विशेषज्ञों का कहना है कि अधिकतम कार्यदिवस को बढ़ाने से कामगारों पर विपरित प्रभाव पड़ सकता है. आशंका है कि अगर यह प्रस्ताव नियोक्ताओं को तीन पालियों के स्थान पर दो पालियों में काम करने के लिए प्रोत्साहित करेगा तो रोजगार की संख्या में भी गिरावट हो सकती है.
नई दिल्ली: श्रम मंत्रालय ने संसद में हाल ही में पारित एक संहिता में कार्य के घंटे को बढ़ाकर अधिकतम 12 घंटे प्रतिदिन करने का प्रस्ताव दिया है. अभी कार्य दिवस अधिकतम 10.5 घंटे का होता है.
मंत्रालय ने व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं कार्य शर्तें (ओएसएच) संहिता 2020 के मसौदा नियमों के तहत अधिकतम 12 घंटे के कार्य दिवस का प्रस्ताव दिया है. इसमें बीच में अल्पकालिक अवकाश (इंटरवल) भी शामिल हैं.
हालांकि 19 नवंबर 2020 को अधिसूचित इस मसौदे में साप्ताहिक कार्य घंटे को 48 घंटे पर बरकरार रखा गया है.
मौजूदा प्रवाधानों के तहत आठ घंटे के कार्यदिवस में कार्य सप्ताह छह दिन का होता है तथा एक दिन अवकाश का होता है.
श्रम मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘यह भारत की विषम जलवायु परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए किया गया है, जहां काम पूरे दिन में बंटा हुआ होता है. इससे श्रमिकों को ओवरटाइम भत्ता के माध्यम से अधिक कमाई करने की सुविधा मिलेगी.’
अधिकारी ने कहा, ‘हमने मसौदा नियमों में आवश्यक प्रावधान किया है, ताकि आठ घंटे से अधिक काम करने वाले सभी श्रमिकों को ओवरटाइम मिल सके.’
ओएसएच संहिता के मसौदा नियमों के अनुसार, किसी भी दिन ओवरटाइम की गणना में 15 से 30 मिनट के समय को 30 मिनट गिना जाएगा. मौजूदा व्यवस्था के तहत 30 मिनट से कम समय की गिनती ओवरटाइम के रूप में नहीं की जाती है.
मसौदे के अनुसार, कोई भी व्यक्ति कम से कम आधे घंटे के इंटरवल के बिना पांच घंटे से अधिक लगातार काम नहीं करेगा.
सप्ताह के हिसाब से हर रोज कार्य के घंटे इस तरह से तय करने होंगे कि पूरे सप्ताह में ये 48 घंटे से अधिक न हो पाएं.
मसौदा नियमों में कहा गया है, ‘किसी भी श्रमिक को एक सप्ताह में 48 घंटे से अधिक समय तक किसी प्रतिष्ठान में काम करने की आवश्यक्ता नहीं होगी और न ही ऐसा करने की अनुमति दी जाएगी. काम के घंटे को इस तरीके से व्यवस्थित करना होगा कि बीच में आराम के लिए इंटरवल के समय समेत किसी भी दिन कार्य के घंटे 12 से अधिक नहीं होने चाहिए.’
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, विशेषज्ञों का कहना है कि अधिकतम कार्यदिवस को बढ़ाने से कामगारों पर विपरित प्रभाव पड़ सकता है.
एक्सएलआरआई (जेवियर्स स्कूल ऑफ मैनेजमेंट) के प्रोफेसर केआर श्याम सुंदर ने कहा, ‘फैक्टरीज एक्ट, 1948 में अधिकतम कार्यदिवस को 10.5 घंटे से बढ़ाकर 12 घंटे करने से कामगारों पर कुछ विपरित प्रभाव पड़ सकता है. अधिकतम कार्यदिवस को 12 घंटे किए जाने से नियोक्ता पूरी अवधि के लिए श्रमिकों को काम पर रखने के लिए प्रोत्साहित होंगे. हालांकि, किसी को भी नहीं पता है कि कर्मचारी बाकी के अतिरिक्त 90 मिनट (डेढ़ घंटे: कार्यसमय बढ़ाए जाने की अवधि) में क्या करेंगे?’
उन्होंने कहा, ‘अगर नियोक्ता कर्मचारियों को पूरे 12 घंटे काम पर रखते हैं और अगर उसमें यात्रा का भी समय जोड़ लिया जाए जो कि मेट्रो शहरों में आसानी से एक घंटा होता है तो कर्मचारियों के कार्य संतुलन पर विपरित प्रभाव पड़ेगा. इसके साथ ही अगर यह नियोक्ताओं को तीन पालियों के स्थान पर दो पालियों में काम करने के लिए प्रोत्साहित करेगा तो फिर रोजगार की संख्या में भी गिरावट हो सकती है.’
मसौदा नियमों में अंतरराज्यीय प्रवासियों के लिए यात्रा भत्ता का भी प्रावधान किया गया है. हालांकि, यह भत्ता कर्मचारी को तभी मिलेगा जब कोई कर्मचारी निर्धारित 12 महीने के दौरान 180 घंटे से कम अवधि तक संबंधित संस्थान में काम नहीं करेगा.
इस नियम से बड़ी संख्या में ऐसे प्रवासी मजदूर बाहर हो सकते हैं जो लंबे समय तक ठेके (कॉन्ट्रैक्ट) पर काम नहीं करते हैं.
45 दिनों के लिए आम जनता की रायशुमारी के लिए सार्वजनिक किए गए मसौदा नियमों में कॉन्ट्रैक्टरों के लिए राष्ट्रीय स्तर पर एक लाइसेंस का भी प्रस्ताव किया गया है.
इसके साथ ही 500 से अधिक कर्मचारियों वाले सामान्य संस्थानों और 250 से अधिक कर्मचारियों वाले जोखिम वाले काम में लगे संस्थानों के लिए एक सेफ्टी कमेटी गठित करने का भी प्रस्ताव है.
बता दें कि इससे पहले इस साल मई में उत्तर प्रदेश सरकार ने औद्योगिक इकाइयों में कामगारों के आठ के बजाय 12 घंटे काम करने संबंधी विवादित आदेश को इलाहाबाद हाईकोर्ट के नोटिस के बाद वापस ले लिया था.
उस आदेश के मुताबिक, कारखानों में युवा श्रमिकों से एक दिन में अधिकतम 12 घंटे और एक हफ्ते में 72 घंटे से अधिक काम नहीं लिया जाता.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)