मध्य प्रदेश उपचुनाव में मिली इस जीत के साथ 230 सदस्यीय सदन में अब भाजपा विधायकों की संख्या 107 से बढ़कर 126 हो गई है, जबकि कांग्रेस के विधायकों की संख्या 87 से बढ़कर 96 हो गई है.
भोपाल: मध्य प्रदेश विधानसभा के लिए 28 सीटों पर हुए उपचुनाव में सत्तारूढ़ भाजपा ने 19 सीटों पर विजय हासिल कर सदन में सुविधाजनक बहुमत हासिल कर अपनी आठ महीने पुरानी सरकार की नींव मजबूत कर दी है. इसके साथ ही पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ और उनकी पार्टी कांग्रेस के प्रदेश की सत्ता में वापस आने के मंसूबे ध्वस्त हो गए.
प्रदेश में 28 सीटों के उपचुनाव के तहत तीन नवंबर को मतदान हुआ था. इसके बाद 10 नवंबर को मतों की गिनती के बाद देर रात तक आए. परिणामों में सत्तारूढ़ भाजपा ने 19 सीटों पर विजय हासिल कर ली, जबकि विपक्षी कांग्रेस को नौ सीटों पर संतोष करना पड़ा है.
इसके साथ ही 230 सदस्यीय सदन में अब भाजपा के विधायकों की संख्या 107 से बढ़कर 126 हो गई है, जबकि कांग्रेस के विधायकों की संख्या 87 से बढ़कर 96 हो गई है.
उपचुनाव की घोषणा होने के बाद दमोह से कांग्रेस के विधायक राहुल लोधी भी त्याग-पत्र देकर भाजपा में शामिल होने के कारण सदन में सदस्यों की वर्तमान में संख्या 229 हो गई है. इस हिसाब से वर्तमान में सदन में साधारण का बहुमत का आंकड़ा 115 होता है. प्रदेश में भाजपा अब 126 विधायकों के साथ सुविधाजनक बहुमत में आ गई है.
चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार, भाजपा ने जो 19 सीटें जीती हैं, उनमें अम्बाह, मेहगांव, ग्वालियर, भांडेर, पोहरी, बमोरी, अशोक नगर, मुंगावली, सुरखी, मलहरा, अनूपपुर, सांची, हाटपिपल्या, मांधाता, नेपानगर, बदनावर, सांवेर, सुवासरा एवं जौरा शामिल हैं.
वहीं, दूसरी ओर कांग्रेस ने सुमावली, मुरैना, दिमनी, गोहद, ग्वालियर पूर्व, डबरा, करैरा, ब्यावरा एवं आगर सीट पर विजय हासिल की है.
उपचुनाव में उतरने वाले 12 मंत्रियों में से तीन मंत्री पराजित भी हुए हैं. इनमें प्रमुख तौर पर इमरती देवी डबरा विधानसभा क्षेत्र से 7,633 मतों से पराजित हुई हैं. दिमनी से मंत्री गिर्राज दंडोतिया 26,467 मतों से हारे, जबकि सुमावली से एक अन्य मंत्री एदल सिंह कंषाना 10,947 मतों से पराजित हुए.
डबरा से भाजपा की उम्मीदवार इमरती देवी तब चर्चा में आई थीं, जब प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने चुनाव प्रचार के दौरान एक चुनावी सभा में भाजपा की इस महिला उम्मीदवार को कथित तौर पर ‘आइटम’ कहा था. कमलनाथ की इस टिप्पणी पर राजनीतिक हल्कों में काफी जुबानी जंग भी हुई थी.
मध्यप्रदेश के नौ मंत्रियों डॉ. प्रभुराम चौधरी (सांची सीट, मतों का अंतर- 63,809), बिसाहूलाल साहू (अनूपपुर, मतों का अंतर- 34,864), महेंद्र सिंह सिसौदिया (बमोरी- मतों का अंतर 53,153), राजवर्धन सिंह दत्तीगांव (बदनावर, मतों का अंतर 32,133 ), हरदीप सिंह डंग (सुवासरा, मतों का अंतर 29,440), प्रद्युम्न सिंह तोमर (ग्वालियर, मतों का अंतर 33,123), ओपीएस भदौरिया (मेहगांव, मतों का अंतर- 12,036), सुरेश धाकड़ (पोहरी, मतों का अंतर- 22,496) एवं बृजेंद्र सिंह यादव ने (मुंगावली, मतों का अंतर 21,469) जीत हासिल की है.
