बीते फरवरी माह में उत्तर-पूर्वी दिल्ली के ज़ाफ़राबाद क्षेत्र में दंगों से संबंधित एक मामले में गुलफ़िशा फ़ातिमा को गिरफ़्तार किया गया था. इस मामले में सह-आरोपी पिंजरा तोड़ की सदस्य देवांगना कलीता और नताशा नरवाल को पहले ही ज़मानत दी जा चुकी है.
नई दिल्ली: दिल्ली की एक अदालत ने छात्र कार्यकर्ता गुलफिशा फातिमा को फरवरी में उत्तर-पूर्वी दिल्ली में सांप्रदायिक हिंसा से जुड़े एक मामले में शनिवार को जमानत दे दी.
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अमिताभ रावत ने जाफराबाद क्षेत्र में दंगों से संबंधित एक मामले में फातिमा को 30 हजार रुपये के निजी मुचलके और इतनी ही राशि की जमानत देने पर रिहा करने का आदेश दिया.
जाफराबाद क्षेत्र में हुए दंगे की घटना में गोली लगने से एक व्यक्ति की मौत हो गई थी.
अदालत ने इस आधार पर उसे जमानत दे दी कि इस मामले में सह-आरोपी जेएनयू की छात्राएं और नारीवादी संगठन पिंजरा तोड़ की सदस्य देवांगना कलीता और नताशा नरवाल को पहले ही जमानत दी जा चुकी है.
फातिमा मामले में तीन जून से हिरासत में थीं.
अदालत ने कहा, ‘इस मामले में सह-आरोपियों- देवांगना कलीता और नताशा नरवाल को जमानत दी जा चुकी है और उनकी भूमिका वर्तमान आवेदक/अभियुक्त (फातिमा) के समान बताई गई है. उन सभी के लिए गवाह लगभग समान हैं.’
अदालत ने अपने आदेश में कहा कि ऐसा कुछ नहीं, जिससे लगता हो कि गुलफिशा फातिमा गवाहों के लिए खतरा हैं.
अदालत ने कहा, मामले के सह-आरोपी तफसीफ को ‘घोषित अपराधी’ घोषित किया जा चुका है, लेकिन फातिमा को उनके कृत्य और आचरण को लेकर जमानत देने से इनकार नहीं किया जा सका है.
अदालत ने फातिमा को सबूतों के साथ छेड़छाड़ न करने या एनसीटी दिल्ली (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली) के अधिकार क्षेत्र को बिना आदेश छोड़ने की अनुमति नहीं दी. यह भी कहा गया कि उन्हें सुनवाई की तारीख में हर दिन या जैसा निर्देश हो अदालत में हाजिर होना है.
दंगों में पहले से रची गई साजिश से संबंधित एक अलग मामले में गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम यूएपीए के तहत गुलफिशा फातिमा को गिरफ्तार किया गया है. इस संबंध में वह वर्तमान में दिल्ली की तिहाड़ जेल में बंद हैं.
सुनवाई के दौरान फातिमा की ओर से पेश अधिवक्ता महमूद प्राचा ने कहा कि उन्हें बिना किसी सबूत के वर्तमान मामले में झूठा और दुर्भावनापूर्ण तरीके से फंसाया गया है.
पुलिस की ओर से पेश विशेष लोक अभियोजक राजीव कृष्ण शर्मा ने जमानत याचिका का विरोध किया और कहा कि फातिमा ने कथित तौर पर साजिश रची और वह नागरिकता संशोधन कानून (सीएए), राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) के खिलाफ शांतिपूर्ण प्रदर्शन की आड़ में दिसंबर, 2019 से लगातार स्थानीय निवासियों को भड़का रही थीं.
विशेष लोक अभियोजक ने आरोप लगाया कि फातिमा 22 फरवरी से लेकर 24 फरवरी 2020 की देर शाम तक प्रदर्शन स्थल जाफराबाद मेट्रो स्टेशन के पास 66 फुटा रोड पर खुद मौजूद थीं, जो एक बड़े दंगे में तब्दील हो गया.
पिंजड़ा तोड़ की सदस्य देवांगना कलीता को दिल्ली हाईकोर्ट ने बीते एक सितंबर और नताशा नरवाल को ट्रायल कोर्ट ने बीते 17 सितंबर को जमानत दे दी थी.
बता दें कि गुलफिशा फातिमा को 9 अप्रैल 2020 को जाफ़राबाद प्रदर्शन में सड़क बंद करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. एफआईआर संख्या 48/20 में उनके ऊपर आईपीसी कई धाराएं लगाई गई थीं.
इस एफआईआर पर उन्हें 13 मई को जमानत मिल गई थी, लेकिन इसके बाद आर्म्स एक्ट और यूएपीए जैसी धाराएं लगाकर उन्हें जेल में बंद कर दिया गया.
बीते जुलाई में गुलफिशा फातिमा की रिहाई की अपील करते हुए नागरिक समाज के सदस्यों, शिक्षाविदों, कार्यकर्ताओं, लेखकों, पत्रकारों, कलाकारों वकीलों समेत 450 से अधिक लोगों ने एक बयान जारी किया था.
गौरतलब है कि नागरिकता संशोधन कानून के समर्थकों और प्रदर्शनकारियों के बीच हिंसा के बाद 24 फरवरी को उत्तर-पूर्वी दिल्ली में भड़की सांप्रदायिक हिंसा में कम से कम 53 लोगों की मौत हो गई थी और लगभग 200 अन्य घायल हो गए थे.
उत्तर-पूर्वी दिल्ली में लगभग 750 मामले दर्ज हैं और दंगों से संबंधित मामलों में लगभग 1,200 लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है.
उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगा दावा आयोग की शुरुआत की
उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश जस्टिस सूर्यकांत ने फरवरी में हुई सांप्रदायिक हिंसा के पीड़ितों को मुआवजा प्रदान करने के लिए उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगा दावा आयोग (एनईडीआरसीसी) की शुरुआत की.
जस्टिस कांत ने आयोग की शुरुआत ऑनलाइन की और उन्होंने एक बयान में कहा कि दंगा पीड़ितों को न्याय देना समय की जरूरत है.
जस्टिस कांत ने बयान में कहा, ‘दंगा पीड़ितों को न्याय देना समय की जरूरत है. दंगा पीड़ितों को तत्परता के साथ मुआवजा दिया जाना चाहिए. मैं इस आयोग द्वारा इस उद्देश्य को प्राप्त करने की कामना करता हूं.’
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)