कर्नाटक में ‘लव जिहाद’ क़ानून से पहले ही अपहरण संबंधी धाराओं में हो रही कार्रवाई

अदालतों और केसों के पुलिस रिकॉर्ड के अनुसार, बेंगलुरु में पिछले पांच साल में आईपीसी की धारा 366 के तहत दर्ज 41 केस फिलहाल लंबित पड़े हैं. इनमें वयस्कों को भगाने और शादी करने के मामले हैं. 35 मामले हिंदू युगलों से जुड़े हैं, जबकि छह मामले अंतरधार्मिक हैं. धारा 366 अप​हरण कर जबरन शादी करने से संबंधित धारा है.

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बीएस येदियुरप्पा. (फोटो: पीटीआई).

अदालतों और केसों के पुलिस रिकॉर्ड के अनुसार, बेंगलुरु में पिछले पांच साल में आईपीसी की धारा 366 के तहत दर्ज 41 केस फिलहाल लंबित पड़े हैं. इनमें वयस्कों को भगाने और शादी करने के मामले हैं. 35 मामले हिंदू युगलों से जुड़े हैं, जबकि छह मामले अंतरधार्मिक हैं. धारा 366 अपहरण कर जबरन शादी करने से संबंधित धारा है.

बीएस येदियुरप्पा. (फोटो: पीटीआई).
बीएस येदियुरप्पा. (फोटो: पीटीआई).

बेंगलुरु: उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार द्वारा कथित लव जिहाद या धर्मांतरण के खिलाफ लाए गए कानून के बाद विभिन्न भाजपा शासित राज्यों की सरकारों ने भी ऐसा ही कानून लाने की बात कही है.

हिंदुत्ववादी संगठनों द्वारा जिन अंतर-धार्मिक विवाहों को ‘लव जिहाद’ की संज्ञा दी जा रही है, उनके खिलाफ भाजपा शासित अन्य राज्यों की तरह कर्नाटक भी एक नए विशेष कानून की जरूरत पर जोर दे रहा है.

मध्य प्रदेश, हरियाणा के बाद इस दिशा में कर्नाटक की भाजपा नेतृत्व वाली बीएस येदियुरप्पा वाली सरकार ने भी अपने कदम बढ़ाने वाली है.

हालांकि, कर्नाटक में पहले से ही अक्सर आईपीसी की धारा 366 का इस्तेमाल कर वयस्कों के बीच अंतर-धार्मिक और अंतरजातीय रिश्तों को रोकने के लिए किया जाता रहा है.

अदालतों और केसों के पुलिस रिकॉर्ड्स के के आधार पर इंडियन एक्सप्रेस ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया है कि कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु में पिछले पांच साल में आईपीसी की धारा 366 के तहत दर्ज 41 केस लंबित पड़े हैं. इनमें वयस्कों को भगाने और शादी करने के मामले शामिल हैं. 35 मामले हिंदू युगलों से जुड़े हैं, जबकि छह मामले अंतरधार्मिक हैं.

आईपीसी की धारा 366 अपहरण, बंधक बनाने और एक महिला को शादी के लिए मजबूर करने जैसे अपराधों के लिए है.

इसमें कहा गया है, ‘जो कोई भी किसी स्त्री का अपहरण, उसकी इच्छा के विरुद्ध विवाह करने के लिए उसे विवश करने के आशय से या वह विवश की जाएगी यह संभावना जानते हुए अथवा अवैध संभोग करने के लिए उसे विवश करने या बहकाने या फिर यह संभावना जानते हुए कि वह अवैध संभोग के लिए विवश या बहकायी जाएगी, करेगा, तो उसे किसी एक अवधि के लिए कारावास की सजा, जिसे दस वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है और साथ ही आर्थिक दंड से दंडित किया जाएगा.’

सामान्य मामलों में जब नाबालिग के केस होते हैं तब इस धारा का इस्तेमाल यौन अपराधों से बच्चों की सुरक्षा (पॉक्सो) अधिनियम, 2012 के साथ होता है लेकिन अक्सर इसका इस्तेमाल तब भी किया जाता है जब 18 साल से अधिक उम्र की महिलाओं को भगाने का आरोप लगता है.

