.
इस रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2018 में बिहार में एईएस के 124 केस रिपोर्ट हुए जिसमें 33 लोगों की मौत हो गई. जेई के 74 केस सामने आए जिसमें 11 लोगों की मौत हुई.
वर्ष 2019 में एईएस के 292 केस रिपोर्ट हुए जिसमें 82 लोगों की मौत हुई, जबकि जेई के 135 केस आए और 27 लोगों की मौत हुई.
आंकड़ों के अनुसार, बिहार में वर्ष 2014 से 2019 तक जापानी इंसेफेलाइटिस के केस क्रमशः 20, 66, 100, 74, 74 और 135 रिपोर्ट हुए हैं.
एईएस और जेई के इलाज के लिए बिहार के सीवान, गोपालगंज, पश्चिम चंपारण और पूर्वी चंपारण से काफी लोग गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में आते हैं. कारण यही है कि इन जिलों में इंसेफेलाइटिस के इलाज के लिए कोई उच्चस्तरीय संस्थान नहीं है.
वर्ष 2018 में गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में बिहार के एईएस/ जेई के 106 मरीज भर्ती हुए, जिसमे 18 की मौत हो गई थी.
बीआरडी मेडिकल कॉलेज में वर्ष 2018 में भर्ती हुए बिहार के इंसेफेलाइटिस रोगियों में जापानी इंसेफेलाइटिस के 29 रोगी थे. इस वर्ष भी अक्टूबर महीने तक बीआरडी मेडिकल कॉलेज में बिहार के एक दर्जन से अधिक इंसेफेलाइटिस रोगी भर्ती हो चुके हैं.
पिछले वर्ष चमकी बुखार के प्रकोप के बाद एसकेएमसीएच में 100 बेड का आईसीयू वॉर्ड सहित चमकी बुखार से प्रभावित पीएचसी-सीएचसी पर 20-20 बेड का पीआईसीयू बनाने की घोषणा की गई थी.
एसकेएमसीएच में तो 100 बेड का आईसीयू वॉर्ड बन गया लेकिन पीएचसी-सीएचसी में यह काम अभी भी पूरा नहीं हुआ है. एसकेएमसीएच का सुपरस्पेशियलिटी ब्लॉक भी अभी बनकर तैयार नहीं हुआ है.
जाहिर है कि बिहार को चमकी बुखार/एईएस/ जेई से निबटने के लिए अभी और तैयारी करनी होगी.
(लेखक गोरखपुर न्यूज़लाइन वेबसाइट के संपादक हैं.)