नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने रविवार सुबह हुई मंत्रिमंडल की आपात बैठक में संसद भंग करने की सिफ़ारिश की थी, जिसे राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी ने मंज़ूरी दे दी. राष्ट्रपति ने 30 अप्रैल को पहले चरण और 10 मई को दूसरे चरण का मध्यावधि चुनाव कराए जाने की घोषणा की. तय समय के अनुसार वहां 2022 में चुनाव होना था.
काठमांडू: नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने रविवार को हुई मंत्रिमंडल की आपात बैठक में संसद भंग करने की सिफारिश की, जिसे कुछ घंटों बाद ही राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी ने मंजूरी दे दी.
ओली ने सत्तारूढ़ नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के शीर्ष नेताओं और मंत्रियों के साथ शनिवार को सिलसिलेवार मुलाकातों के बाद मंत्रिमंडल की आपात बैठक बुलाई थी.
नेपाल के अखबार ‘द काठमांडू पोस्ट’ ने ऊर्जा मंत्री वर्षमान पून के हवाले से कहा, ‘आज मंत्रिमंडल ने राष्ट्रपति से संसद भंग करने की सिफारिश करने का फैसला किया है.’
#UPDATE | Nepal PM KP Sharma Oli reaches President's Office with the recommendation to dissolve the Parliament.
— ANI (@ANI) December 20, 2020
इसके साथ ही प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की सिफारिश पर नेपाल की राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी ने रविवार को संसद को भंग कर दिया और अप्रैल-मई में मध्यावधि आम चुनाव कराए जाने की घोषणा कर दी.
राष्ट्रपति भवन द्वारा जारी एक नोटिस के अनुसार राष्ट्रपति भंडारी ने 30 अप्रैल को पहले चरण और 10 मई को दूसरे चरण का मध्यावधि चुनाव कराए जाने की घोषणा की. हालांकि, तय समय के अनुसार वहां 2022 में चुनाव होना था.
#UPDATE | Nepal: Upon the recommendation of the council of ministers, Nepal President Bidya Devi Bhandari announces that national polls will be held between April 30 and May 10 next year, says the President's office.
— ANI (@ANI) December 20, 2020
नोटिस के अनुसार, उन्होंने नेपाल के संविधान के अनुच्छेद 76, खंड एक तथा सात, और अनुच्छेद 85 के अनुसार संसद को भंग कर दिया.
ओली ने पूर्व प्रधानमंत्री पुष्प कमल दल प्रचंड के साथ सत्ता संघर्ष के बीच यह कदम उठाया है.
रिपोर्ट के अनुसार, सत्ताधारी नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी की केंद्रीय समिति के सदस्य विष्णु रिजल ने कहा, ‘प्रधानमंत्री ने संसदीय दल, केंद्रीय समिति और पार्टी के सचिवालय में बहुमत खो दिया है. पार्टी के भीतर समझौता करने के बजाय उन्होंने संसद को भंग करने का विकल्प चुना.’
इस बीच सत्ताधारी पार्टी के प्रवक्ता नारायणकाजी श्रेष्ठ ने कहा है कि ऐसा करना लोकतांत्रिक नियमों के खिलाफ है.
उन्होंने कहा, ‘यह निर्णय बेहद जल्बाजी में लिया गया है और सुबह (रविवार) हुई कैबिनेट बैठक में सभी मंत्री मौजूद भी नहीं थे. यह लोकतांत्रिक सिद्धांतों के खिलाफ है और देश को पीछे ले जाएगा. इसे लागू नहीं किया जा सकता.’
नेपाल की अर्थव्यवस्था के संकट में जाने के साथ ही कोविड-19 संकट को संभालने को लेकर ओली पर प्रधानमंत्री या पार्टी प्रमुख में से एक पर बने रहने का दबाव बढ़ गया था.
काठमांडू पोस्ट की रिपोर्ट के अनुसार, ओली पर मंगलवार को राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी द्वारा जारी संवैधानिक परिषद अधिनियम से संबंधित एक अध्यादेश को वापस लेने का दबाव था.
