गुजरातः अनिवार्य कोविड-19 ड्यूटी संबंधी अधिसूचना के ख़िलाफ़ 300 डॉक्टर हाईकोर्ट पहुंचे

मामले की सुनवाई करते हुए गुजरात हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस ने कहा कि हम कोविड-19 के संबंध में प्रशासन को कोई निर्देश नहीं देने जा रहे, प्रशासन को जिसकी भी ज़रूरत हो, वे ले सकते हैं और कोई यह नहीं कह सकता कि वे काम करने के इच्छुक नहीं है.

गुजरात हाईकोर्ट. (फोटो साभार: फेसबुक)

मामले की सुनवाई करते हुए गुजरात हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस ने कहा कि हम कोविड-19 के संबंध में प्रशासन को कोई निर्देश नहीं देने जा रहे, प्रशासन को जिसकी भी ज़रूरत हो, वे ले सकते हैं और कोई यह नहीं कह सकता कि वे काम करने के इच्छुक नहीं है.

गुजरात हाईकोर्ट. (फोटो साभार: फेसबुक)
गुजरात हाईकोर्ट. (फोटो साभार: फेसबुक)

अहमदाबादः गुजरात के 300 से अधिक एमबीबीएस (अनुबंधित) डॉक्टरों ने हाईकोर्ट का रुख कर स्वास्थ्य विभाग की उस अधिसूचना को चुनौती दी है, जिसमें लगभग 900 एमबीबीएस (अनुबंधित) डॉक्टरों को अनिवार्य रूप से कोविड-19 ड्यूटी के लिए कहा गया था.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, चीफ जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस जेबी पारदीवाला की पीठ ने गुरुवार को इस मामले पर सुनवाई की.

डॉक्टरों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अंशीन देसाई ने दलील दी कि स्वास्थ्य विभाग ने महामारी अधिनियम के प्रावधानों के तहत अधिसूचना जारी की, लेकिन इस अधिनियम के तहत कोई प्रावधान नहीं है, जो राज्य सरकार को यह शक्ति देता कि वह डॉक्टरों को अनिवार्य रूप से कोविड-19 ड्यूटी पर बुलाए.

देसाई ने कहा कि एमबीबीएस ग्रैजुएट्स को फरवरी के अंत और मार्च की शुरुआत में होने वाली नीट (NEET- नेशनल एलिजिबिलिटी कम एट्रेंस टेस्ट) की परीक्षा देनी है और इस तरह की अनिवार्य ड्यूटी प्रवेश परीक्षा के लिए उनकी तैयारियों को प्रभावित करेगी.

इस पर राज्य सरकार की ओर से पेश महाधिवक्ता ने कहा कि उनके अनुसार, परीक्षा अप्रैल के अंत में होनी है.

देसाई ने यह भी कहा, ‘अधिसूचना जारी होने के बाद से कोविड-19 का परिदृश्य बदल गया है. अब कोरोना के मामलों की संख्या कम है. कुछ दिन पहले उप-मुख्यमंत्री नितिन पटेल ने संवाददाता सम्मेलन में कहा था कि अस्पतालों में 82 फीसदी बेड खाली हैं. एसवीपी अस्पताल ने अन्य विभाग खोल दिए हैं. आठ अन्य अस्पतालों को सूची से हटा दिया गया है, इसलिए 307 एमबीबीएस डॉक्टर्स को अनिवार्य रूप से कोविड-19 ड्यूटी करने के लिए बाध्य करना सही नहीं है.’

वरिष्ठ वकील देसाई ने कहा कि उन्हें जिस तरह से रात में राज्य सरकार के आदेश दिए गए, ऐसा लगा जैसे वे आरोपी हैं, रात में जबरन उनके हस्ताक्षर लिए गए और राजस्व या कलेक्टर ऑफिस ने उन्हें तत्काल प्रभाव से चुनिंदा अस्पताल में रिपोर्ट करने को कहा. ये इन मेधावी छात्रों और डॉक्टरों के लिए सही नहीं है.

चीफ जस्टिस ने कहा, ‘हम कोविड-19 को लेकर प्रशासन को कोई निर्देश नहीं देने जा रहे, प्रशासन को जिसकी भी जरूरत हो, वे ले सकते हैं और कोई यह नहीं कह सकता कि वे काम करने के इच्छुक नहीं है. राज्य सरकार पिछले आठ से नौ महीनों से दिन-रात काम कर रही है. सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा है कि हमें यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि हमारे स्वास्थ्य कार्यकर्ता बेकार न जाएं.’

उन्होंने कहा कि कोविड-19 की स्थिति भले ही अब सुधर गई हो, लेकिन कल के बारे में कोई कुछ नहीं जानता.