नए कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ पिछले एक महीने से दिल्ली की विभिन्न सीमाओं पर बैठे किसानों और सरकार के बीच पिछली बैठक में कुछ मांगों पर सहमति बनी है, लेकिन किसानों का कहना है कि मुख्य मांग नए क़ानूनों को वापस लेने और एमएसपी क़ानून बनाने की है, जब तक वो नहीं मानी जाएंगी, प्रदर्शन जारी रहेगा.
नई दिल्ली: बीते 26 नवंबर से दिल्ली की विभिन्न सीमाओं पर पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश सहित विभिन्न राज्यों के किसान धरने पर बैठे हुए हैं. ये किसान केंद्र सरकार के तीन नए कृषि कानूनों के खिलाफ विरोध कर रहे हैं.
उनकी मांग है कि इन तीनों कानूनों को वापस लिया जाए और न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) सुनिश्चित करने वाला एक केंद्रीकृत कानून लाया जाए.
हालांकि, एक महीने के बाद भी केंद्र सरकार और किसान संगठनों के बीच हुई पांच दौर की बातचीत का कोई नतीजा नहीं निकला था.
8 दिसंबर को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के साथ किसान संगठनों की वार्ता विफल होने के 22 दिनों के बाद बुधवार 30 दिसंबर को बातचीत एक फिर से शुरू हुई.
आखिरकार दो मांगों पर सरकार और किसान संगठनों के बीच सहमति बन गई है और किसानों की मुख्य मांग एमएसपी पर कानून को लेकर आगामी 4 जनवरी को बातचीत की तारीख तय की गई है. इससे आंदोलन के किसी समाधान की ओर बढ़ने की उम्मीद जगी है.
हालांकि, एक महीने से भी अधिक समय से भीषण ठंड के मौसम में खुले आसमान के नीचे कई-कई किलोमीटर डेरा जमाकर बैठे किसान सरकार की थकाने और भगाने की रणनीति से किसी भी तरह से विचलित होते नहीं दिख रहे हैं.
वहां जहां लोगों की तादाद बढ़ती जा रही है, तो वहीं कई लोग घर से धरनास्थल और धरनास्थल से घर के बीच की दूरी तय करते रहते हैं. लेकिन वहां बहुत से ऐसे लोग हैं जो लगातार एक महीने से डटे हुए हैं.
द वायर ने टिकरी बॉर्डर पर इकट्ठे ऐसे ही लोगों से बात की, जो लगातार पिछले एक महीने से प्रदर्शन कर रहे हैं और आगे भी धरना चलने तक वहां रहने की बात कर रहे हैं. उनका कहना है कि वे छह महीने का राशन लेकर आए हैं और सरकार को झुकाकर ही वापस लौटेंगे.
70 वर्षीय तेजा सिंह ऐसे ही एक किसान हैं. वे पिछले एक महीने से दिल्ली के टिकरी बॉर्डर पर डटे हुए हैं. वे बताते हैं कि उनके पास पांच एकड़ जमीन है और वही उनकी आजीविका का साधन है.
वे कहते हैं, ‘हम लोग वापस नहीं जाएंगे. एक-दो दिन देखेंगे और फिर प्रधानमंत्री आवास पर जाकर आत्महत्या कर लेंगे. हम आत्महत्या ही नहीं करेंगे बल्कि मोदी का नाम लेकर जाएंगे. जिएं या मरें, चाहे जो हो जाए हमारा एक भी आदमी वापसी नहीं जाएगा.’
22 दिनों के अंतराल के बाद बातचीत दोबारा शुरू होने पर सरकार पर भरोसे के सवाल पर वे कहते हैं, ‘हमारा सरकार पर एक नया भी भरोसा नहीं है. अगली बातचीत में भी वह इधर-उधर की बातें लाएगी. उसके अगले दिन हम वहां अपना बलिदान दे देंगे. इसके बाद हमारे घर का दूसरा आदमी आकर बैठेगा, कोई बात नहीं.’
वे कहते हैं, ‘हमारे पास पांच एकड़ जमीन है. उसमें हम गेहूं और धान सहित अन्य फसलें उगाते हैं. उसी से हमारा घर चलता है और वही हमारी आजीविका का साधन है.’
इसी तरह 85 वर्षीय सतपाल सिंह पिछले एक महीने से अपने कई अन्य साथियों के साथ एक कैंप में हैं, वे वहीं रहते हैं, वहीं सोते हैं.