रिपोर्ट में कहा गया कि जब रविवार को सुबह 10 बजे एक आपातकालीन बैठक बुलाई गई तब यही उम्मीद थी कि यह अध्यादेश में बदलाव की सिफारिश के लिए थी, लेकिन इसके बजाय कैबिनेट संसद को भंग करने की सिफारिश कर दी.
हालांकि, ऐसा माना जा रहा है कि इस कदम को अदालत में चुनौती दी जाएगी, क्योंकि संविधान में संसद को भंग करने का कोई प्रावधान नहीं है.
संवैधानिक विशेषज्ञों ने कहा कि राष्ट्रपति ने सरकार की अतिरिक्त संवैधानिक सिफारिश को मान्यता दे दी.
संवैधानिक कानून के विशेषज्ञ वरिष्ठ वकील चंद्र कांत ग्यावली ने कहा कि राष्ट्रपति भंडारी संविधान के संरक्षक की अपनी भूमिका निभाने में पूरी तरह से विफल रही हैं. अब केवल सुप्रीम कोर्ट की ही उम्मीद बची है.
बता दें कि इससे पहले जून के आखिर में नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने दावा किया था कि उनकी सरकार द्वारा देश के राजनीतिक मानचित्र को बदले जाने के बाद उन्हें पद से हटाने की कोशिशें की जा रही हैं.
उन्होंने इसके लिए काठमांडू स्थित भारतीय दूतावास, भारतीय मीडिया का नाम लेते हुए भारत पर भी आरोप लगाया था और कहा था कि इसमें नेपाल के नेता भी शामिल हैं.
इसके बाद सत्तारूढ़ नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के शीर्ष नेताओं ने उनके इस्तीफे की मांग करते हुए कहा था कि प्रधानमंत्री द्वारा इस तरह के बयान देने से पड़ोसी देश के साथ हमारे संबंध खराब हो सकते हैं.
बता दें कि पूर्व प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल ‘प्रचंड’ लगातार कहते रहे हैं कि सरकार और पार्टी के बीच कोई तालमेल नहीं है और वह एक व्यक्ति एक पद की मांग पर जोर देते रहे हैं.
विरोध में प्रचंड खेमे के सात मंत्रियों का इस्तीफा
काठमांडू टाइम्स के अनुसार, प्रधानमंत्री ओली द्वारा संसद भंग करने की सिफारिश का विरोध करते हुए नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी में पूर्व प्रधानमंत्री प्रचंड और माधव नेपाल धड़े के सात मंत्रियों ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया.
#UPDATE | Seven ministers of Nepal PM KP Sharma Oli led Cabinet resign following Oli's recommendation to dissolve the Parliament & President's ratification of the recommendation. https://t.co/CvcGsBawh9
— ANI (@ANI) December 20, 2020
सातों कैबिनेट मंत्रियों ने एक संयुक्त बयान जारी करते हुए कहा, ‘हमने पहले ही प्रधानमंत्री द्वारा प्रतिनिधि सभा को भंग करने के कदम का विरोध किया था. हम प्रधानमंत्री के असंवैधानिक और अलोकतांत्रिक कदम के प्रति अपनी असहमति व्यक्त करने के लिए अपने पदों से इस्तीफा दे देते हैं, जो लोगों के जनादेश और राजनीतिक सिद्धांतों और स्थिरता के खिलाफ है.’
रविवार को इस्तीफा देने वालों में शिक्षा, विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री गिरिराज मणि पोखरेल, ऊर्जा, जल संसाधन और सिंचाई मंत्री मान पुन, कृषि और पशुधन विकास मंत्री घनश्याम भुसाल, संस्कृति, पर्यटन और नागरिक उड्डयन मंत्री योगेश कुमार भट्टराई, वन और पर्यावरण मंत्री शक्ति बहादुर बसनेट, श्रम और रोजगार मंत्री रामश्रय राय यादव और जल आपूर्ति और स्वच्छता मंत्री बीना मगर शामिल हैं.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)