पीटर मुखर्जी का 2018 में दिया यह बयान दिखाता है कि ईडी के आरोपों के अनुसार जो रिश्वत कार्ति चिदंबरम को दी गई थी, वह असल में मुकेश अंबानी की एक फर्म के लिए थी. हालांकि यह साफ नहीं है कि मोदी सरकार की इस प्रमुख जांच एजेंसी ने यह जानकारी मिलने के बाद क्या कदम उठाया था.
नई दिल्ली: साल 2018 में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) को दिए एक चौंकाने वाले बयान में आईएनएक्स मामले के मुख्य आरोपी और पूर्व टीवी एग्जीक्यूटिव पीटर मुखर्जी ने दावा किया था कि घूसखोरी कांड के केंद्र में रही आईएनएक्स मीडिया का स्वामित्व मुकेश अंबानी और उनके ‘परिवार और दोस्तों’ के पास है.
मुखर्जी उस मामले में आरोपी हैं, जिसमें पूर्व वित्त मंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी.चिदंबरम और उनके बेटे कार्ति पीटर और उनकी पत्नी इंद्राणी मुखर्जी द्वारा दिए गए बयानों के आधार पर जेल भेजे गए थे.
पीटर ने ईडी को यह भी बताया था कि अंबानी चिदंबरम और उनके बेटे के सीधे संपर्क में थे और उनकी रिलायंस के साथ उनकी दैनिक सौदेबाजी उनके एग्जीक्यूटिव के द्वारा हुआ करती थीं.
इस बयान का महत्व इसलिए है क्योंकि यह दिखाता है कि जैसा मुखर्जी ने जांचकर्ताओं को बताया, अगर वास्तव में अंबानी उस फर्म के मालिक हैं, जिसके प्रतिनिधि मुखर्जी और उनकी पत्नी थे- तो ईडी के अनुसार जो रिश्वत कार्ति को दी गई थी, वह अंबानी की एक फर्म के लिए थी.
इससे भी अधिक चौंकाने वाली बात यह है कि ईडी- जिसने इन्हीं आरोपियों के बयान के आधार पर पी. चिदंबरम और कार्ति को न केवल पूछताछ के लिए बुलाया, बल्कि गिरफ्तार भी किया, वह अंबानी या उनके जिन सहयोगियों के नाम लिए गए, को पूछताछ के लिए बुलाती तक नहीं दिखी.
द वायर द्वारा मुखर्जी के 2018 में दिए गए बयान के बाद मुकेश अंबानी के संबंध में लिए गए किसी कदम के बारे में पूछे जाने पर ईडी के अधिकारियों ने किसी भी सवाल का जवाब देने से इनकार कर दिया.
दो साल पहले मुखर्जी द्वारा एजेंसी को दिए गए बयान की रोशनी में यह स्पष्ट नहीं है कि क्या ईडी ने फर्म के मालिकाना हक़ के बारे में दिए मुखर्जी के बयान को जांचने या परखने के लिए कोई कदम उठाया था या नहीं, या फिर अंबानी से यह जानने की कोशिश की थी कि वे इस फर्म के मालिक है या मुखर्जी के रिलायंस अधिकारियों के साथ दैनिक संपर्क के दावे की बात कहे जाने के चलते क्या वे इस बात से वाकिफ हैं कि फर्म के फॉरेन इनवेस्टमेंट प्रमोशन बोर्ड (एफआईपीबी) संबंधी मुद्दों को सुलझाने के लिए कथित तौर पर रिश्वत दी गई थी.
ईडी और रिलायंस का जवाब
द वायर की ओर से रिलायंस इंडस्ट्रीज को सवालों की एक सूची भेजते हुए जानकारी मांगी गई है कि क्या अंबानी और उनके सहयोगियों में से किसी को कभी एजेंसी द्वारा समन किया गया था.
इस रिपोर्ट के प्रकाशन तक उनकी तरफ से कोई जवाब नहीं आया है.
इसके साथ ही इस मामले में ईडी के जांच अधिकारी रहे संदीप थपलियाल से भी संपर्क किया गया था, लेकिन उनका कहना था कि वे इस बारे में बात करने के लिए अधिकृत नहीं हैं और उन्हें इस केस से हटा दिया गया है.
यह पूछे जाने पर कि क्या उन्होंने मुकेश अंबानी या पीटर और इंद्राणी मुखर्जी द्वारा बताए गए उनके किसी सहयोगी से संपर्क किया, संदीप ने कहा कि इसका जवाब उनके सीनियर दे सकेंगे.