वे कहते हैं, ‘ठंड तो लगती है, ठंड तो बहुत है. लेकिन हमें इन कानूनों से खतरा है. हम 26 तारीख से आए हुए हैं. इस बीच एक-दो दिन गांव जाते हैं और फिर वापस आ जाते हैं. सरकार को कानून वापस लेने ही होंगे. जो भी भारत के नौजवान और किसान हैं वे समझदार हो चुके हैं. ये कानून हमारे हक में नहीं हैं, ये काले कानून हैं. ये हमें मार देंगे, लेबर बना देंगे. ये हमें कॉरपोरेट घरानों के लेबर बना देंगे. सरकार को ये वापस लेने ही पड़ेंगे.’
वे आगे कहते हैं, ‘किसी के पास पांच एकड़, किसी के पास दो एकड़ तो किसी के पास 10 एकड़ जमीन है. ये ज्यादा तो है नहीं. वह भी ये कॉरपोरेट घरानों को दे देंगे, तो हमारे बच्चे भूखे मरेंगे. फिर वो लेबर करेंगे, हम लेबर नहीं करते हैं. हम खुद भी खाते हैं और दूसरों को भी खिलाते हैं.’
भीषण ठंड के मौसम में रहने, खाने-पीने और शौचालय आदि को लेकर दिक्कतों का सामना कर रहे ये किसान अपनी परेशानियों को दिखाने से बच रहे हैं और पूरा ध्यान आंदोलन पर केंद्रित रखना चाहते हैं.
सिंह कहते हैं, ‘दिक्कत तो है ही लेकिन एक काम बढ़िया हो गया कि जो पूरे देश का किसान है, वह एक रस्सी में बंध गया, सारा भाईचारा बढ़ गया. पहले सबको हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई में बांटकर रखा गया और सब एक-दूसरे में बंट गए थे लेकिन अब सब का भाईचारा बढ़ गया. अब तो कानून वापस लेने ही पड़ेंगे.’
उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों के किसानों के आंदोलन में बढ़-चढ़कर भाग न लेने के सवाल पर वे कहते हैं, ‘इन्होंने सीएए लाकर उन लोगों को आपस में लड़ा दिया, किसी को देशद्रोही तो किसी को आईएसआई का एजेंट बता दिया. उसके बाद नोटबंदी और जीएसटी से भी उन्हें बांट दिया. हम पंजाब वाले हैं हमको समझ है. हमने अपने साथ अपने छोटे भाई हरियाणा को लिया और सारे भारत को समझा दिया कि ये अपने हक में नहीं है.’
फरीदकोट जिले से आए एक ग्राम प्रधान बलराज सिंह भी बीते एक महीने से इस आंदोलन में शामिल हैं. वे कहते हैं, ‘हमें पंजाब से चले हुए 35 दिन हो गए हैं. हम खाने-पीने का छह महीने का राशन लेकर आए हैं. हमें कोई दिक्कत नहीं है, हम छह महीने यहीं डटकर रहेंगे. जब तक कानून वापस नहीं होगा हम लौटकर नहीं जाएंगे चाहे छह महीना, साल, दो साल लग जाएं. अगर मोदी गोली मारने को तैयार हैं, तो हम गोली से भी पीछे नहीं हटेंगे.’
वे कहते हैं, ‘इन्होंने पंजाब, हरियाणा, राजस्थान सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों से पहले साइन करवा लिया और सारे अधिकार अपने हाथ में ले लिए. कोरोना की आड़ में ये कानून लेकर आ गए. इन्होंने अब पंजाब के किसानों से पंगा ले लिया है. हम पीछे नहीं हटेंगे. आजादी के समय पंजाब के 80 फीसदी सरदारों ने कुर्बानी दी थी. अब जितने में नौजवान, बच्चे, बूढ़े आए हैं वे कुर्बानी देने को तैयार हैं.’
बलराज सिंह किसानों की मौत को लेकर कहते हैं, ‘किसान चाहे सर्दी से मरें या जैसे भी वे इसके लिए मोदी को जिम्मेदार ठहराएंगे क्योंकि मोदी ने उन्हें यहां बुलाया है. ये कानून न लाकर आए होते तो किसानों की मौत नहीं हो रही होती. मोदी ने दिल्ली बुलाया है इसलिए हम मोदी को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं.’
