एल्गार परिषद मामले में जेल में बंद कार्यकर्ताओं गौतम नवलखा, हेनी बाबू और सुधा भारद्वाज ने कहा है कि पिछले कई महीने से परिवार द्वारा भेजी जा रहीं किताबें उन्हें नहीं मिल रही हैं. हालांकि जेल प्रशासन ने इन आरोपों को ख़ारिज किया है.
नई दिल्ली: एल्गार परिषद मामले के तीन आरोपियों ने कहा है कि उन्हें पिछले कुछ महीनों से जेल में पढ़ने के लिए किताबें नहीं मिल रही हैं.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, बीते मंगलवार को विशेष कोर्ट के सामने दायर एक आवेदन में दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर हेनी बाबू और कार्यकर्ता गौतम नवलखा ने कहा कि पिछले चार महीने में उनके लिए भेजी जा रहीं किताबों को तलोजा जेल प्रशासन (नवी मुंबई) ने स्वीकार नहीं किया और उन्हें वापस कर दिया गया.
उन्होंने ये भी कहा कि पिछले छह महीने से उन्हें अखबार भी नहीं मिल रहा है, जो कि उनके सूचित होने के अधिकार का उल्लंघन है.
इसी मामले में एक अन्य आरोपी वकील सुधा भारद्वाज, जो कि बायकला जेल (मुंबई) में बंद हैं, ने भी इसी तरह का आवेदन दायर किया है. वैसे तो उन्हें अखबार मिल रहा है, हालांकि भारद्वाज ने कहा कि एक तो जेल की लाइब्रेरी में पर्याप्त किताबें नहीं हैं और उनके लिए बाहर से जो किताबें आ रही हैं उसे जेल प्रशासन वापस कर दे रहा है.
हालांकि जेल के अधिकारियों ने दावा किया है कि कैदियों को किताबें मुहैया कराने से रोका नहीं जा रहा है. तलोजा जेल ने बताया कि कोविड-19 के मद्देनजर अखबारों की आपूर्ति बहाल करने पर सावधानी बरती जा रही है और जल्द ही इस संबंध में निर्णय लिया जाएगा.
कार्यकर्ताओं ने अपनी याचिका में कहा है कि लेखक और शिक्षाविद के रूप में उन्होंने अपना जीवन पठन-पाठन के कार्य में व्यतीत किया है, इसलिए मनमाने तरीके से उनकी किताबें अस्वीकार नहीं की जा सकती हैं.
राज्य की जेल नियमावली का हवाला देते हुए उन्होंने उनके परिवार और वकीलों द्वारा भेजी गईं पुस्तकों को स्वीकार करने के लिए जेल अधिकारियों को निर्देश देने के साथ महीने में पांच किताबें देने की मांग की है.
विशेष न्यायाधीश डीई कोठालीकर ने उल्लेख किया कि महाराष्ट्र जेल नियमावली का नियम 13 इस तरह के मामलों में निर्णय करने की शक्ति जेल अधीक्षकों को देता है.
न्यायाधीश ने कोई आदेश पारित करने से पहले याचिकाकर्ताओं की वकील चांदनी चावला से कहा कि वह इस बारे में शपथ-पत्र दायर करें कि उन्होंने जेल अधिकारियों से संपर्क किया था, जिन्होंने किताब उपलब्ध कराने का आग्रह नहीं माना. मामले में अगली सुनवाई 12 जनवरी को होगी.
कार्यकर्ताओं ने भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (आईसीएमआर) के दिशानिर्देशों एवं अन्य अध्ययनों का हवाला देते हुए कहा कि वायरस सतह पर जीवित नहीं रहता है, इसलिए किताबों के चलते कोविड-19 का संक्रमण नहीं फैल सकता है. जहां तक अखबार का सवाल है, तो ये बुनियादी मानवाधिकार है.
हालांकि तलोजा जेल अधीक्षक कौस्तुभ कुरलेकर ने कहा कि डाक द्वारा भेजी गईं पुस्तकों को अस्वीकार नहीं किया जा रहा है.
उन्होंने कहा, ‘हम कैदियों के लिए पुस्तकों से इनकार नहीं कर रहे हैं. हम उन्हें सैनिटाइज करते हैं और कैदियों को देते हैं. हम जेल में समाचार पत्रों के वितरण पर निर्णय लेने की प्रक्रिया में हैं, क्योंकि जेल की वर्तमान आबादी 5,000 से अधिक है, जबकि इसकी क्षमता 2,124 कैदियों की है और वायरस की दूसरी लहर की आशंका भी है.’
बायकला जेल ने भी इन आरोपों को खारिज किया है. नियम के मुताबिक विचाराधीन कैदी जेल अधीक्षक द्वारा स्वीकृत संख्या के मुताबिक किताबें रख सकता है.
मालूम हो कि जनवरी 2018 में भीमा-कोरेगांव में हुई हिंसा और माओवादियों से कथित संबंधों के आरोप में नवलखा, बाबू, भारद्वाज समेत कई कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया गया था.
उन पर हिंसा भड़काने और प्रतिबंधित भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के लिए फंड और मानव संसाधन इकठ्ठा करने का आरोप है, जिसे उन्होंने बेबुनियाद बताते हुए राजनीति से प्रेरित कहा है.