इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अंतरधार्मिक विवाह करने वाले युवक-युवती को एक साथ रहने की मंज़ूरी देते हुए कहा कि महिला अपने पति के साथ रहना चाहती है. वह किसी भी तीसरे पक्ष के दख़ल के बिना अपनी इच्छा के अनुसार रहने के लिए स्वतंत्र है.
नई दिल्ली: अपने एक हालिया फैसले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अंतरधार्मिक विवाह करने वाले युवक-युवती को एक साथ रहने की मंजूरी देते हुए कहा कि महिला अपने पति के साथ रहना चाहती है. वह किसी भी तीसरे पक्ष के दखल के बिना अपनी इच्छा के अनुसार रहने के लिए स्वतंत्र है.
लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, जस्टिस पंकज नकवी और जस्टिस विवेक अग्रवाल की खंडपीठ एक बंदी प्रत्यक्षीकरण (हैबियस कॉर्बस) याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसे सलमान उर्फ करण ने दाखिल किया था.
सलमान ने अपनी याचिका में कहा था कि उनकी पत्नी (शिखा) को उसकी मर्जी के खिलाफ बाल कल्याण समिति (सीडब्ल्यूसी) द्वारा उसके परिवार के पास भेज दिया गया है.
बीते सात दिसंबर के अपने विस्तृत आदेश में उत्तर प्रदेश में एटा के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (सीजेएम) ने शिखा को सीडब्ल्यूसी के हवाले कर दिया था, जिसने अगले दिन 8 दिसंबर को शिखा को उनकी मर्जी के बिना परिवार के हवाले कर दिया था.
अदालत के आदेश के अनुसार, शिखा को अदालत के सामने पेश किया गया. केस डायरी के हिसाब से अदालत ने देखा कि उच्च प्राथमिक शिक्षा के हेड मास्टर द्वारा जारी प्रमाण-पत्र के अनुसार उनकी जन्म तिथि 4 अक्टूबर 1999 उल्लेखित थी.
इस तरह अदालत ने कहा था कि आयु के निर्धारण के संबंध में किशोर न्याय अधिनियम, 2015 की धारा 94 की आवश्यकता को पूरा किया गया.
हाईकोर्ट ने कहा, ‘एटा के सीजेएम और सीडब्ल्यूसी की कार्रवाई कानूनी प्रावधानों को पूरा करने की कमी को दर्शाता है.’
अदालत के सामने पेश होते हुए शिखा ने कहा कि उनकी जन्म तिथि 4 अक्टूबर 1999 है और वह बालिग होने की आयु प्राप्त कर चुकी हैं और विवाह की आयु में प्रवेश कर चुकी हैं.
उन्होंने यह भी कहा कि वह अपने पति सलमान उर्फ करण के साथ रहना चाहती हैं, जो कि अदालत में उपस्थित थे.
इस पर अदालत ने कहा, ‘जैसा कि कॉर्पस (शिखा) ने बालिग होने की आयु प्राप्त कर ली है और उनके पास अपनी शर्तों पर अपना जीवन जीने का विकल्प है और उन्होंने व्यक्त किया है कि वह अपने पति सलमान उर्फ करण के साथ रहना चाहती हैं, इसलिए वह बिना किसी प्रतिबंध या तीसरे पक्ष की बाधा के अनुसार अपनी पसंद के अनुसार जाने के लिए स्वतंत्र हैं.’
इस तरह 27 सितंबर, 2020 को आईपीसी के तहत दर्ज एफआईआर संख्या 0371, 2020 को रद्द कर दिया गया.
वहीं, जांच अधिकारी (आईओ) को यह सुनिश्चित करने के लिए निर्देशित किया गया है कि जब तक वे अपने आवास पर वापस नहीं जाते हैं, तब तक उन्हें और उनके पति को उचित सुरक्षा प्रदान की जाए. इलाहाबाद के एसएसपी को निर्देशित किया गया है कि वे दंपति के सुरक्षित मार्ग के लिए आवश्यक पुलिस सुरक्षा प्रदान करें.
बता दें कि इससे पहले कलकत्ता हाईकोर्ट ने कहा था कि अगर कोई वयस्क महिला अपनी मर्जी से विवाह और धर्म परिवर्तन करती है तो अदालतें उसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकती हैं.
इससे पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने एक आदेश में कहा था कि दो वयस्क लोग लिव-इन संबंध में एक साथ रह सकते हैं. यह व्यवस्था देते हुए हाईकोर्ट ने फ़र्रुख़ाबाद के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक को लिव-इन में रह रहे एक युवक-युवती को सुरक्षा उपलब्ध कराने का निर्देश दिया था, जो अपने पारिवारिक सदस्यों की प्रताड़ना का शिकार हो रहे थे.
एक अन्य मामले की सुनवाई के दौरान इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा था कि अपनी पसंद के व्यक्ति के साथ जीने का अधिकार जीवन एवं व्यक्तिगत आजादी के मौलिक अधिकार का महत्वपूर्ण हिस्सा है. कोर्ट ने कहा कि इसमें धर्म आड़े नहीं आना सकता है.
बता दें कि उत्तर प्रदेश सहित कुछ राज्यों ने हाल ही में तथाकथित लव जिहाद से निपटने के लिए धर्मांतरण विरोधी कानून अपने राज्यों में लागू किया है.
यूपी में धर्मांतरण विरोधी कानून के तहत विवाह के लिए छल, कपट, प्रलोभन या बलपूर्वक धर्मांतरण कराए जाने पर अधिकतम 10 वर्ष कारावास और जुर्माने की सजा का प्रावधान है जबकि हिमाचल प्रदेश में इसके लिए सात साल तक की कड़ी सजा का प्रावधान है.