उन्होंने आगे कहा, ‘संत राम सिंह ने गोली मारी और उन्हें अपने पास पर्चा रखा था कि वह मोदी के कानून से तंग आकर आत्महत्या कर रहे हैं. एक वकील ने भी आत्महत्या की है और वह भी मोदी को जिम्मेदार बताने वाला पर्चा छोड़कर गए हैं. यह (मोदी) बहुत गंदा बंदा है, बंदा ठीक नहीं है ये.’
गौरतलब है कि 27 दिसंबर को किसान आंदोलन स्थल से कुछ किलोमीटर की दूरी पर पंजाब के फाजिल्का जिले के जलालाबाद के एक वकील अमरजीत सिंह ने 27 दिसंबर को कथित तौर पर जहर खाकर आत्महत्या कर ली थी.
सुसाइड नोट में सिंह ने लिखा था कि तीन ‘काले’ कृषि कानूनों के चलते मजदूर एवं किसान जैसे आम आदमी ‘ठगा’ हुआ महसूस कर रहे हैं.
इससे पहले दिल्ली से लगे दूसरे बॉर्डर सिंघु पर करनाल के एक 65 वर्षीय धार्मिक नेता संत राम सिंह ने कथित तौर पर एक पत्र छोड़ते हुए खुद को गोली मारकर आत्महत्या कर ली थी. पत्र में उन्होंने कहा था कि वह किसानों की दुर्दशा से पीड़ित थे.
अब तक इस पूरे आंदोलन के दौरान 40 से अधिक किसानों की विभिन्न कारणों से मौत हो चुकी है. 20 दिसंबर को पंजाब के अलग-अलग हिस्सों में उन्हें श्रद्धांजलि दी गई थी.
यहां रह रहे किसान साझेदारी से रह रहे हैं, बड़े पैमाने पर लंगर लगाकर खाना बनाया-खिलाया जा रहा है, साथ ही अब कपड़े धोने की भी व्यवस्था भी की गई है.
बलराज सिंह आगे बताते है, ‘हमारे भाई यहां खाना बना रहे हैं. हम खाना बनाकर खा रहे हैं और कपड़े धोने के लिए मशीनें रखी हैं. यह सभी के फ्री हैं, किसी से कोई पैसा नहीं लिया जा रहा है. पिछले 20 दिन से हम ये कपड़े धो रहे हैं और सुबह से शाम तक करते रहते हैं. पानी की टंकी से पानी लेते हैं और जल्द ही पंजाब से भी पानी मंगाने वाले हैं.’
यहां नांगलोई किसान यूनियन के 70 वर्षीय अध्यक्ष फतेह सिंह भी मौजूद हैं. वे कहते हैं, ‘पिछले एक महीने में यह बदलाव हुआ है कि लोगों में और अधिक जोश आया है. सरकार के पीछे हटने तक लोग जाने वाली नहीं हैं. गेंद सरकार के पाले में है. किसान और मजदूर एक साथ है और इनको कोई तोड़ने वाला नहीं है. एक किसी को चोट मार रखी है इसीलिए सरकार के खिलाफ यह आवाज उठी है.’
वे बताते हैं, ‘मेरे पास चार एकड़ जमीन है. हमारा खर्च उसी से चलता है. जमीन से जो उगेगा लोग वही खाएंगे, कोई सोना-चांदी परोस देगा तो कोई खा लेगा क्या? प्रधानमंत्री के दिमाग में कोई फितूर पैदा हुआ है कि अमीरों से ही उनका काम चलेगा और उनकी राजगद्दी बनी रहेगी. लेकिन यह उनकी भूल है.’
उन्होंने कहा, ‘किसी गरीब को मत सता, गरीब बेचारा क्या कर सकेगा, वो तो बस रो देगा, पर उसका रोना सुन लिया ऊपर वाले ने, तो तू अपनी हस्ती खो देगा.’
इस आंदोलन में बड़े पैमाने पर ऐसे भी लोग शामिल हैं जिनके पास खेती की कोई जमीन नहीं है. ऐसे ही एक प्रदर्शनकारी पंजाब के 65 वर्षीय मेजर सिंह हैं जो एक महीने से अपने पूरे परिवार के साथ दिल्ली के टिकरी बॉर्डर पर डटे हुए हैं.
