ओडिशा के नौपाड़ा ज़िले के 51 वर्षीय चंदूराम माझी गोंड आदिवासी हैं. वह आर्मी सर्विस कॉर्प्स में हवलदार थे. पत्नी की बीमारी के लिए ली गई छुट्टी के बाद जब वह तय समय पर सेना में दोबारा जॉइन नहीं कर सके तो उन्हें भगोड़ा घोषित कर दिया गया था.
भुवनेश्वर: करीब दो दशक तक भारतीय सेना में अपनी सेवा देने वाले सिपाही को बिना किसी रिटायरमेंट सुविधा के ओडिशा में दिहाड़ी मजदूर का काम करने के लिए मजबूर होना पड़ा है.
द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार, सिपाही अपनी पत्नी की बीमारी के लिए ली गई छुट्टी के बाद दोबारा सेना में शामिल होने की तारीख तक नहीं पहुंच पाए थे.
नौपाड़ा जिले के पारस्खोल के निवासी 51 वर्षीय चंदूराम माझी गोंड आदिवासी जाति के हैं. वह साल 1988 में एक सिपाही के रूप में नियुक्ति पाने वाले अपने परिवार से पहले शख्स थे.
आर्मी सर्विस कॉर्प्स (एएससी) से जुड़े रहने के दौरान उन्होंने गया से लेकर श्रीनगर और चंडीगढ़ से लेकर न्यू जलवाईगुड़ी तक अपनी सेवाएं दी थीं.
माझी ने आरोप लगाया, ‘भारतीय सेना में अपनी लंबी सेवा के दौरान मैंने अपनी बेटियों को एक अच्छी शिक्षा और उज्ज्वल भविष्य प्रदान करने का सपना देखा था. दुर्भाग्य से अब मुझे दिहाड़ी मजदूर का काम करना पड़ रहा है और मेरी चार बेटियों को स्कूल व कॉलेज छोड़ना पड़ गया. वे जीवनयापन के लिए पैसा कमाने में मेरी मदद करती हैं.’
माझी ने आरोप लगाया कि वह नौकरशाही के शिकार हो गए हैं और उन्हें उनका उचित बकाया भी नहीं मिला पाया.
उन्होंने कहा, ‘साल 2011 तक मैं अपनी जिंदगी से खुश था और मेरा करिअर सामान्य गति से आगे बढ़ रहा था. अचानक मेरी पत्नी बीमार पड़ गई और कमर के नीचे से लकवाग्रस्त हो गई. मुझे उसके साथ रहना पड़ा.’
माझी ने कहा कि एएससी में उन्हें हवलदार के पद पर प्रोन्नति मिली थी और 31 अगस्त 2012 को रिटायर होने वाले थे.
उन्होंने कहा, ‘यहां तक की मैंने अपनी सेवा की आखिरी छुट्टी भी ली थी, लेकिन मेरी पत्नी की तबीयत बहुत खराब थी इसलिए मैं तय तारीख को दोबारा जॉइन नहीं कर सका. एएससी द्वारा मुझे भगोड़ा घोषित कर दिया गया.’
उनकी पत्नी को आर्मी हॉस्पिटल रिसर्च एंड रेफरल, नई दिल्ली के साथ दूसरे आर्मी अस्पतालों में भी भर्ती करवाया गया था. हालांकि, सभी प्रयासों के बाद भी 13 नवंबर, 2012 को उनकी पत्नी का निधन हो गया.
पत्नी के निधन के बाद माझी ने अपने आखिरी एएससी यूनिट से संपर्क कर बकाया हासिल करने की कोशिश की. उन्होंने कहा कि एएससी ने इससे इनकार कर दिया. राज्य सैनिक बोर्ड के हस्तक्षेप के बाद उनकी सेवा को नियमित करने के लिए उन्होंने रक्षा मंत्रालय को कई पत्र लिखे.
माझी ने दावा किया, ‘मुझे 2017-18 में पदावनत (डिमोट) कर दिया गया और जम्मू कश्मीर में मेरी यूनिट के अधिकारियों द्वारा विशेष सजा के लिए सौंप दिया गया था. इस दौरान मुझे कोई वेतन नहीं मिला.’
रिपोर्ट के अनुसार, पिछले चार साल में उन्हें केवल 3.14 लाख रुपये मिले, जिसका इस्तेमाल उन्होंने अपने गांव में एक कर्ज चुकाने में किया.
माझी का कहना है कि रिटायरमेंट के बाद का उनका बकाया 30 लाख रुपये से अधिक का है.
माझी के पीड़ादायक जीवन को देखते हुए नौपाड़ा जिला प्रशासन ने एक विस्तृत रिपोर्ट मंगाई है. प्रशासन ने माझी के सेवा विवरण के बारे में रक्षा मंत्रालय से बातचीत शुरू करने का फैसला किया है.