सुप्रीम कोर्ट में दाख़िल एक जनहित याचिका में कहा गया है कि कोविड-19 संक्रमण के कारण पोस्टर घर के बाहर लगाने और मरीज़ों के नाम को रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन तथा वॉट्सऐप ग्रुप पर साझा करने से न सिर्फ़ उनके साथ भेदभाव हो रहा है, बल्कि बिना वजह लोगों का ध्यान उन पर जा रहा है.
नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि कोविड-19 मरीजों के मकान के बाहर पोस्टर लग जाने के बाद उनके साथ अछूतों जैसा व्यवहार हो रहा है और यह एक अलग तरह की जमीनी हकीकत बयान करता है.
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि कोरोना मरीजों के घर के बाहर पोस्टर लगाने का उद्देश्य उनके साथ भेदभाव करना नहीं, बल्कि यह अन्य लोगों की सुरक्षा की मंशा से किया गया था.
जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस आर. सुभाष रेड्डी और जस्टिस एमआर शाह की पीठ ने कहा कि लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है. कोरोना मरीजों के घर के बाहर ऐसा पोस्टर लगाने से उनके साथ अछूतों जैसा व्यवहार हो रहा है.
Supreme Court posts for December 3 hearing in public interest litigation against the decision of States and Union Territories to affix posters outside the homes of COVID-19 patients, divulging their identities pic.twitter.com/WUAt933sZ0
— ANI (@ANI) December 1, 2020
मामले में केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बताया कि कुछ राज्य संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए अपने स्तर पर ऐसा कर रहे हैं.
मेहता ने कहा कि कोविड-19 मरीजों के घर पर पोस्टर चिपकाने का तरीका खत्म करने के लिए देशव्यापी दिशानिर्देश जारी करने का अनुरोध करने वाली याचिका पर अदालत के आदेश पर केंद्र अपना जवाब दे चुका है.
पीठ ने कहा, केंद्र द्वारा दाखिल जवाब को रिकॉर्ड पर आने दें, उसके बाद गुरुवार को हम इस पर सुनवाई करेंगे.
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने पांच नवंबर को केंद्र से कहा था कि वह कोविड-19 मरीजों के मकान पर पोस्टर चिपकाने का तरीका खत्म करने के लिए दिशानिर्देश जारी करने पर विचार करे.
अदालत ने कुश कालरा की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार को औपचारिक नोटिस जारी किए बिना जवाब मांगा था.
पीठ ने कहा था कि जब दिल्ली सरकार हाईकोर्ट में मरीजों के मकानों पर पोस्टर नहीं लगाने पर राजी हो सकती है तो इस संबंध में केंद्र सरकार पूरे देश के लिए दिशानिर्देश जारी क्यों नहीं कर सकती.
आम आदमी पार्टी की सरकार ने तीन नवंबर को दिल्ली हाईकोर्ट को बताया था कि उसने अपने सभी जिलों को निर्देश दिया है कि वे कोविड-19 मरीजों या आइसोलेशन में रह रहे लोगों के मकानों पर पोस्टर न लगाएं और पहले से लगाए गए पोस्टरों को भी हटा लें.
दिल्ली सरकार ने अदालत को बताया था कि सरकारी अधिकारियों को कोविड-19 मरीजों से जुड़ी जानकारी पड़ोसियों, रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशंस (आरडब्ल्यूए) या वॉट्सऐप ग्रुप पर साझा करने की भी अनुमति नहीं दी गई है.
बता दें कि कालरा ने हाईकोर्ट में दायर जनहित याचिका में कहा था कि कोविड-19 मरीज के नाम को आरडब्ल्यूए और वॉट्सऐप ग्रुप पर साझा करने से न सिर्फ उनके साथ भेदभाव हो रहा है बल्कि बिना वजह लोगों का ध्यान उन पर जा रहा है.
याचिका में कहा गया कि कोविड-19 मरीजों की निजता का सम्मान करना चाहिए और उन्हें इस महामारी से उबरने के लिए शांति और लोगों की घूरती हुई नजरों से दूर रखा जाना चाहिए, लेकिन इसके बजाय उन्हें दुनिया की नजरों के सामने लाया जा रहा है.
याचिका में कहा गया कि सार्वजनिक रूप से अपमानित और भेदभाव होने से बचने के लिए लोग अपनी कोविड-19 जांच कराने से हिचक रहे हैं, और यह सब कुछ मरीजों के मकानों पर पोस्टर चिपकाने का नतीजा है.
इस मामले में अगली सुनवाई तीन दिसंबर को होगी.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)