उनके परिवार में उनके बेटे, बहू और 18 साल से लेकर तीन महीने तक तीन पोतियां भी हैं. उनकी 18 वर्षीय बड़ी पोती 12वीं कक्षा की छात्रा हैं और यहां रहने के दौरान ऑनलाइन अपनी पढ़ाई कर रही हैं.
वे कहते हैं, ‘मुझे यहां आए हुए एक महीना पांच दिन हो गया है. मेरे साथ मेरा पूरा परिवार है. बेटा, बहू और तीन पोतियां साथ में हैं. हमें कोई दिक्कत नहीं है. जब तक कानून रद्द नहीं होगा तब तक हम नहीं जाएंगे. हम अपनी ट्रॉली और उसमें सारा सामान, पूरा घर बार लेकर आए हैं.’ हालांकि, उनके पास कोई खेत नहीं है.
37 वर्षीय हरविंदर सिंह एक शिक्षक हैं. वह पैरों से अक्षम हैं और व्हीलचेयर पर ही रहते हैं. वे अपने दोस्तों के साथ किसानों का समर्थन करने आए हुए हैं.
वे कहते हैं, ‘हम किसान भाइयों का समर्थन करने के लिए आए हुए हैं. घर में दिल नहीं लगता था जब हम घर में टीवी पर देखते थे कि किसान भाई दो डिग्री सेंटीग्रेड में सड़कों पर बाहर हैं. ऐसे में हमें लगा कि वहां जाया जाए और समर्थन किया जाए.’
हरविंदर आगे कहते हैं, ‘वह पंजाब जिसने 1966 में हरित क्रांति लाकर हर एक भारतीय के मुंह में अन्न का दाना दिया उस किसान के साथ ऐसा व्यवहार क्यों किया जा रहा है? यह आपके लोग हैं और इन्हीं लोगों ने आपको जिताया है. अगर इन लोगों ने आपको नहीं जिताया है तो मान लीजिए कि आपको ईवीएम ने जिताया है. अगर इन लोगों ने जिताया है तो इनकी बात सुनिए. अगर किसान अपनी फसल का सही मूल्य नहीं लगाएगा तो कौन लगाएगा, क्या कॉरपोरेट लगाएगा?’
उत्तर प्रदेश से आए किसान गाजीपुर बॉर्डर पर डटे हैं. ऐसे ही पिछले 14-15 दिन से पीलीभीत से आए किसानों का एक समूह गाजीपुर बॉर्डर पर है और 29 दिसंबर को उनके टिकरी बॉर्डर आने पर उनसे बात हुई.
इनमें से एक 55 वर्षीय सतबीर सिंह ने बताया, ‘इस साल हमारे धान की फसल 1,100 रुपये क्विंटल बिकी है जबकि एमएसपी 1,850 रुपये थी. एसडीएम ने हमें मंडी में बुलाया था लेकिन वहां नहीं बिका तो थक-हारकर बेच दिया. इसी दुख के कारण आए हुए हैं. पिछले साल 11 लाख के धान हुए थे और इसी साल पांच लाख के धान हुए हैं. डीजल भी इतना महंगा हो रखा है.’
आंदोलन के दौरान आ रही मुश्किलों के बारे में पूछने पर वे कहते हैं, ‘परेशानी कोई नहीं है, परेशानी तो खेतों में भी रहती है. यहां तो उतनी परेशानी नहीं है जितनी खेत में रहती है. मोदी और योगी ने हमें बर्बाद कर दिया है. अगर हमें सही दाम मिलता तो हम क्यों घूमते. धान का पूरा दाम नहीं मिलता. गन्ने का बकाया साल-साल भर तक नहीं मिलता.’
उन्होंने बताया कि उन्होंने पिछले साल बलिया के चीनी मिल को गन्ना दिया था और अभी तक जिसका पैसा नहीं मिला है. वे बताते हैं, ‘जनवरी तक पेमेंट मिली और उसकी बाद पेमेंट नहीं मिली. सिंचाई कहां से होगी, डीजल कहां से लाएंगे और खर्च कहां से लाएंगे. पहले डीजल 50-60 रुपये था और अब 75 रुपये लीटर है. कर्ज तले दबते जा रहे हैं, पिसते जा रहे हैं, तभी मजबूरी में आ रहे हैं.’
