केरल की 19 साल की सिस्टर अभया का शव 27 मार्च 1992 को सेंट पायस कॉन्वेंट के एक कुएं में मिला था. सिस्टर अभया ने चर्च के पादरी और नन को आपत्तिजनक हालत में देख लिया था, जिसकी वजह से उनकी हत्या कर दी गई थी. घटना के तक़रीबन 16 साल बाद मामले के तीन आरोपियों की गिरफ़्तारी हो सकी थी. मामले को पहले आत्महत्या का रूप देने की भी कोशिश की गई थी.
तिरुवनंतपुरमः केरल के तिरुवनंतपुरम में सीबीआई की विशेष अदालत ने वर्ष 1992 में कोट्टायम स्थित सेंट पायस कॉन्वेंट की सिस्टर अभया की हत्या के मामले में दोषी करार दिए गए पादरी फादर कोट्टूर और नन सिस्टर सेफी को आजीवन कारावास की सजा सुनाई है.
यह फैसला मामला दर्ज होने के 28 सालों और नौ महीने बाद आया है.
सीबीआई के विशेष न्यायाधीश के सनल कुमार ने फैसला सुनाते हुए कहा कि पादरी और नन के खिलाफ हत्या के आरोप साबित हुए हैं.
अदालत ने कैथोलिक चर्च के फादर थॉमस कोट्टूर और सिस्टर सेफी को भारतीय दंड संहिता की धारा 302 (हत्या) एवं 201 (सबूतों के साथ छेड़छाड़ करना) के तहत दोषी पाया.
अदालत ने फादर कोट्टूर को भारतीय दंड संहिता की धारा 449 (अनधिकार प्रवेश) का दोषी भी पाया. दोषी जमानत पर हैं और उन्हें कोविड-19 की जांच कराने के बाद हिरासत में ले लिया गया.
फादर कोट्टूर को पूजापुरा की केंद्रीय जेल भेजा गया है जबकि सिस्टर सेफी को अत्ताकुलनगारा महिला जेल भेजा गया है.
कोट्टूर और सेफी इस मामले में पहले और तीसरे दोषी हैं. सीबीआई ने एक अन्य पादरी फादर जोस पुथ्रीक्कयील को दूसरे आरोपी के तौर पर नामित किया था, लेकिन अदालत ने उन्हें सबूतों के अभाव में बरी कर दिया था.
यह मामला 19 वर्षीय अभया की संदिग्ध परिस्थिति में हुई मौत से संबंधित है. उनका शव 27 मार्च 1992 को सेंट पायस कॉन्वेंट के एक कुएं से मिला था. अभया कोट्टयम के बीसीएम कॉलेज में द्वितीय वर्ष की छात्रा थीं और कॉन्वेंट में रहती थीं.
शुरुआत में मामले की जांच स्थानीय पुलिस और राज्य की अपराध शाखा ने की थी और दोनों ने ही कहा था कि अभया ने खुदकुशी की है.
सीबीआई ने मामले की जांच 29 मार्च 1993 को अपने हाथ में ली और तीन क्लोजर रिपोर्ट दायर की थी तथा कहा था कि यह हत्या का मामला है, लेकिन अपराधियों का पता नहीं चल सका है.
बहरहाल, चार सितंबर 2008 को केरल उच्च न्यायालय ने मामले को लेकर सीबीआई को फटकार लगाई थी और कहा था कि एजेंसी अभी भी राजनीतिक और नौकरशाही की शक्ति रखने वालों की कैदी है तथा सीबीआई की दिल्ली इकाई को निर्देश दिया था कि वह जांच को कोच्चि इकाई को सौंप दे.
इसके बाद इसके बाद सीबीआई ने सिस्टर अभया की हत्या के तकरीबन 16 साल बाद नवंबर 2008 में तीनों आरोपियों- फादर कोट्टूर, फादर पूथ्रीक्कयील और नन सेफी को गिरफ्तार कर लिया.
सीबीआई की चार्जशीट के मुताबिक, 27 मार्च 1992 को अभया ने सुबह जल्दी उठने के बाद कोट्टूर, पूथ्रीक्कयील और सेफी को कथित रूप से आपत्तिजनक स्थिति में देख लिया था.
चर्च के पादरियों और नन के लिए कठोर ब्रह्मचर्य नियमों की वजह से दो दोषियों और एक अन्य आरोपी को डर था कि उन्हें अब चर्च से निकाल दिया जाएगा. जिसके बाद उन लोगों ने अभया पर कुल्हाड़ी से हमलाकर उनकी हत्या कर दी और शव कुएं में फेंक दिया.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, कोर्ट ने दोषी फादर कोट्टूर को एक अतिरिक्त उम्रकैद देने के अलावा एक लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया है. इसके अलावा दोनों को सात-सात वर्ष की उम्रकैद की सजा सुनाने के साथ 50-50 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया गया है. दोनों पर पांच-पांच लाख रुपये का एक अन्य जुर्माना भी लगाया गया है.
सिस्टर अभया का मामला केरल के सबसे लंबे चलने वाले और सबसे हाईप्रोफाइल मामलों में से एक था. इस मामले में पिछले साल 26 अगस्त से सुनवाई शुरू हुई थी और ट्रायल के दौरान 49 में से अभियोजन पक्ष के आठ गवाह, जिनमें से अधिकांश चर्च के करीबी थे, अपने बयान से मुकर गए थे.
अभया के भाई ने कहा, यह ईश्वर का न्याय है
अभया की हत्या के मामले में पादरी और नन को दोषी करार दिए जाने पर अभया के भाई बीजू थॉमस ने इसे ईश्वर का न्याय करार दिया.
फिलहाल विदेश में रह रहे बीजू थॉमस ने टीवी चैनलों को बताया, ‘मुझे फैसले में भगवान का न्याय दिखाई दे रहा है.’ उन्होंने कहा कि चर्च के दबाव के कारण और मामले में राजनीतिक नेताओं के हस्तक्षेप से न्याय में देरी हुई.
वहीं मुख्य गवाह अदक्का राजू ने फैसले के बाद कहा कि मेरे बच्चे को न्याय मिल गया. राजू एक चोर थे, जो हत्या के दिन कॉन्वेंट में चोरी करने घुसा थे. उनका बयान इस मामले में सबसे महत्वपूर्ण साबित हुआ था.
उन्होंने सीबीआई को अपराध के दिन फादर कोट्टूर और एक अन्य पादरी की उपस्थिति के बारे में बयान दिया था.
राजू ने अदालत के फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि सुनवाई के दौरान उन्हें अपना बयान बदलने के लिए करोड़ों रुपये देने की पेशकश की गई थी.
राजू ने पत्रकारों को बताया, ‘मैंने एक रुपया नहीं लिया. मैं बहुत खुश हूं कि आखिरकार आज मेरे बच्चे को न्याय मिल ही गया.’
आत्महत्या बता कर केस बंद करने के लिए मिल रहे दबावों के कारण अग्रिम सेवानिवृत्ति लेने वाले वर्गीस थॉमस ने फैसले का स्वागत किया.
पहली बार 1993 में अपनी जांच से इसे हत्या का मामला साबित करने वाले ने सीबीआई के डीवाईएसपी वर्गीज पी. थॉमस ने कहा कि उनका पक्ष साबित हो गया है.
बता दें कि बेटी को न्याय दिलाने के लिए लड़ते हुए अभया के माता-पिता अयकरकुन्नेल थॉमस और लीलम्मा की 2016 में मौत हो गई थी.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)