शोपियां मुठभेड़: जम्मू कश्मीर पुलिस ने सेना के अधिकारी समेत तीन के ख़िलाफ़ चार्जशीट दाख़िल की

जम्मू कश्मीर के शोपियां में इस साल जुलाई में तीन मज़दूरों को आतंकी बताकर एक मुठभेड़ में मार दिया गया था. प्रशासन द्वारा यह स्वीकार किए जाने के बाद कि तीनों युवक राजौरी के निवासी थे, सेना और जम्मू कश्मीर पुलिस ने इस मामले में अलग-अलग जांच के आदेश दिए थे.

Army soldier take position behind trees during a gun battle between security forces and militants in Shopian, of South Kashmir on Sunday. Photo: PTI/S. Irfan/File

जम्मू कश्मीर के शोपियां में इस साल जुलाई में तीन मज़दूरों को आतंकी बताकर एक मुठभेड़ में मार दिया गया था. प्रशासन द्वारा यह स्वीकार किए जाने के बाद कि तीनों युवक राजौरी के निवासी थे, सेना और जम्मू कश्मीर पुलिस ने इस मामले में अलग-अलग जांच के आदेश दिए थे.

Army soldier take position behind trees during a gun battle between security forces and militants in Shopian, of South Kashmir on Sunday. Photo: PTI/S. Irfan/File
(प्रतीकात्मक तस्वीर: पीटीआई)

नई दिल्ली: जम्मू-कश्मीर पुलिस ने इस साल जुलाई में शोपियां में कथित फर्जी मुठभेड़ मामले में सेना के एक अधिकारी (कैप्टन) समेत तीन लोगों के खिलाफ आरोप-पत्र दायर किया है. उस मुठभेड़ में तीन नागरिकों की मौत हो गई थी. अधिकारियों ने रविवार को यह जानकारी दी.

अधिकारियों ने कहा कि आरोप पत्र शनिवार को प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश की अदालत शोपियां में दायर किया गया.

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक आरोप पत्र में सेना की 62 राष्ट्रीय राइफल्स के कैप्टन भूपिंदर और स्थानीय नागरिक बिलाल अहमद एवं ताबिश अहमद को कथित फर्जी मुठभेड़ में उनकी भूमिका के लिए आरोपी बनाया गया है. मुठभेड़ में मारे गए युवक राजौरी जिले के रहने वाले थे. 

चार्जशीट में कहा गया है कि धारसाकरी गांव के रहने वाले दो युवकों इम्तियाज अहमद (20) और मोहम्मद अबरार तथा कोतरांका राजौरी के तारकासी गांव के रहने वाले अबरार अहमद (25) को उनके किराए के कमरे  से अगवाकर हत्या कर दिया गया था.

चार्जशीट के मुताबिक सैन्य अधिकारी और दो नागरिकों के खिलाफ आईपीसी की धारा 302 (हत्या), 364 (अपहरण), 201 (सबूत नष्ट करना), धारा 436, 120 बी (आपराधिक साजिश) और 182 तथा भारतीय शस्त्र अधिनियम की धारा 7/25 (प्रतिबंधित हथियार या गोला-बारूद रखना) के तहत मामला दर्ज किया गया है.

दोनों स्थानीय नागरिक ताबिश और बिलाल न्यायिक हिरासत में हैं. वहीं आरोपी कैप्टन को आफ्सपा तथा आर्मी एक्ट की जरूरी प्रक्रियाओं को पूरा किए जाने के बाद गिरफ्तार किया जाना बाकी है.

आरोपपत्र में कहा गया है कि दोनों नागरिकों से पूछताछ में मारुति ऑल्टो कार और ‘विक्टर फोर्स कैंप अवंतीपुरा’ से कुछ सेल फोन बरामद हुए. इससे युवकों का अपहरण करने, संबंधित रास्ते से ले जाने और प्रतिबंधित हथियारों की व्यवस्था करने का पूरा विवरण मिला है.

चार्जशीट के मुताबिक इस काम को अंजाम देने के लिए संबंधित आर्मी अफसर ने अपने अधिकारियों व सहयोगियों को गुमराह किया तथा एफआईआर दर्ज कराई, ताकि आपराधिक साजिश पूरी होने पर उन्हें उनकी रकम मिल सके.

सेना ने बीते शुक्रवार को कहा था कि उसने जुलाई में शोपियां जिले में अम्शीपुरा मुठभेड़ मामले में शामिल दो लोगों के खिलाफ साक्ष्यों का सारांश पूरा कर लिया है.

सेना के अधिकारियों ने बताया था कि औपचारिकताएं पूरी होने के बाद कोर्ट मार्शल हो सकता है.

इससे पहले इस मामले में, जब सोशल मीडिया पर खबर आईं कि सेना के जवानों ने एक मुठभेड़ में तीन युवकों को आतंकवादी बताकर मार गिराया है, सेना ने कोर्ट ऑफ इन्क्वायरी का आदेश दिया था, जिसकी जांच सितंबर में पूरी हो गई थी.

इसमें प्रारंभिक तौर पर पाया गया था कि 18 जुलाई की मुठभेड़ के दौरान इन जवानों ने आफ्स्पा के तहत मिली शक्तियों के नियमों का उल्लंघन किया है. इसके बाद सेना ने अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू की थी.

18 जुलाई की सुबह सेना ने दावा किया था कि शोपियां के अमशीपुरा में एक बाग में तीन अज्ञात आतंकवादियों को मार गिराया गया है.

हालांकि मृतकों के परिवारों ने दावा किया था कि तीनों का कोई आतंकी कनेक्शन नहीं था और वे शोपियां में मजदूर के रूप में काम करने गए थे.

इन दावों के बाद सेना और जम्मू कश्मीर पुलिस ने इस मामले में अलग-अलग जांच के आदेश दिए थे. इस घटनाक्रम से जुड़े अधिकारियों ने कहा कि सेना के दो जवानों को अफ्सपा के तहत निहित शक्तियों के उल्लंघन के लिए कोर्ट मार्शल का सामना करना पड़ सकता है.

बता दें कि इससे पहले मार्च 2000 में अनंतनाग के पथरीबल में पांच नागरिकों की हत्या कर उन्हें ‘आतंकवादी’ करार दे दिया गया था.

हालांकि जनवरी 2014 में सेना ने यह कहते हुए केस बंद कर दिया था कि जिन पांच सैन्यकर्मियों पर मुठभेड़ के आरोप लगे हैं, उनके खिलाफ इतने सबूत नहीं हैं कि आरोप तय हो सकें. आज 20 साल बाद भी उनके परिजन इंसाफ के इंतजार में हैं.

वहीं, साल 2010 में माछिल एनकाउंटर भी ऐसी ही एक घटना थी, जहां तीन नागरिकों की हत्या की गई थी. इस मामले में नवंबर, 2014 में एक सैन्य अदालत ने एक सीओ सहित पांच लोगों को उम्रकैद की सजा सुनाई थी और उन्हें सभी सेवाओं से मुक्त कर दिया था.

इसके बाद मार्च, 2015 में भी एक सैनिक ऐसी ही सजा सुनाई गई थी.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)