गोदी मीडिया से लड़ने के लिए किसानों ने निकाला अपना अखबार
आंदोलनकारी किसान केवल सरकार से नहीं बल्कि पारंपरिक और मेनस्ट्रीम मीडिया से भी खासे नाराज हैं और उन्हें गोदी मीडिया कहकर संबोधित कर रहे हैं. उन्होंने इससे लड़ने के लिए अपना अखबार भी निकाला है.
एक स्थानीय अखबार की पहले पन्ने की मुख्य हेडलाइन को दिखाते हुए बलराज सिंह कहते हैं, ‘ये गोदी मीडिया है, ये बिका हुआ मीडिया है. ये मीडिया या अखबार वाले जो बात हो रही है उसकी सही खबर नहीं दे रहे हैं.’
स्थानीय अखबार की हेडलाइन की ओर इशारा करते हुए 80 वर्षीय हरपाल सिंह कहते हैं, ‘ये अखबार में लिखा है कि मोदी कह रहा है कि हमारा देश आगे बढ़ रहा है. आगे क्या बढ़ रहा है कि ये देश को मार रहा है, खत्म कर रहा है. मोदी सरकार तानाशाही कर रही है.’
वह बताते हैं, ‘हमने एक नया अखबार ट्रॉली टाइम्स निकाला हुआ है और इसमें किसानों की बात शामिल की जाती है. यह पूरे देश में जा रहा है. इसके साथ-साथ हम कई किताबें भी निकाल रहे हैं.’
वे आगे कहते हैं, ‘35 से 40 किलोमीटर दूर तक लोग ट्रॉलियां खड़ी हैं. बहुत ठंड है और कपड़े की भी कमी है. नए कपड़े लेने पड़ रहे हैं. एक बार में चार हजार आदमी आ रहे हैं और उन्हें रहने में समस्या आ रही है.’
पंजाब से आकर यहां लगा रहे दुकान
किसान आंदोलन को लंबा खींचता देख पंजाब के व्यापारी भी वहां से आकर यहां तरह-तरह की दुकानें लगाने लगे हैं. हालांकि, वे नफे-नुकसान की बात छोड़कर किसानों की मदद कर रहे हैं.
35 वर्षीय सोनू पंजाब में कपड़े बेचते हैं और वहां के सरदारों के कहने पर टिकरी बॉर्डर पर आकर कपड़े की दुकान लगाए हुए हैं.
सोनू बताते हैं, ‘पिछले तीन-चार दिन मैंने यहां पर दुकान लगाई है. पंजाब में भी गांवों में रेडीमेड कपड़े बेचते हैं. गांव के हमारे जो सरदार ग्राहक हैं वे यहां आ गए तो हमें भी यहां आना पड़ गया. उन्होंने हमें फोन करके कहा कि हमें कपड़ों की जरूरत है इसलिए हम चले आए.’
350 से 400 रुपये में एक जोड़ी कुर्ता-पायजामा देने वाले सोनू कहते हैं, ‘हम सिलाई के दाम पर कपड़े दे रहे हैं. सिलाई का जो दाम है वह ले रहे हैं जबकि कपड़ा फ्री होता है. फायदा लेने की कोई बात नहीं है. वहां जो दाम लेते थे उससे 50 रुपये कम ले रहे हैं.’
यह पूछने पर कि वह कोई फायदा लिए बिना कपड़े क्यों बेच रहे हैं तो सोनू कहते हैं, ‘हम ऐसा अपनी खुशी से कर रहे हैं. हम किसानों के आंदोलन के समर्थन में हैं. किसानों के साथ न्याय होना चाहिए. जो इनका हक है वह मिलना चाहिए.’
छठे दौर की बातचीत में भी मुख्य मांगों पर नहीं बनी सहमति
केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने बीते बुधवार को कहा कि सरकार और किसान संगठनों के बीच हुई छठे दौर की वार्ता में बिजली संशोधन विधेयक 2020 और एनसीआर एवं इससे सटे इलाकों में वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग के संबंध में जारी अध्यादेश संबंधी आशंकाओं को दूर करने को लेकर सहमति बन गई. तोमर ने किसान संगठनों से वार्ता के बाद यह दावा किया.
हालांकि उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि तीन कृषि कानूनों को निरस्त करने की किसान संगठनों की मांग एवं एमएसपी की कानूनी गारंटी देने का मुद्दे पर कोई सहमति नहीं बन सकी.
