दिल्ली हाईकोर्ट ने सेना और बीएसएफ से जवाब मांगा है कि क्या सेना के किसी शख़्स को कोर्ट मार्शल की सज़ा सुनाए जाने या समरी सुरक्षा बल कोर्ट के तुरंत बाद गिरफ़्तार किया जाना चाहिए या नहीं.
नई दिल्लीः दिल्ली हाईकोर्ट ने सेना और सीमा सुरक्षाबल (बीएसएफ) से जवाब मांगा है कि क्या सेना के किसी शख्स को कोर्ट मार्शल या समरी सिक्योरिटी फोर्स कोर्ट (एसएसएफसी) की सजा सुनाए जाने के तुरंत बाद गिरफ्तार किया जाना चाहिए या इसके लिए किसी प्राधिकरण से पुष्टि की आवश्यकता है.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस राजवी सहाय एंडलॉ और जस्टिस आशा मेनन की पीठ ने आदेश में कहा, ‘चूंकि यह मामला व्यक्ति की स्वतंत्रता से जुड़ा है. हमें चिंता है कि स्वतंत्रता पर अंकुश नहीं लगाया जाना चाहिए. प्रथमदृष्टया ऐसा लगता है कि सेना अधिनियम और बीएसएफ अधिनियम के तहत आदेश को उसकी पुष्टि किए जाने तक अंतिम रूप नहीं दिया जा सकता और इससे पहले कारावास की सजा की अवधि को शुरू नहीं किया जा सकता.’
अदालत ने इससे पहले उल्लेख किया था कि सेना अधिनियम की धारा 153 के साथ विनियमन 392 (आई) प्रथमदृष्टया प्रतिकूल लगता है. पीठ ने कहा कि इस पर विचार किया जाएगा कि क्या इसे हटाया जाना चाहिए या नहीं.
अदालत ने सेना के एक पूर्व मेजर की याचिका पर यह आदेश दिया.
पूर्व मेजर ने याचिका में बताया था कि उन्हें इस साल की शुरुआत में 42 दिन की कैद की सजा सुनाई गई थी. इस पर अदालत ने यह आदेश दिया कि बिना समरी जनरल कोर्ट मार्शल की पुष्टि के सजा देना अवैध है.
पूर्व मेजर ने यह भी आग्रह किया था कि केंद्र और थल सेनाध्यक्ष और जनरल ऑफिसर, उत्तरी कमान के कमांडिंग इन चीफ याचिकाकर्ता के मौलिक अधिकारों के कथित उल्लंघन के लिए उन्हें पांच लाख रुपये का जुर्माना देने का आदेश दें.
बता दें कि इस साल जनवरी में उन्हें तीन मामलों में दोषी पाया गया और तीन महीने के सश्रम कारावास की सजा सुनाई गई थी. इसके साथ ही तीन जनवरी से 14 फरवरी तक कैद में रखा गया.
इसके बाद मार्च में कंफर्मिंग अथॉरिटी ने इसकी पुष्टि की लेकिन सजा को रद्द कर दिया.
पूर्व मेजर ने अपनी याचिका में तर्क दिया कि प्रशासन ने सेना अधिनियम की धारा 153 का उल्लंघन कर कार्रवाई की.
सेना ने तर्क दिया कि उन्होंने रेगुलेशन 392(आई) के तहत ही कार्रवाई की, जो सजा सुनाए जाने के तुरंत बाद हिरासत में लिए जाने को मंजूरी देता है.