थपलियाल के बॉस महेश गुप्ता, जिनकी निगरानी में जांच हुई थी, ने भी कहा कि वे इस बारे में बात करने के लिए अधिकृत नहीं हैं और इस बात का जवाब नहीं दिया कि क्यों अंबानी को पूछताछ के लिए समन नहीं किया गया था.
सीधा कनेक्शन?
अपने बयान में मुखर्जी ने आरोप लगे कि जहां उनकी और उनकी पत्नी इंद्राणी के पास 10% स्वेट इक्विटी थी, वहीं इंद्राणी के पास मुकेश अंबानी और उनके परिवार और साथियों के नाम पर 40% ‘होल्डिंग कैपेसिटी’ थी.
मुखर्जी ने यह भी दावा किया था कि एक निजी इक्विटी फर्म एनएसआर पीई, जिसके पास फर्म के स्वामित्व का 20% था, अंबानी के दोस्तों के लिए एक साधन का काम कर रही थी. इस तरह अंबानी आईएनएक्स मीडिया के सबसे बड़े शेयरधारक और निवेशक थे, जिसके पास 60 प्रतिशत के करीब शेयर थे.
मुखर्जी का यह भी कहना था कि अंबानी पी.चिदंबरम और उनके बेटे कार्ति जैसे वरिष्ठ नेताओं के सीधे संपर्क में थे.
उनके मुताबिक, दैनिक स्तर पर रिलायंस के साथ होने वाले सौदे उनके एक्जीक्यूटिव्स के जरिये हुआ करते थे, जिनके नाम मुखर्जी ने एलवी मर्चेंट, मनोज मोदी, आनंद जैन बताए थे. ये सभी मुकेश अंबानी के विश्वासपात्र हैं.
मुखर्जी ने यह बयान 7 मार्च 2018 को असिस्टेंट डायरेक्टर विवेक माहेश्वरी को लिखित में दिए थे. मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम अधिनियम के तहत असिस्टेंट डायरेक्टर स्तर के अधिकारी के समक्ष लिखित में दिया गया बयान अदालत में एक साक्ष्य के बतौर मान्य है.
अन्य आरोपी इंद्राणी ने भी 5 अक्टूबर 2019 को असिस्टेंट डायरेक्टर संदीप थपलियाल को लिखित में दिए गए एक बयान में मुकेश अंबानी का नाम लिया था, जहां उन्होंने बताया था कि अप्रूवल प्रक्रिया में अनियमितताओं को इंगित करते हुए आए एफआईपीबी के नोटिस के बाद यह निर्णय लिया गया था कि पीटर अंबानी से मुलाकात करेंगे.
इन दोनों द्वारा दिए गए बयानों को जांच से वाकिफ लोगों ने द वायर से विस्तार में साझा किया है. हालांकि यह साफ नहीं है कि ईडी द्वारा इन दोनों से अंबानी की भूमिका को लेकर और स्पष्टीकरण मांगा गया था या नहीं, या फिर इसके बाद कोई और बयान दिए गए थे.
यह भी स्पष्ट नहीं है कि इस साल जून में ईडी द्वारा इस मामले में दायर चार्जशीट में पीटर और इंद्राणी मुखर्जी द्वारा दिए मुकेश अंबानी के आईएनएक्स के मालिक होने संबंधी बयान शामिल हैं या नहीं. अदालत द्वारा अभी इस चार्जशीट का संज्ञान नहीं लिया गया है.
जहां एक ओर आधिकारिक ‘सूत्रों’ द्वारा रिपोर्टर्स को यह बात पता चलने दी गई कि पीटर और इंद्राणी ने एजेंसी को बताया था कि वे चिदंबरम से तब मिले थे जब वे वित्त मंत्री थे (और उन्होंने कथित तौर पर उनसे अपने बेटे के बिजनेस में मदद करने को कहा था), लेकिन मुखर्जी द्वारा लगाए गए यह आरोप कि जिस कंपनी की जांच हो रही है, उसके मालिक मुकेश अंबानी हैं और इंद्राणी रिलायंस के मालिक के लिए बतौर ‘बेनामी’ काम कर रही थीं, कभी मीडिया तक नहीं पहुंचे.