उन्होंने कहा कि इन मुद्दों पर चार जनवरी को फिर चर्चा होगी. छठे दौर की इस वार्ता में किसान संगठनों के प्रतिनिधियों और तोमर के अलावा केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल और वाणिज्य राज्यमंत्री सोम प्रकाश शामिल हुए.
इससे पहले किसान संगठनों और केंद्र सरकार के बीच पांच दौर की वार्ता हो चुकी थी और आठ दिसंबर को हुई आखिरी बातचीत में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह भी शामिल हुए थे लेकिन वह बातचीत भी विफल रही थी. इसके 22 दिन बाद छठे दौर की वार्ता हुई थी.
हालांकि, तोमर ने शुक्रवार को कहा कि सरकार को किसान संघों के साथ चार जनवरी को होने वाली अगली बैठक में ‘सकारात्मक परिणाम’ निकलने की उम्मीद है लेकिन उन्होंने इस बारे में कुछ भी कहने से इनकार कर दिया कि सातवें दौर की वार्ता अंतिम होगी या नहीं.
छठे दौर की बातचीत के बाद किसान नेताओं की प्रतिक्रिया
आंदोलनकारी किसानों की दो मांगे माने जाने पर बनी सहमति बनने के तोमर के दावे पर द वायर से बात करते हुए भारतीय किसान यूनियन के नेता रमनदीप सिंह ने बुधवार को कहा, ‘आगे की रणनीति की अगर बात करूं तो राजस्थान से लगे शाहजहांपुर बॉर्डर पर लगाए गए पुलिस बैरिकेड को किसानों ने तोड़ दिया है.
Just witnessed, Farmers have smashed #Shahjahanpur barricades ! #FarmerProtests pic.twitter.com/F8JoUDidx0
— Ramandeep Singh Mann (@ramanmann1974) December 31, 2020
उन्होंने कहा, ‘उन्होंने हमारी जिन मांगों को मानने की बात कही है वे तो सेकेंडरी मांगें थीं. हमारी मुख्य मांग को कृषि कानूनों को वापस लेने और एमएसपी कानून बनाने की थी.’
हालांकि, उन्होंने यह भी जोड़ा, ‘हमारी सभी मांगें माने जाने तक विभिन्न सीमाओं से हटने की कोई योजना नहीं है. हम अपनी मनवाकर ही वापस लौटेंगे.’
वहीं, ऑल इंडिया किसान संघर्ष कोऑर्डिनेशन कमेटी (एआईकेएससीसी) की सदस्य कविता कुरुगंती ने द वायर से बात करते हुए कहा, ‘30 दिसंबर को कम से कम सरकार ने किसान संगठनों को संशोधन की दिशा में ढकेलने की कोशिश नहीं की. उन्होंने कहा कि हम इतना मान गए हैं कि आप संशोधन नहीं चाहते हैं. उन्होंने कहा कि हम कानूनों को खत्म तो नहीं कर सकते हैं और संशोधन आपको मंजूर नहीं है तो हमें आप खत्म करने का कोई विकल्प बताइए.’
वे कहती हैं, ‘जिन दो बातों पर सहमति बनी है उन्हें किस रूप में लेना है यह वार्ता के सभी चरण पूरे होने के बाद तय किया जाएगा कि उन्हें लिखित में लेना है या अध्यादेश के रूप में लेना है. शायद अलग-अलग मुद्दों का अलग-अलग समाधान निकलकर आएगा.’
कुरुगंती आगे कहती हैं, ‘सभी बॉर्डरों पर अभी भी लोग बैठे रहेंगे. शाहजहांपुर बॉर्डर के बैरिकेड को तोड़कर आगे बढ़ने वाले लोग बहुत कम थे जबकि अधिकतर लोग वहीं बैठे रहेंगे.’
चार जनवरी की बातचीत से पहले शनिवार को आंदोलन का नेतृत्व करने वाले संयुक्त किसान मोर्चा ने 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस पर अपने ट्रैक्टरों और ट्रॉलियों के साथ दिल्ली में दाखिल होने और किसान परेड करने की चेतावनी दी है.
इससे पहले किसान यूनियनों ने शुक्रवार को कहा था कि अगर सरकार चार जनवरी को हमारे पक्ष में फैसला नहीं लेती है तो वे हरियाणा में सभी मॉल और पेट्रोल पंप बंद करेंगे.