नीति आयोग के गठन के बाद पांच जनवरी, 2015 को पनगढ़िया को पहला उपाध्यक्ष बनाया गया था.
नई दिल्ली: नीति आयोग के उपाध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया ने पद से इस्तीफा देने का फैसला किया है. इस बारे में उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर उन्हें 31 अगस्त से सेवाओं से मुक्त करने का आग्रह किया है.
पनगढ़िया ने कहा है कि कोलंबिया विश्वविद्यालय उनके अवकाश को बढ़ाने को तैयार नहीं है. इस वजह से वह नीति आयोग ज़िम्मेदारी नहीं संभाल सकते. रिज़र्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन के बाद पनगढ़िया दूसरा बड़ा नाम है जो भारत में एक शीर्ष पद को छोड़कर अमेरिका में अध्यापन के पेशे में लौट रहा है.
भारतीय अमेरिकी मूल के अर्थशास्त्री और कोलंबिया विश्वविद्यालय में भारतीय राजनीतिक अर्थशास्त्र के प्रोफेसर पनगढ़िया नीति आयोग के जनवरी, 2015 में पहले उपाध्यक्ष बने थे.
उस समय योजना आयोग को समाप्त कर नीति आयोग बनाया गया था. नीति आयोग से पहले योजना आयोग में आमतौर पर परंपरा थी कि उपाध्यक्ष का पद प्रधानमंत्री के साथ-साथ चलता है. प्रधानमंत्री आयोग के अध्यक्ष होते हैं.
पनगढ़िया ने यहां संवाददाताओं से कहा कि कोलंबिया विश्वविद्यालय उन्हें अवकाश का विस्तार देने को तैयार नहीं है. ऐसे में वह 31 अगस्त को नीति आयोग से निकल जाएंगे.
पनगढ़िया ने बताया कि करीब दो महीने पहले उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से 31 अगस्त तक नीति आयोग के कार्यभार से मुक्त करने का आग्रह किया था.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नीति आयोग के अध्यक्ष भी हैं. 64 वर्षीय पनगढ़िया ने कहा कि विश्वविद्यालय में वह जो काम कर रहे हैं इस उम्र में ऐसा काम और कहीं पाना काफी मुश्किल है. पनगढ़िया ने कहा कि उन्हें कोई एक विकल्प चुनना था क्योंकि उन्हें ऐसी नौकरी नहीं मिल सकती जो वह कोलंबिया विश्वविद्यालय में कर रहे हैं.
अमेरिकी विश्वविद्यालयों में कोई भी व्यक्ति उस समय तक पढ़ा सकता है जब तक कि उसकी सेहत इसकी इजाज़त देती है.
पनगढ़िया ने कहा, यदि मैं 40 साल का होता तो मुझे कहीं भी और नौकरी मिल सकती थी. कोलंबिया में मैं जो नौकरी कर रहा हूं इस उम्र में वैसी नौकरी पाना लगभग असंभव है.
कुछ इसी तरह की परिस्थितियों में रघुराम राजन ने तीन साल के कार्यकाल के बाद शिकागो विश्वविद्यालय में लौटने के लिए रिज़र्व बैंक के गवर्नर पद से इस्तीफा दे दिया था.
पनगढ़िया के पास प्रिंसटन विश्वविद्यालय से पीएचडी की डिग्री है. वह एशियाई विकास बैंक, विश्व बैंक, अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष और अंकटाड में विभिन्न पदों पर काम कर चुके हैं. नीति आयोग में अपने कार्यकाल पर पनगढ़िया ने कहा कि शुरुआत में यह मुश्किल था लेकिन बाद में वह सुगमता से अपनी भूमिका निभा सके.
मार्च, 2012 में पनगढ़िया को पद्मभूषण सम्मान मिला था. यह देश का तीसरा सबसे बड़ा नागरिक सम्मान है.
अपने उत्तराधिकारी के बारे में पूछे जाने पर पनगढ़िया ने कहा कि इसके लिए कोई नाम उनके दिमाग में नहीं है. न ही वह सरकार को कोई नाम सुझाएंगे.
अरविंद पनगढ़िया आर्थिक उदारीकरण के पैरोकार माने जाते रहे हैं. अरविंद पनगढ़िया ने तकरीबन 10 किताबें लिखी हैं. 2008 में भारत के संदर्भ में प्रकाशित उनकी किताब ‘इंडिया: द इमर्ज़िंग जायंट’ खासी चर्चित है. उन्होंने बताया कि वह इसी किताब का आगे का हिस्सा लिखेंगे. यह पुस्तक 2008 में प्रकाशित हुई थी.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)