ग्राउंड रिपोर्ट: बिहार के सुपौल ज़िले कुछ गांवों के ग्रामीण पिछले कई वर्षों से कोसी नदी की मार झेल रहे हैं. ग्रामीणों का कहना है कि बांध के लिए एमपी-एमएलए आदि से गुज़ारिश की गई, लेकिन किसी ने उनकी समस्याओं पर ध्यान नहीं दिया.
‘सब कटै जाई छै. सरकार कछु सुनवाई न करे छै. गांव के 200 बीघा जमीन कटै जाइत छै. एमपी-एमएलए सबसे कहे, कागद दिखाई पर कछु नाहीं करेले. सरकार देखवइया नाहीं छै. चंदा-वंदा कर चार लाख रुपया जुटाई, कपार पर मिट्टी दे बांध बनवली तब दस मन उपजत छै.’
(नदी में सब कटा जा रहा है लेकिन सरकार सुनती नहीं है. गांव का 200 बीघा खेत कट रहा है. एमपी-एमएलए सबसे कहा गया, लेकिन उन्होंने कुछ नहीं किया. सरकार कुछ नहीं देख रही है. तो हम सभी ने चार लाख रूपया चंदा जुटाया, श्रमदान किया और बांध बनाया. तब कुछ फसल हुई.)
बिहार में सुपौल जिले के डगमारा ग्राम पंचायत के चुरियासी गांव के 65 वर्षीय रामशरण मेहता कोसी नदी के किनारे नदी की कटान दिखाते हुए बता रहे हैं कि कैसे गांव के लोगों ने सुरक्षा बांध बनाया है.
गांव के वंशीनारायण मेहता ने इस तटबंध को बनाने की अगुवाई की थी. वह बताते हैं कि सुरक्षा तटबंध के लिए वे सांसद, विधायक से मिले थे. चार महीने तक दौड़ते रहे. जिला ग्रामीण विकास एजेंसी (डीआरडीए) में इसके लिए 14 लाख का एस्टीमेट भी बना, लेकिन यह पैसा दिया नहीं गया. आखिरकार गांव के लोगों ने बांध बनाने का फैसला लिया और वे इसमें सफल रहे.
वंशीनारायण मेहता बताते हैं, ‘सात फीट ऊचा करीब सवा किलोमीटर लंबा सुरक्षा बांध बनाया गया लिया. तीन महीने में हम चार लाख रुपये जुटाने में सफल रहे. गांव के लोगों ने श्रमदान किया. ट्रैक्टर लगाकर काम कराया गया. आप जो फसल देख रहे है, इस सुरक्षा बांध की वजह से है. इससे करीब 100 एकड़ में खेती संभव हुई है.’
यह सुरक्षा बांध सिकरहट्टा-मझारी निम्न तटबंध के ‘स्पर एस-एक’ और ‘एस-दो’ के बीच बनाया गया है. यहीं पर कोसी नदी बहुत तेजी से कटान कर रही है. जल संसाधन विभाग परक्यूपाइन और बालू की बोरियों से कटान रोकने की कोशिश कर रहा है, लेकिन उसकी कोशिश कामयाब नजर होती नजर नहीं आ रही है.
हाल के वर्षों में कोसी नदी की एक धारा सिकरहट्टा-मझारी निम्न तटबंध के करीब आती गई है.
यह तटबंध 1974 में कोसी के पश्चिमी तटबंध से जोड़ते हुए बनाया गया था.
डगमारा ग्राम पंचायत के चुरियासी गांव में कुल 300 मतदाता हैं और यह गांव सुपौल जिले के निर्मली विधानसभा क्षेत्र में आता है. इस गांव सहित आसपास के अधिकतर गांव तटबंध से सटे पश्चिम में बसे हैं.
इन गांवों के लोगों की खेती तटबंध के पूरब कोसी नदी की धाराओं के बीच में है. कोसी नदी की कटान और बाढ़ से जूझते हुए किसान पूरी कोशिश करते हैं कि धान, पटुआ, सब्जी की खेती कर लें. गेहूं की खेती तो ठीक से हो जाती है लेकिन धान की फसल बारिश, बाढ़ और नदी के रुख पर निर्भर करती है.
छोटे-छोटे सुरक्षा बांध नदी के पानी से खेत को बचाने में काफी उपयोगी साबित होते हैं.
इसी गांव के पास सिकरहट्टा गांव है. वहां के किसानों ने भी 2007 में दो किलोमीटर लंबा सुरक्षा बांध बनाया है, ताकि खेती हो सके.
