उत्तर प्रदेश के मुज़फ़्फ़रनगर का मामला. मुस्लिम युवक के ख़िलाफ़ पहले से शादीशुदा महिला से शादी करने को लेकर धर्मांतरण विरोधी क़ानून के तहत मामला दर्ज किया गया था. इलाहाबाद हाईकोर्ट का कहा कि महिला वयस्क हैं और वह अपना भला-बुरा अच्छी तरह समझती हैं.
नई दिल्लीः उत्तर प्रदेश के नए धर्मांतरण विरोधी कानून के तहत मुजफ्फरनगर में आरोपी की गिरफ्तारी पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने रोक लगा दी है.
मुजफ्फरनगर के नदीम के खिलाफ धर्मांतरण विरोधी कानून के तहत मामला दर्ज किया गया था.
हाईकोर्ट ने नदीम के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई शुरू करने पर रोक लगा दी है. हाईकोर्ट का कहना है कि महिला और पुरुष दोनों वयस्क हैं और ये उनकी निजता का मौलिक अधिकार है.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस पंकज नकवी और जस्टिस विवेक अग्रवाल की पीठ ने आरोपी नदीम की याचिका पर कहा, ‘मामले को अगली तारीख तक सूचीबद्ध किए जाने तक याचिकाकर्ता के खिलाफ कोई कठोर कदम नहीं उठाया जाएगा.’
अदालत ने कहा, ‘महिला वयस्क हैं और वह अपना भला-बुरा अच्छी तरह समझती हैं. युवती और याचिकाकर्ता का निजता का मौलिक अधिकार है और दोनों वयस्क हैं और अपने कथित संबंधों के परिणामों को लेकर सचेत हैं.’
बता दें कि पेशे से मजदूर नदीम के खिलाफ 29 नवंबर को मुजफ्फरनगर के मंसूरपुर पुलिस थाने में महिला के पति की शिकायत पर धर्मांतरण विरोधी कानून और आईपीसी की धारा 120बी, 506 और 504 के तहत मामला दर्ज किया गया था.
शिकायतकर्ता ने नदीम पर उसकी पत्नी से शादी करने और उसका धर्म परिवर्तन कराने का आरोप लगाया था. इस मामले में नदीम को गिरफ्तार नहीं किया गया था.
अदालत ने अपने आदेश में कहा, ‘हमारे समक्ष ऐसी कोई सामग्री पेश नहीं की गई, जिससे पता चले कि महिला का याचिकाकर्ता द्वारा जबरदस्ती धर्म-परिवर्तन कराया गया. सभी आरोप प्रथमदृष्टया संदेह के आधार पर हैं.’
पति का आरोप है कि नदीम उसकी पत्नी को जानता है और उनके घर आता-जाता रहता था और उसने उनकी पत्नी के संपर्क में रहने के लिए उसे मोबाइल फोन भी उपहार में दिया था.
इसके बाद महिला के पति ने मंसूरपुर थाने में नदीम के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई, जिसके बाद नए धर्मांतरण विरोधी कानून के तहत नदीम के खिलाफ मामला दर्ज किया गया. नदीम ने गिरफ्तारी से बचने के लिए हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी.
याचिका में अध्यादेश को चुनौती देने के साथ ही एफआईआर रद्द करने और गिरफ्तारी पर रोक लगाने की गुहार लगाई गई थी.
वहीं, नदीम के वकील ने संविधान के भाग 3 के तहत दिए गए निजता के बुनियादी मौलिक अधिकार को बनाए रखने की अपील करते हुए कहा कि एफआईआर सिर्फ संदेह के आधार पर दर्ज की गई और इन संदेहों की पुष्टि के लिए कोई साक्ष्य पेश नहीं किए गए.
इस मामले में राज्य सरकार की ओर से पैरवी कर रही अतिरिक्त सरकारी वकील मंजू ठाकुर ने पुष्टि की कि नदीम के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही पर रोक लगा दी गई है.
बता दें कि शिकायतकर्ता पति और महिला के दो बच्चे हैं.
मामले में अगली सुनवाई सात जनवरी को होगी.
बीते 24 नवंबर को उत्तर प्रदेश सरकार तथाकथित ‘लव जिहाद’ को रोकने के लिए शादी के लिए धर्म परिवर्तन पर लगाम लगाने के लिए ‘उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपविर्तन प्रतिषेध अध्यादेश, 2020’ ले आई थी.
इसमें विवाह के लिए छल-कपट, प्रलोभन देने या बलपूर्वक धर्मांतरण कराए जाने पर विभिन्न श्रेणियों के तहत अधिकतम 10 वर्ष कारावास और 50 हजार तक जुर्माने का प्रावधान किया गया है. उत्तर प्रदेश पहला ऐसा राज्य है, जहां लव जिहाद को लेकर इस तरह का कानून लाया गया है.
प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने 28 नवंबर को इस अध्यादेश को मंजूरी दी थी. इसी दिन एक युवती के पिता की शिकायत पर बरेली जिले में नए धर्मांतरण विरोधी कानून के तहत अपना पहला मामला दर्ज किया गया था.