दिल्ली स्थित टिकरी बॉर्डर पर भारतीय किसान यूनियन उगराहां के आंदोलन में शामिल 65 वर्षीय मृतक वकील अमरजीत सिंह राय ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम लिखे पत्र में कहा है कि कृपया कुछ पूंजीपतियों के लिए किसानों, मज़दूरों और आम लोगों की रोटी न छीनें और उन्हें सल्फास खाने के लिए मजबूर न करें.
झज्जर (हरियाणा): दिल्ली के टिकरी बॉर्डर पर किसान आंदोलन स्थल से कुछ किलोमीटर की दूरी पर पंजाब के एक वकील ने रविवार को कथित तौर पर जहर खाकर आत्महत्या कर ली.
पुलिस ने बताया कि पंजाब के फाजिल्का जिले के जलालाबाद निवासी अमरजीत सिंह को रोहतक के पीजीआईएमएस ले जाया गया, जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया.
सिंह ने कथित तौर पर अपने सुसाइट नोट में लिखा कि वह केंद्रीय कृषि कानूनों के विरोध में आंदोलन कर रहे किसानों के समर्थन में अपनी जान दे रहे हैं, ताकि सरकार जनता की आवाज सुनने के लिए विवश हो सके.
सिंह ने लिखा कि तीन ‘काले’ कृषि कानूनों के चलते मजदूर एवं किसान जैसे आम आदमी ‘ठगा’ हुआ महसूस कर रहे हैं.
पुलिस का कहना है कि वह 18 दिसंबर की तारीख वाले इस सुसाइड नोट की प्रामाणिकता की जांच कर रही है.
झज्जर जिले के एक पुलिस अधिकारी ने कहा, ‘मृतक के परिजनों को सूचना दे दी गई है ओर उनके आने पर बयान दर्ज करने के बाद आगे की कार्यवाही की जाएगी.’
उन्होंने बताया कि इस घटना के बारे में उन्हें अस्पताल प्रशासन ने सूचित किया था.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, वकील अमरजीत सिंह दिल्ली स्थित टिकरी बॉर्डर पर भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) उगराहां से जुड़े किसानों के साथ आंदोलन में शामिल थे.
वकील ने किसानों द्वारा नाम दिए गए गदरी गुलाब कौर नगर स्थित प्रदर्शन स्थल के मंच से 200 मीटर पर कीटनाशक सल्फास खा लिया. सल्फास खाकर गिरने से पहले उन्होंने अन्य प्रदर्शनकारियों को दो प्रिंटेड पत्र दिए, जिसमें से एक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को संबोधित करते हुए लिखा गया था.
रिपोर्ट के अनुसार, बीते 16 दिसंबर से टिकरी बॉर्डर पर अमरजीत के साथ आंदोलन में शामिल राम कुमार मुंशी ने कहा, ‘सुबह (रविवार) 8:48 बजे उन्होंने (अमरजीत) मुझे कॉल किया. उन्होंने कहा कि उन्होंने सल्फास खा लिया है. मैं सुबह के 8:55 बजे उनके पास पहुंचा. बेहोश होकर गिरने से पहले उन्हें हमें दो प्रिंटेड पत्र दिए.’
अमरजीत के परिवार के सदस्यों ने कहा कि वह 63 वर्ष के थे.
अमरजीत ने अन्य आंदोलनकारियों को जो दो पत्र दिए उनमें से एक जलालाबाद के बार एसोसिएशन से जलालाबाद एसडीएम के लिए था, जिसमें किसानों के शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन को समर्थन देने की बात कही गई थी.
दूसरे पत्र का शीर्षक प्रधानमंत्री के नाम पत्र था और उस पर हरी स्याही से अमरजीत सिंह एडवोकेट बार एसोसिएशन जलालाबाद (फजिल्का) के 18/12/2020 के हस्ताक्षर थे.