मुखर्जी दंपति ने यह आरोप भी लगाया था कि दिल्ली के एक होटल में जब वे कार्ति से मिले थे, तब उन्होंने उनसे बतौर घूस दस लाख डॉलर की मांग की थी.
यह तथ्य कि दो आरोपियों द्वारा मुकेश अंबानी को रिश्वत कांड के केंद्र में रही कंपनी का असली मालिक बताया गया, फिर भी ईडी द्वारा उनसे कोई पूछताछ नहीं हुई और दूसरी तरफ चिदंबरम और उनके बेटे के साथ ऐसा हुआ, दिखाता है कि राजनीतिक मामलों में जांच एजेंसियां साक्ष्यों को लेकर किस तरह चुनिंदा रवैया अपनाती हैं.
2013 एसएफआईओ रिपोर्ट
आईएनएक्स/न्यूज़ एक्स समूह में रिलायंस इंडिया लिमिटेड और इसकी सहयोगी कंपनियों की भूमिका को लेकर भारत सरकार की अपनी एजेंसियां भी सवाल उठा चुकी हैं.
नवंबर 2013 में द हूट में लिखे एक आलेख में वरिष्ठ पत्रकार परंजॉय गुहा ठाकुरता ने बताया था कि कैसे मुखर्जी द्वय आईएनएक्स/न्यूज़ एक्स मीडिया समूह में अपनी हिस्सेदारी बेचने वाले थे और ‘कैसे रिलायंस इंडस्ट्रीज़ ने एक निश्चित समय के अंदर पेचीदा तरीके से इन कंपनियों का नियंत्रण अपने हाथों में ले लिया था.’
यह दावे सीरियस फ्रॉड इन्वेस्टिगेशन ऑफिस (एसएफआईओ) की एक ड्राफ्ट रिपोर्ट में किए गए थे, जिसमें उसने ‘रिलायंस इंडिया इंडस्ट्रीज़ और अंबानी से जुड़ी कंपनियों वाले अपेक्षाकृत असामान्य ट्रांज़ैक्शन’ की पड़ताल की थी.
2015 में ठाकुरता ने एक लेख में बताया था, ‘एसएफआईओ की 2013 की ड्राफ्ट रिपोर्ट में सामने आया था कि इनकम टैक्स विभाग की जांच में बिना किसी संदेह के यह साबित हुआ था कि न्यूज़ एक्स चैनल का- आईएनएक्स न्यूज़ प्राइवेट लिमिटेड के 92% इक्विटी के सब्सक्रिप्शन के जरिये इंडी मीडिया को. प्रा। लिमिटेड को बेचा जाना एक ‘दिखावटी ट्रांज़ैक्शन था और यह रिलायंस इंडस्ट्रीज की ‘ढेरों ट्रांजैक्शंस के साथ’ आईएनएक्स को इसकी फ्रंट कंपनियों के जरिये फंड करने की पूर्व-निर्धारित योजना थी.’
एसएफआईओ की रिपोर्ट के 25वें पन्ने पर कहा गया है, ‘इस प्रकार जिस तरह साक्ष्य दिखाते हैं कि रिलायंस की प्रमोटर समूह कंपनियों ने केवल आईएनएक्स मीडिया और आईएम मीडिया प्राइवेट लिमिटेड में इक्विटी हासिल करने के इरादे से कनवर्टिबल लोन की आड़ में पैसे की उगाही की थी.’
हालांकि एसएफआईओ के इस ड्राफ्ट निष्कर्ष ने यूपीए-2 सरकार को किसी तरह की आगे की जांच के लिए प्रेरित नहीं किया न ही किसी तरह के अभियोजन की शक्ल में ही कोई नतीजा सामने आया.
यह पहला मौका नहीं है जब किसी राजनीतिक मामले में अंबानी का नाम आरोपियों द्वारा लिया गया और उन्हें एजेंसियों द्वारा पूछताछ के लिए नहीं बुलाया गया.
एक अन्य हाईप्रोफाइल- अगस्ता वेस्टलैंड मामले में, जहां सरकारी एजेंसियों का दावा है कि विपक्ष के नेताओं को बड़ा हिस्सा मिला था- के मुख्य आरोपी क्रिस्चियन मिचेल ने दावा किया था कि उन्हें एक सौदे के लिए ‘नौकरशाह और राजनीतिक गाइड’ की जरूरत थी और जिस व्यक्ति की उन्होंने ‘सिफारिश’ की थी, वह मुकेश अंबानी थे.’
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)