इनके अलावा सिंधिया के समर्थक तुलसी सिलावट (सांवेर से) 53,264 मतों के बड़े अंतर से एवं गोविंद सिंह राजपूत (सुरखी से) 40,991 मतों के अंतर से विजयी रहे. इन दोनों को भी चौहान की सरकार में मंत्री बनाया गया था, लेकिन उपचुनाव के लिए हुए मतदान से कुछ ही दिन पहले इन्हें मंत्री पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा था, क्योंकि इन्हें विधायक बने बिना मंत्रिपद पर बने हुए छह महीने पूरे होने वाले थे.
सिंधिया के साथ मार्च माह में तत्कालीन सत्तारूढ़ कांग्रेस को छोड़ने वाले 22 विधायकों में से 15 इस उपचुनाव में विजयी हुए हैं, जबकि तीन मंत्रियों सहित सात सिंधिया समर्थक नेता चुनाव हार गए हैं.
हालांकि कांग्रेस ने अपनी सरकार गिराने के कारण सिंधिया को गद्दार की संज्ञा देने में कोई कसर नहीं छोड़ी. लेकिन, सिंधिया ने कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल होने एवं कमलनाथ की तत्कालीन सरकार गिराने के अपने निर्णय को यह कहकर सही ठहराया था कि कांग्रेस की इस सरकार ने किसानों की कर्जमाफी सहित अपने चुनावी वादे पूरे नहीं किए, इसलिए उनके पास कमलनाथ की सरकार को गिराने के अलावा कोई विकल्प बचा नहीं था.
एक चुनाव विश्लेषक ने कहा, ‘इस उपचुनाव में भाजपा की जीत केंद्र में सिंधिया की ताकत को निश्चित रूप से बढ़ाएगी.’
हालांकि भाजपा ने 28 में से 19 सीटें जीतकर बेहतर प्रदर्शन किया है, लेकिन उसे ग्वालियर-चंबल इलाके में नुकसान भी उठाना पड़ा है. इस इलाके से उसके तीन मंत्री सुमावली से एदल सिंह कंषाना, डबरा से इमरती देवी और दिमनी से गिर्राज दंडोतिया को हार का सामना करना पड़ा.
प्रदेश में भाजपा को भांडेर सीट पर सबसे कम मतों के अंतर जीत मिली. यहां भाजपा की रक्षा संतराम सरौनिया ने लोकप्रिय दलित नेता फूल सिंह बरैया को मात्र 161 मतों के अंतर से पराजित किया.
इसके अलावा सिंधिया समर्थक ग्वालियर पूर्व और शिवपुरी जिले के करैरा सीट से चुनाव हार गए. ग्वालियर पूर्व से भाजपा उम्मीदवार मुन्ना लाल गोयल 8,555 मतों के अंतर से कांग्रेस के डॉ. सतीश सिकरवार से हार गए, जबकि करैरा सीट से जसमंत जाटव 30,641 मतों के अंतर से प्रागीलाल जाटव से हार गए.
सिंधिया समर्थक एवं भाजपा के प्रवक्ता पंकज चतुर्वेदी ने कहा, ‘ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में विधानसभा की कुल 34 सीटें हैं. वर्ष 2018 में कांग्रेस ने इसमें से 26 सीटों पर जीत हासिल की थी, जबकि उपचुनाव के तहत इस क्षेत्र में 16 सीटों पर चुनाव हुए हैं, उसमें से सिंधिया समर्थकों ने नौ सीटों पर विजय प्राप्त की है. ये सीटें मूल रूप से कांग्रेस की सीटें थीं.’
उन्होंने कहा कि इससे पहले सिंधिया के प्रभाव के चलते कांग्रेस के पास ग्वालियर-चंबल क्षेत्र की 80 प्रतिशत सीटें थीं.
