मैला ढोने की प्रथा रोकने के लिए क़ानून बदलेगा, मशीन से सफाई कराना होगा अनिवार्य

विश्व शौचालय दिवस के अवसर पर केंद्र ने सफाई मित्र सुरक्षा चैलेंज भी शुरू किया है, जिसका उद्देश्य सीवरों और सेप्टिक टैंकों की सफाई को लोगों द्वारा कराने से रोकना और मशीन से उनकी सफाई को बढ़ावा देना है.

(प्रतीकात्मक फोटो: पीटीआई)

विश्व शौचालय दिवस के अवसर पर केंद्र ने सफाई मित्र सुरक्षा चैलेंज भी शुरू किया है, जिसका उद्देश्य सीवरों और सेप्टिक टैंकों की सफाई को लोगों द्वारा कराने से रोकना और मशीन से उनकी सफाई को बढ़ावा देना है.

Ghaziabad: Phoolu (45), a full-time worker shows his hands after cleaning a manhole, during the ongoing COVID-19 lockdown, in Ghaziabad, Friday, May 01, 2020. Phoolu has a daughter and has been working since he was 10 years of age. He continues choicelessly to work inside sewer lines to earn a living amid this pandemic, exposing his body to added risk. (PTI Photo/Ravi Choudhary)(PTI01-05-2020_000090B)
(फाइल फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट के आदेश और कानून बनने के बावजूद मैला ढोने की प्रथा पर रोक नहीं लगने के कारण सरकार अब कानून में संशोधन करने वाली है. इसके तहत सीवर की सफाई मशीन से ही कराना अनिवार्य होगा.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, इन कानूनों के किसी भी तरह के उल्लंघन की जानकारी देने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर 24×7 हेल्पलाइन बनाई जाएगी. एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि सरकार का उद्देश्य अगस्त 2021 तक देश से मैनुअल स्कैवेंजिंग को खत्म करना है.

इसी कदम की पूर्ति के लिए आवास एवं शहरी कार्य मंत्रालय ने बीते गुरुवार को ‘सफाई मित्र सुरक्षा चैलेंज’ की शुरुआत की. विश्व शौचालय दिवस के अवसर पर शुरू किए गए इस चैलेंज का उद्देश्य सीवरों और सेप्टिक टैंकों की खतरनाक सफाई को रोकना और उनकी मशीन से सफाई को बढ़ावा देना है.

आवास और शहरी कार्य राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) हरदीप सिंह पुरी ने देश के 243 शहरों में सफाई मित्र सुरक्षा चैलेंज शुरू किया.

पुरी ने कहा, ‘मैनुअल स्कैवेंजर्स के रूप में रोजगार का निषेध और उनके पुनर्वास अधिनियम (2013) तथा माननीय उच्चतम न्यायालय के विभिन्न निर्णय स्पष्ट रूप से खतरनाक एवं हानिकारक सफाई गतिविधियों पर प्रतिबंधित लगाते हैं यानी कि कोई भी व्यक्ति सुरक्षात्मक उपकरण धारण किए बिना किसी सेप्टिक टैंक या सीवर में प्रवेश नहीं कर सकता है और न ही ऐसी प्रक्रियाओं में हिस्सा ले सकता है.’

उन्होंने आगे कहा, ‘इसके बावजूद सेप्टिक टैंकों और सीवरों की सफाई में लगे कर्मचारियों के बीच मानवीय विपत्तियों की पुनरावृत्ति होना चिंता का विषय है, क्योंकि यह समस्या आमतौर पर समाज के आर्थिक रूप से वंचित और हाशिये के समुदायों से जुड़ी है.’

मंत्रालय के सचिव दुर्गा शंकर मिश्रा ने इसकी रूपरेखा का जिक्र करते हुए कहा कि यह चुनौती मशीनीकृत सफाई और कार्यबल की क्षमता निर्माण के लिए बुनियादी ढांचे के निर्माण के साथ-साथ इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर नागरिकों के बीच जागरूकता पैदा करने पर केंद्रित होगी.

उन्होंने कहा कि इसके साथ ही शिकायतों को दर्ज करने और उन्हें निपटाने के अलावा सीवर ओवरफ्लो की समस्या दूर करने के लिए वास्तविक समय आधारित समाधान प्रदान करने के लिए एक समर्पित हेल्पलाइन नंबर की शुरुआत की गई है.

उन्होंने कहा कि प्रतिभागी शहरों का वास्तविक ऑन-ग्राउंड मूल्यांकन मई 2021 में एक स्वतंत्र एजेंसी द्वारा किया जाएगा और उसके परिणाम 15 अगस्त 2021 को घोषित किए जाएंगे.

मिश्रा ने कहा, ‘शहरों को तीन उप-श्रेणियों में सम्मानित किया जाएगा. 10 लाख से अधिक की आबादी के साथ, 3 से 10 लाख की आबादी और 3 लाख तक की आबादी वाले शहर. सभी श्रेणियों में आने वाले विजेता शहरों को मिलने वाली कुल पुरस्कार राशि 52 करोड़ रुपये होगी.’

उन्होंने ये भी कहा कि मंत्रालय ने निर्देश दिया है कि अब से ‘मैनहोल’ शब्द का इस्तेमाल नहीं किया जाएगा, इसके लिए सिर्फ ‘मशीन-होल’ शब्द का इस्तेमाल होगा.

बता दें कि पिछले पांच सालों में सीवर साफ करने वाले 376 लोगों की मौत हो गई है, जिसमें से 110 लोगों की मौत 2019 में ही हुई है. वहीं देश में पिछले 10 वर्षों में सीवर और सेप्टिक टैंकों की सफाई के दौरान 631 लोगों की जान गई है.

इस बीच सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय ने ये निर्णय लिया है कि कॉन्ट्रैक्टर या नगरपालिका को पैसे देने के बजाय वे सफाई वाली मशीन खरीदने के लिए सीधे श्रमिकों को फंड मुहैया कराएंगे.

मंत्रालय के सचिव आर. सुब्रहमण्यम ने कहा, ‘कानून में संशोधन के बाद मशीनों को इस्तेमाल अनिवार्य हो जाएगा. यह वैकल्पिक नहीं होगा. हैदराबाद जैसी कुछ नगरपालिकाओं ने इस दिशा में अच्छा कार्य किया है, लेकिन ये हर जगह होना चाहिए.’

छह दिसंबर, 2013 को रोजगार के रूप में मैला ढोने पर रोक एवं पुनर्वास अधिनियम, 2013 प्रभाव में आया था. यह अधिनियम स्पष्ट रूप से कहता है कि बिना रक्षात्मक उपकरणों के सीवर और सेप्टिक टैंकों की सफाई खतरनाक सफाई की श्रेणी में है और इसमें दंडात्मक कार्रवाई हो सकती है.

बता दें कि मैनुअल स्कैवेंजिंग एक्ट 2013 के तहत किसी भी व्यक्ति को सीवर में भेजना पूरी तरह से प्रतिबंधित है. अगर किसी विषम परिस्थिति में सफाईकर्मी को सीवर के अंदर भेजा जाता है तो इसके लिए 27 तरह के नियमों का पालन करना होता है. हालांकि इन नियमों के लगातार उल्लंघन के चलते आए दिन सीवर सफाई के दौरान श्रमिकों की जान जा रही है.

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