भारत बायोटेक ने कोवैक्सीन के फेज़-3 ट्रायल को लेकर जारी किए एक दस्तावेज़ में वॉलेंटियर्स को लुभाने के लिए कहा है कि सरकार के टीके में अभी देर होगी, इसलिए लोग ट्रायल में शामिल होकर ख़ुद को सुरक्षित कर लें. विशेषज्ञों ने कहा कि कंपनी ऐसा कहकर जता रही है कि इससे लोगों को कोविड से सुरक्षा मिल जाएगी, जो सही नहीं है.
नई दिल्ली: कोरोना वायरस के संभावित टीके कोवैक्सीन के ट्रायल को लेकर फार्मास्युटिकल कंपनी भारत बायोटेक द्वारा जारी की गई जानकारियों को लेकर विशेषज्ञों ने उसकी आलोचना की है.
अपने फेज-3 ट्रायल के लिए वॉलेंटियर्स की कमी से जूझ रही कंपनी ने हाल ही में एक दस्तावेज जारी किया, जिसमें उन्होंने अपने ट्रायल को लेकर बेसिक जानकारियां साझा की हैं.
इससे जुड़े सवालों की सूची में एक सवाल है, ‘जब सरकार 50 साल से ऊपर वाले व्यक्तियों का जल्द टीकाकरण करने की योजना बना रही है तो मुझे कोवैक्सीन के फेज-3 ट्रायल में क्यों शामिल होना चाहिए?’
इसके जवाब में कहा गया कि मुख्य जांचकर्ता वॉलेंटियर्स को बताए कि ये वैक्सीन उन्हें कोविड-19 से बचाएगी और चूंकि सरकार द्वारा टीका लगवाने में अभी कई महीने लग सकते हैं, इसलिए लोग इसमें शामिल हो सकते हैं.
इसके साथ ही दस्तावेज में केंद्र का हवाला देते हुए कहा गया है कि पहले महीने में वैक्सीन की उपलब्धता काफी सीमित रहेगी. इसके अलावा यदि वैक्सीन उपलब्ध भी हो गई तो पहले एक करोड़ स्वास्थ्यकर्मियों, इसके बाद दो करोड़ फ्रंटलाइन वर्कर, जिसमें पुलिस एवं सशस्त्र बल शामिल हैं, का टीकाकरण किया जाएगा.
इस श्रेणी के लोगों को टीका लगाने के बाद ही 50 साल से अधिक के उम्र वालों को टीका लग पाएगा, जिनकी संख्या 50 करोड़ है.
इस आधार पर भारत बायोटेक के दस्तावेज में कहा गया है 50 साल से अधिक के उम्र वाले सभी लोगों को टीका लगाने में काफी समय लग जाएगा, इसलिए ये सलाह दी जाती है कि इस श्रेणी के लोग फेज-3 ट्रायल में शामिल हों और वैक्सीन लगवाकर खुद को सुरक्षित करें.
हालांकि फार्मा कंपनी ने इस तरह के दावों की विशेषज्ञों आलोचना की है और कहा कि उन्होंने ऐसा कहकर पब्लिक को गुमराह किया है.
विशेषज्ञों ने कहा कि भारत बायोटेक इस तरह की बातें करके ऐसा भाव दे रहा है कि ट्रायल में शामिल होने पर लोगों को कोरोना वायरस से सुरक्षा मिल जाएगी, जो सही नहीं है.
ग्लोबल हेल्थ, हेल्थ पॉलिसी एंड बायोएथिक्स के रिसर्चर अनंत भान ने द प्रिंट को बताया, ‘इस दस्तावेज में स्पष्ट रूप से भ्रामक भाषा का इस्तेमाल किया गया है. फेज-3 ट्रायल का मुख्य उद्देश्य इसके प्रभाव को जांचना है. हालांकि इसमें इसके प्रभाव को लेकर पहले से ही धारणा बना दी गई है, लेकिन ये सब किस आधार पर?’
इसी तरह इंडियन जर्नल ऑफ मेडिकल एडिक्स के एडिटर अमर जेसानी ने बताया, ‘वे पहले से ही अनुमान लगा रहे हैं कि उनका वैक्सीन अच्छा है. यै कैसे हो सकता है.’
जेसानी ने कहा कि ऐसा करके कंपनी ने मेडिकल रिसर्च के ‘मूलभूत सिद्धांत’ का उल्लंघन किया है, जो ये कहता है कि रिसर्चर को ट्रायल के विभिन्न चरणों के दौरान निश्चिंत नहीं होना है.
उन्होंने कहा कि ट्रायल में शामिल वॉलेंटियर्स को ये आश्वासन देना कि डोज लेने के बाद वे बिल्कुल सुरक्षित हो जाएंगे, यह उन्हें बेपरवाह बना देगा. इसके परिणामस्वरूप संक्रमण का खतरा बन सकता है. अनंत भान ने कहा कि कंपनी को ये दस्वावेज वापस लेना चाहिए.
हालांकि कोवैक्सीन ट्रायल वाले ओडिशा स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेस के प्रमुख जांचकर्ता वेंकट राव ने कहा कि इस दस्तावेज का उद्देश्य कैंडिडेट्स को प्रभावित नहीं करना है.
राव ने कहा, ‘हम सभी जानते हैं कि टीका लाना एक कठिन प्रक्रिया है. जब दो लोग परीक्षण में भाग लेते हैं, तो संभावना है कि उनमें से कम से कम एक को वैक्सीन मिलेगा, अगर दूसरे को प्लेसबो मिल रहा है. कुछ न मिलने से बेहतर है कुछ हासिल करना.’
मालूम हो कि हैदराबाद स्थिति फार्मा कंपनी ने कुछ हफ्ते पहले ही कोविड-19 वैक्सीन के रूप में कोवैक्सीन का इस्तेमाल करने के लिए केंद्रीय ड्रग नियामक के लिए आवेदन किया है.
ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (डीसीजीआई) ने 23 अक्टूबर को फर्म को फेज-3 के क्लीनिकल ट्रायल की अनुमति दी थी.