सिकरहट्टा गांव की रेखा देवी बताती हैं कि इस वर्ष कोसी नदी की बाढ़ से सुरक्षा बांध बीच में टूट गया. इसकी वजह से उनकी डेढ़ बीघा धान की फसल खराब हो गई. उनकी तरह गांव के सभी लोगों की धान की फसल बर्बाद हुई है.
रेखा देवी ने नौ कट्ठे में पटुआ (जूट) की खेती की थी.
वे कहती हैं, ‘सुरक्षा बांध टूटने से पटुए के खेत में कमर भर पानी हो गया था, फिर भी किसी तरफ फसल हो गयी. एक कट्ठे में पौने दो मन पटुआ हुआ है. घर से ही सब पटुआ 4500 रुपया क्विंटल के भाव से बिक गया. पटुए की कंठी (लकड़ी) से गोड़हनी (गोइंठा) बनाकर 100 रुपये बोझा बेचा है. धान की फसल खराब हो गई, लेकिन पटुआ ने सहारा दिया है. जब पानी कम हो जाएगा तो गांव के लोग सुरक्षा बांध को फिर से बनाएंगे.’
वह कहती हैं कि सुरक्षा बांध बनाने में सरकार ने कोई मदद नहीं करती है. गांव के लोग चंदा देते हैं और श्रमदान करते हैं. खेती में भी सरकार की कोई सहायता नहीं मिलती है. बाढ़ से धान की खेती को काफी नुकसान हुआ है, लेकिन छह हजार की सहायता राशि अभी तक नहीं मिली है.
डगमारा चूरियासी गांव के लोग सुरक्षा बांध बनाने में मदद नहीं मिलने से जन प्रतिनिधियों से काफी रूष्ट हैं.
तेज नारायण कामत कहते हैं, ‘सरकार ने कुछ नहीं किया तो पब्लिक ने खुद बांध बना लिया. काम के समय हमारे लिए न कोई एमपी है न एमएलए. अब चुनाव आ गया तो नेता सब चूल्ही-चूल्ही बैठ वोट मांग रहा है.’
इस गांव में सबसे अधिक कुर्मी बिरादरी के लोग हैं. वंशीनारायण मेहता कहते हैं कि हम लोगों पर नीतीश जी का ठप्पा लगा है. किसी से बात करिए तो कहते हैं कि आप लोग तो नीतीश कुमार के वोटर हैं.’
वंशीनारायण कहते हैं, ‘ऐसे-ऐसे सांसद-विधायक बन जाते हैं जिनके मुंह में बोली नहीं, कोई छवि नहीं है. पार्टी वाले गले में ढोल बनाकर खड़ा कर देते हैं. हमको उनमें से किसी एक को चुनना पड़ता है.’
इसी गांव के युवा रामशरण मेहता कहते हैं, ‘कोसी में घर है, किसी तरह जी रहे हैं. कोई देखने वाला नहीं है. न बिहार सरकार न मोदी सरकार. तीन-तीन महीने पानी में रहे, कोई देखने नहीं आया.
इस गांव की भौगोलिक स्थिति बहुत विषम है. पूरब कोसी नदी है तो पश्चिम तिलजुगा नदी. गांव के लोगों की खेती दोनों नदियों के पलार (फ्लडप्लेन) में है. तिलजुगा नदी पर कोई पुल नहीं हैं. गांव के लोग चाहते हैं कि यदि इस पर कोई अस्थायी पुल भी बन जाए तो उन्हें आने-जाने में आसानी होगी. नदी उस पार वे अपने खेत में खेती कर सकेंगे.
चुरियासी गांव के लोगों को वोट देने के लिए भी तिलजुगा नदी पार कर बूथ पर जाना होगा. नदी पार नहीं करने की स्थिति में उन्हें पांच किलोमीटर पैदल चलना होगा.
सरकार की उपेक्षा से दुखी होने के बावजूद गांव के लोग चुनावी चर्चा में पीछे नहीं हैं. इस गांव में कुर्मी जाति के अलावा पासी और मुसहर भी हैं. पासी जाति के लोगों लोजपा और चिराग पासवान की खूब चर्चा कर रहे हैं.
रामशरण मेहता कहते हैं कि चिराग पासवान वोट काटेंगे, लेकिन ज्यादा सीट पर जीत नहीं पाएंगे. उनका यह भी कहना है कि चिराग पासवान भले अलग चुनाव लड़ रहे हैं लेकिन उनको भाजपा का समर्थन है.
(लेखक गोरखपुर न्यूज़लाइन वेबसाइट के संपादक हैं.)