टिकरी बॉर्डर पर ही मौजूद जलालाबाद के निवासी अमृतपाल सिंह ने कहा, ‘उन्हें वे जलालाबाद से मिले थे. 16 दिसंबर के बाद से वह किसी पत्र को टाइप करने के लिए कहीं भी नहीं गए थे. वह एक नोटरी पब्लिक और जलालाबाद के मशहूर वकील थे.’
अमृतपाल ने कहा, ‘रविवार की सुबह वह हमसे मुस्कुराते हुए मिले थे. नए (कृषि) कानूनों ने बेहद परेशान होने के बावजूद भी हमें कोई आइडिया नहीं था कि वह इतना बड़ा कदम उठा लेंगे.’
प्रधानमंत्री मोदी को लिखे पत्र में अंग्रेजी में लिखा था कि एक प्रधानमंत्री के रूप में लोग आपसे एक बेहतर भविष्य की उम्मीद करते हैं.
प्रधानमंत्री पर घमंडी होने और खास पूंजीपतियों (अंबानी और अडानी) के हितों के लिए काम करने का आरोप लगाते हुए पत्र में उन्होंने कहा है, ‘किसान और मजदूर जैसे आम लोग आपके तीन काले कृषि बिलों से ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं. जनता वोटों के लिए नहीं बल्कि अपने परिवारों और पीढ़ियों की आजीविका के लिए पटरियों और सड़कों पर हैं.
पत्र के अनुसार, ‘कृपया कुछ पूंजीपतियों के लिए किसानों, मजदूरों और आम लोगों की रोटी न छीनें और उन्हें सल्फास खाने के लिए मजबूर न करें. सामाजिक तौर पर आपने जनता और राजनीतिक तौर पर शिरोमणि अकाली दल जैसे दलों के साथ धोखा किया है. इस विश्वव्यापी आंदोलन के लिए अपना बलिदान दे रहा हूं, ताकि आपके बहरे और गूंगे विवेक को हिला सकूं. भारतीय किसान मजदूर एकता जिंदाबाद.’
जलालाबाद के एक स्कूल में शिक्षक अमरजीत की 24 वर्षीय बेटी सुमन बाला ने इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में कहा, ‘मुझे विश्वास नहीं हो रहा है कि पापा ऐसा कदम उठा सकते हैं. उन्होंने शनिवार रात हम सभी से बात की और हमें बताया कि वह जल्द ही वापस आएंगे.’
अमृतपाल ने कहा कि अमरजीत घर वापस जाने के लिए बसों या ट्रेनों के बारे में पूछताछ कर रहे थे.
बीकेयू उगराहां के उपाध्यक्ष शिंगरा सिंह मान ने कहा, ‘यह एक चौंकाने वाली घटना है, हम हमेशा अपने कार्यकर्ताओं को खुदकुशी नहीं, संग्राम के लिए कहते हैं. किसी को भी यह रास्ता नहीं अपनाना चाहिए. सरकार को अब भी जागना चाहिए और दीवार पर लिखे हुए को देखना चाहिए. यदि वे जनता की सरकार हैं तो उन्हें कानूनों को वापस लेना चाहिए.’
बता दें कि, इससे पहले दिल्ली से लगी दूसरे बॉर्डर सिंघु पर करनाल के एक 65 वर्षीय धार्मिक नेता संत राम सिंह ने भी कथित तौर पर एक पत्र छोड़ते हुए खुद को गोली मारकर आत्महत्या कर ली थी.
पत्र में उन्होंने कहा था कि वह किसानों की दुर्दशा से पीड़ित थे. इसके बाद तरन तारन के एक 70 वर्षीय किसान ने भी कीटनाशक की गोलियां खाकर आत्महत्या करने की कोशिश की थी.
उल्लेखनीय है कि पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश के अलावा कई अन्य राज्यों के हजारों किसान तीन नए कृषि कानूनों को वापस लिए जाने की मांग को लेकर दिल्ली की सीमाओं पर पिछले एक महीने से विरोध-प्रदर्शन कर रहे हैं.