भीमा-कोरेगांव हिंसा के एक दिन बाद 2 जनवरी 2018 को एक दलित कार्यकर्ता ने श्री शिव प्रतिष्ठान हिंदुस्तान के अध्यक्ष संभाजी भिड़े और समस्त हिंदू अघाड़ी नेता मिलिंद एकबोटे के ख़िलाफ़ हिंसा को उकसाने का आरोप लगाते हुए केस दर्ज कराया था. महाराष्ट्र के गृहमंत्री ने कहा कि सरकार को चार्जशीट के लिए मंज़ूरी का प्रस्ताव मिला है, इस पर निर्णय लिया जाएगा.
मुंबई: 1 जनवरी, 2018 को भीमा-कोरेगांव में हुई हिंसा के संबंध में हिंदुत्ववादी नेताओं के खिलाफ चार्जशीट दाखिल करने के लिए पुलिस ने महाराष्ट्र सरकार से मंजूरी मांगी है. इन मामलों में हिंदुत्ववादी नेता मिलिंद एकबोटे और शंभाजी भिड़े को आरोपी बनाया गया है.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, शुक्रवार को पत्रकारों के सवालों का जवाब देते हुए राज्य के गृहमंत्री अनिल देशमुख ने कहा कि सरकार को इस मामले में चार्जशीट के लिए मंजूरी का प्रस्ताव मिला है और इस पर निर्णय लिया जाएगा.
बता दें कि 1 जनवरी, 2018 को भीमा-कोरेगांव युद्ध की 200वीं सालगिरह पर लाखों दलित पेरने गांव स्थित ‘जय स्तंभ’ पर इकट्ठा हुए थे, जिसमें मुख्य रूप से आंबेडरवादी महार समुदाय के दलित शामिल थे. इस दौरान हुई हिंसा में एक व्यक्ति की मौत हो गई थी, जबकि कई अन्य लोग घायल हो गए थे.
हिंसा के एक दिन बाद 2 जनवरी, 2018 को दलित राजनीतिक कार्यकर्ता अनीता सावले ने श्री शिव प्रतिष्ठान हिंदुस्तान के अध्यक्ष संभाजी भिड़े और समस्त हिंदू अघाड़ी नेता मिलिंद एकबोटे के खिलाफ पुणे सिटी पुलिस न्यायाधिकरण के तहत आने वाले पिंपरी पुलिस स्टेशन में एफआईआर दर्ज करवाई थी.
इसमें उन पर भीमा-कोरेगांव में हिंसा को उकसाने का आरोप लगाया गया था. दोनों के खिलाफ आईपीसी और अनुसूचित जाति एवं जनजाति (अत्याचार निवारक) अधिनियम की धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया है.
रिपोर्ट के अनुसार, इसके बाद मामले को पुणे ग्रामीण पुलिस के शिकारपुर पुलिस स्टेशन को स्थानांतरित कर दिया गया था, जिसके तहत भीमा-कोरेगांव हिंसा हुई थी. कार्यकर्ताओं सुषमा आंधरे और जया इंगले की शिकायतों के आधार पर पुलिस ने इस हिंसा के मामले में गणेश फड़तरे, योगेश गवहणे और अनिल दवे की पहचान आरोपियों के रूप में की थी.
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इसके बाद से अब तक पुलिस ने सबूतों के अभाव का दावा करते हुए भिड़े को कभी गिरफ्तार नहीं किया. वहीं, सुप्रीम कोर्ट द्वारा अग्रिम जमानत खारिज किए जाने के बाद 14 मार्च, 2018 को इस मामले में एकबोटे को गिरफ्तार किया गया था.
एकबोटे ने 30 दिसंबर, 2017 को पुणे शहर और इसके बाद भीमा-कोरेगांव के होटल सोनई में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित की थी. यह आरोप लगाया गया था कि एकबोटे द्वारा होटल की बैठक में दिया गया पंफलेट 1 जनवरी को हिंसा का कारण बनने की साजिश का हिस्सा था.
हालांकि, 4 अप्रैल, 2018 को एक अदालत ने एकबोटे को जमानत दे दी थी, लेकिन एकबोटे को रिहा नहीं किया गया क्योंकि 1 जनवरी को हुई हिंसा के दौरान घायल सहायक पुलिस इंस्पेक्टर नीतिन शिवाजी लाकड़े द्वारा दर्ज किए गए एक अन्य मामले में एकबोटे को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था. इस हिंसा में कुछ दलितों के साथ करीब 40 अन्य लोगों को आरोपी बनाया गया था.
कुछ दिन बाद 17 अप्रैल को एकबोटे को इस मामले में भी जमानत मिल गई और उन्हें जेल से रिहा कर दिया गया. इस मामले में पुलिस ने चार्जशीट दाखिल कर दिया था, लेकिन जिस मामले में भिड़े आरोपी थे उसमें पुलिस ने अभी तक चार्जशीट दाखिल नहीं की है.
एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने कहा, ‘कुछ कानूनी प्रावधानों के मामले में अदालत में चार्जशीट दायर करने के लिए सरकार से अभियोजन स्वीकृति की आवश्यकता होती है. एकबोटे के खिलाफ एक मामले में चार्जशीट दायर की गई है. एक अन्य मामले में चार्जशीट प्रस्तुत करने के लिए मंजूरी की मांग करने वाला अभियोजन पिछले कुछ महीनों से सरकार के पास लंबित है.’