बाज़ार नियामक सेबी ने पूर्ववर्ती रिलायंस पेट्रोलियम लिमिटेड की शेयर कारोबार में कथित गड़बड़ी को लेकर रिलायंस इंडस्ट्रीज और इसके चेयरमैन और एमडी मुकेश अंबानी के साथ-साथ दो अन्य इकाइयों पर 20 करोड़ रुपये और 10 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया है.
नई दिल्ली: बाजार नियामक सेबी ने नवंबर 2007 में पूर्ववर्ती रिलायंस पेट्रोलियम लि. (आरपीएल) के शेयर कारोबार में कथित गड़बड़ी को लेकर शुक्रवार को रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड, उसके चेयरमैन और प्रबंध निदेशक मुकेश अंबानी के साथ-साथ दो अन्य इकाइयों पर जुर्माना लगाया.
रिलायंस इंडस्ट्रीज (आरआईएल) पर 25 करोड़ रुपये और अंबानी पर 15 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया गया है. इसके अलावा नवी मुंबई सेज प्राइवेट लि. से 20 करोड़ रुपये और मुंबई सेज लि. को 10 करोड़ रुपये का जुर्माना देने को कहा गया है.
मामला नवंबर 2007 में आरपीएल शेयरों की नकद और वायदा खंड में खरीद और बिक्री से जुड़ा है. इससे पहले आरआईएल ने मार्च 2007 में आरपीएल में 4.1 प्रतिशत हिस्सेदारी बेचने का निर्णय किया था.
इस सूचीबद्ध अनुषंगी इकाई का बाद में 2009 में आरआईएल में विलय हो गया.
मामले की सुनवाई करने वाले सेबी अधिकारी बीजे दिलीप ने अपने 95 पन्नों के आदेश में कहा कि प्रतिभूतियों की मात्रा या कीमत में कोई भी गड़बड़ी हमेशा बाजार में निवेशकों के विश्वास को चोट पहुंचाती है और वे बाजार में हुई हेराफरी में सर्वाधिक प्रभावित होते हैं.
उन्होंने आदेश में कहा, ‘इस मामले में आम निवेशक इस बात से अवगत नहीं थे कि वायदा एवं विकल्प खंड में सौदे के पीछे की इकाई आरआईएल है. धोखाधड़ी वाले कारोबार से नकद और वायदा एवं विकल्प खंड दोनों में आरपीएल की प्रतिभूतियों की कीमतों पर असर पड़ा और अन्य निवेशकों के हितों को नुकसान पहुंचा.’
सुनवाई अधिकारी ने कहा कि कारोबार में गड़बडी से सही कीमत बाहर नहीं आती. उन्होंने कहा, ‘मेरा विचार है कि गड़बड़ी किए जाने वाले ऐसे कामों को सख्ती से निपटा जाना चाहिए ताकि पूंजी बाजार में इस प्रकार की गतिविधियों को रोका जा सके.’
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, अधिकारी ने आगे कहा, ‘आरआईएल के प्रबंध निदेशक होने के कारण मुकेश अंबानी आरआईएल की जोड़तोड़ गतिविधियों के लिए जिम्मेदार थे. मेरा विचार है कि सूचीबद्ध कंपनियों को व्यावसायिकता, पारदर्शिता और कॉरपोरेट प्रशासन की अच्छी प्रथाओं के उच्चतम मानकों का प्रदर्शन करना चाहिए, जो पूंजी बाजार में काम करने वाले निवेशकों के विश्वास को प्रेरित करता है. इस तरह के मानकों से भटकने का कोई भी प्रयास न केवल निवेशकों के विश्वास को खत्म करेगा बल्कि बाजारों की अखंडता को भी प्रभावित करेगा.’
आदेश में आगे कहा गया, ‘जोड़तोड़ वाले ट्रेड्स की परफॉरमेंस वैल्यू खोज प्रणाली को ही प्रभावित करती है. शेयर बाजार की निष्पक्षता, अखंडता और पारदर्शिता पर भी इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है.’
इससे पहले 6 नवंबर 2020 को सिक्योरिटीज अपीलेट ट्रिब्यूनल (एसएटी) ने आरआईएल की उस याचिका को खारिज कर दिया था जिसमें सेबी द्वारा 447 करोड़ रुपये वापस करने का आदेश दिए जाने को चुनौती दी गई थी.
24 मार्च, 2017 के आदेश में सेबी के पूर्ण कालिक सदस्य ने आरआईएल को 447.27 करोड़ रुपये वापस करने आदेश दिया था.
इसके साथ ही 29 नवंबर, 2007 से लेकर पेमेंट किए जाने की तारीख तक सालाना 12 फीसदी की दर से ब्याज भी चुकाने का आदेश दिया गया था.
इसके बाद आदेश जारी करने की तारीख से एक साल तक आरआईएल को एफ एंड ओ सेगमेंट (भविष्य में स्टॉक खरीदने के लिए समझौता) में शेयर की प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर खरीद-फरोख्त करने से प्रतिबंधित कर दिया था.
इस बारे में फिलहाल आरआईएल से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)