गुना लोकसभा सीट का हिस्सा रही बामोरी, मुंगावली और अशोक नगर विधानसभा क्षेत्र में सिंधिया समर्थकों ने निर्णायक जीत हासिल की है.
भाजपा को इन उपचुनावों में 49.46 प्रतिशत वोट मिले, जबकि कांग्रेस को 40.40 प्रतिशत वोट मिले.
भाजपा की जीत पर खुशी व्यक्त करते हुए सिंधिया ने कहा कि भाजपा को स्पष्ट जनादेश देने के लिए वह मतदाताओं के प्रति आभार व्यक्त करते हैं.
उन्होंने कहा कि उपचुनावों के परिणामों के बाद लोगों का निर्णय स्पष्ट है कि दोनों पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ और दिग्विजय सिंह मध्य प्रदेश के सबसे बड़े गद्दार हैं.
भाजपा के प्रदर्शन पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि भाजपा ने अपनी प्रतिद्वंद्वी पार्टी कांग्रेस की तुलना में 11 प्रतिशत अधिक मत हासिल किए हैं और यह ‘अविश्वसीय’ है.
उन्होंने कहा, ‘हमने भारी अंतर से सीटें जीती हैं और थोड़े अंतर से सीटें हारे हैं. हमने विनम्रता पूर्वक जीत को स्वीकार किया है. हम कल से ही आत्मनिर्भर मध्य प्रदेश के खाके को लागू की दिशा में काम करेंगे.’
चौहान ने विपक्षी कांग्रेस पर झूठे आरोप लगाने और भाजपा नेताओं के खिलाफ अभद्र शब्दों का इस्तेमाल करने का आरोप लगाया.
इधर, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने उपचुनाव में कांग्रेस की पराजय स्वीकार करते हुए कहा कि उनकी पार्टी ने जनता तक पहुंचने का प्रयास किया.
उन्होंने कहा, ‘हम जनादेश को स्वीकार करते हैं. हमने जनता तक पहुंचने का हरसंभव प्रयास किया. मैं उपचुनाव में भाग लेने वाले सभी मतदाताओं को भी धन्यवाद देता हूं. मुझे उम्मीद है कि भाजपा सरकार किसानों के हितों का ध्यान रखेगी, युवाओं को रोजगार देगी और महिलाओं का सम्मान एवं सुरक्षा को सुनिश्चित करेगी.’
मालूम हो कि इस साल मार्च और उसके बाद 25 कांग्रेसी विधायकों के त्याग-पत्र भाजपा में शामिल होने से उनकी विधानसभा सीटें खाली हो गई थीं. इसके अलावा दो सीटें कांग्रेस के विधायकों के निधन से और एक सीट भाजपा विधायक के निधन से रिक्त हो गई थीं.
इस उपचुनाव में प्रदेश सरकार के 12 मंत्री सहित कुल 355 उम्मीदवार मैदान में थे. कोविड-19 महामारी के भय के बावजूद तीन नवंबर को हुए मतदान में कुल 70.27 फीसदी मतदान हुआ था.
गौरतलब है कि मध्य प्रदेश के इतिहास में पहली बार इतनी सीटों पर उपचुनाव हुए हैं.
मालूम हो कि ज्योतिरादित्य सिंधिया की सरपरस्ती में कांग्रेस के 22 विधायकों के विधानसभा से त्यागपत्र देकर भाजपा में शामिल होने के कारण तत्कालीन कमलनाथ सरकार 20 मार्च को गिर गई थी.
इसके बाद शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में भाजपा 23 मार्च को सूबे की सत्ता में लौट आई थी. सिंधिया के कई समर्थक विधानसभा की सदस्यता के बगैर भाजपा सरकार में मंत्री के तौर पर शामिल हुए.
जुलाई माह में तीन और कांग्रेसी विधायकों ने भाजपा का दामन थाम लिया था. भाजपा ने उन सभी 25 लोगों को प्रत्याशी बनाया था, जो कांग्रेस विधायकी पद से इस्तीफा देकर पार्टी में शामिल हुए हैं.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)