बेंगलुरु के एक डिविजनल पुलिस अधिकारी ने कहा, ‘यदि महिला धारा 366 के तहत दर्ज किए गए मामले में प्रमुख है, तो मामले का अभियोजन उस बयान पर निर्भर करेगा जो वह अभियुक्त के खिलाफ आरोपों के बारे में अदालत में देती है. यदि महिला कहती है कि वह अपनी मर्जी से गई थी, तो ऐसी स्थिति में अभियोजन के लिए कोई मामला नहीं बनता है.’

कोर्ट रिकॉर्ड्स के अनुसार, पॉक्सो अधिनियम के साथ दर्ज धारा 366 के मामलों को देखें तो पिछले पांच साल में बेंगलुरु में ट्रायल के लिए 422 मामले लंबित हैं. इसमें से 357 मामले हिंदू युगलों के जबकि 54 मुस्लिम-हिंदू और 11 ईसाई-हिंदू से जुड़े हैं.

बता दें कि शनिवार को ही उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने ‘उत्‍तर प्रदेश विधि विरूद्ध धर्म संपविर्तन प्रतिषेध अध्‍यादेश, 2020’ को मंजूरी दी थी.

मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ की अध्‍यक्षता में बीते 24 नवंबर को कैबिनेट की बैठक में इस अध्‍यादेश को मंजूरी दी गई थी. इसमें विवाह के लिए छल-कपट, प्रलोभन देने या बलपूर्वक धर्मांतरण कराए जाने पर विभिन्न श्रेणियों के तहत अधिकतम 10 वर्ष कारावास और 50 हजार तक जुर्माने का प्रावधान किया गया है.

कुछ कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि 366 जैसी आईपीसी की मौजूदा धारा का इस्तेमाल पहले से ही पुलिस अंतरधार्मिक रिश्तों के मामले में करती है जब परिवार उनके रिश्ते का विरोध करते हैं.

राज्य के पूर्व पब्लिक प्रॉसीक्यूटर बीटी वेंकटेश ने कहा, ‘अपहरण के लिए बनी आईपीसी की धारा का इस्तेमाल पुलिस रिश्तों में दखल के लिए कर रही है. आपसी सहमति से रिश्ते में आने वाले दो वयस्कों के रिश्तों को तोड़ने के लिए किसी नए कानून की जरूरत नहीं है. अंतरधार्मिक रिश्तों पर रोक लगाने वाले कानून का कोई आधार नहीं है. यह संविधान के सिद्धांत के खिलाफ जाएगा.’

वेंकटेश ने कहा, ‘1875 का भारतीय बहुमत अधिनियम कहता है कि 18 साल का कोई व्यक्ति किसी समझौते (शादी को एक समझौता माना जाता है) में शामिल हो सकता है जबकि संविधान के अनुच्छेद 25 में विवेक की स्वतंत्रता, सभी नागरिकों के लिए धर्म को मानने, अभ्यास करने और प्रचार करने की स्वतंत्रता की गारंटी देता है.’

साल 2009 में कर्नाटक हाईकोर्ट की खंडपीठ ने कर्नाटक पुलिस की सीडीआई को बेंगलुरु के चामराजनगर इलाके की 18 वर्षीय सिल्जा राज और केरल के कन्नूर से 24 वर्षीय असगर नजर की शादी के मामले में ‘लव जिहाद’ के केस को देखने के लिए कहा था.

13 नवंबर, 2009 को हाईकोर्ट में दाखिल एक अंतरिम सीआईडी रिपोर्ट में तत्कालीन डीजीपी अजय कुमार सिंह ने कहा था कि सिल्जा के पिता सी. सेल्वाराज द्वारा अदालत में लगाए गए आरोप की तरह शादी में ‘लव जिहाद’ का मामला नहीं है.

सिंह ने अपनी अंतरिम रिपोर्ट में कहा था, केस में प्रथमदृष्टया ‘लव जिहाद’ का कोई मामला नहीं है. सिल्जा राज ने असगर से अपनी मर्जी से शादी की है.

सीआईडी की अंतरिम रिपोर्ट के आधार पर अदालत ने सिल्जा राज से कहा था कि वह जहां चाहें जाने के लिए स्वतंत्र हैं और उन्होंने अपने पति के साथ जाना चुना था.