उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने कहा, धर्मनिरपेक्षता के मूल सिद्धांतों को पुनर्जीवित करना आज की चुनौती है. इनमें सहिष्णुता और धर्म की स्वतंत्रता शामिल हैं.
उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने भारतीय लोकतंत्र में मौजूद बहुलतावाद और धर्मनिरपेक्षता को लोकतंत्र के लिए आवश्यक बताते हुए कहा कि सहिष्णुता एक आवश्यक राष्ट्रीय गुण होना चाहिए.
बतौर उपराष्ट्रपति अंसारी ने अपने अंतिम भाषण में कहा कि धर्मनिरपेक्षता के मूल सिद्धांतों को दोहराना और पुनर्जीवित करना आज की चुनौती है. इनमें सहिष्णुता और धर्म की स्वतंत्रता शामिल हैं.
अंसारी ने यह भी कहा कि राष्ट्रीयता का संस्करण जो अपने मूल पर सांस्कृतिक प्रतिबद्धता रखता है, यानी सांस्कृतिक राष्ट्रवाद अपने आप में रूढ़िवादी और अनुदार होता है. यह असहिष्णुता और अहंकारी देशभक्ति को बढ़ावा देता है.
बेंगलुरु में नेशनल लॉ स्कूल विविद्यालय के 25वें सालाना दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए अंसारी ने कहा कि इसके साथ ही सहिष्णुता भारतीय समाज की वास्तविकताओं को परिलक्षित करने वाली तथा स्वीकार्यता होनी चाहिए.
अंसारी ने कहा कि विभिन्न तबकों में विविधताओं के बीच सौहार्द को बढ़ावा देने के लिए सहिष्णुता एक आवश्यक राष्ट्रीय गुण होना चाहिए.
अंसारी ने कहा कि सहिष्णुता विभिन्न धर्मों और राजनीतिक विचारधाराओं के बीच संघर्ष के बिना समाज के कामकाज के लिए व्यावहारिक सूत्र है.
उन्होंने कहा कि सिर्फ सहिष्णुता ही समावेशी और बहुलवादी समाज के निर्माण के लिए पर्याप्त नींव नहीं है और इसके साथ समझ और स्वीकृति भी होनी चाहिए.
उन्होंने इस क्रम में स्वामी विवेकानंद के शब्दों को भी याद किया, हमारे अंदर न केवल अन्य धर्मों के प्रति सहिष्णुता होनी चाहिए, बल्कि सकारात्मक रूप से उन्हें गले लगाना चाहिए क्योंकि सत्य सभी धर्मों का आधार है.
उन्होंने कहा कि लोकतंत्र का आकलन सिर्फ औपचारिक रूप से अस्तित्व वाले संस्थानों द्वारा नहीं किया जाना चाहिए बल्कि उस हद द्वारा, जिससे लोगों के विभिन्न वर्गों की विभिन्न आवाजों को वास्तव में सुना जा सकता है. उन्होंने कहा कि इसका मकसद अन्य की मान्यता है।
उन्होंने दलितों, मुस्लिमों और अल्पसंख्यकों के लिए चिंता जताते हुए बढ़ रही असुरक्षा की ओर इशारा किया.