राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र परिवहन निगम द्वारा दिल्ली-मेरठ रैपिड रेल ट्रांसपोर्ट सिस्टम यानी आरआरटीएस परियोजना के तहत न्यू अशोक नगर से साहिबाबाद तक 5.6 किलोमीटर का भूमिगत मार्ग बनाया जाना है, जिसके निर्माण के लिए चीनी कंपनी शंघाई टनल इंजीनियरिंग कंपनी लिमिटेड के साथ क़रार किया गया है.
नई दिल्ली: राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र परिवहन निगम (एनसीआरटीसी) ने दिल्ली-मेरठ रैपिड रेल ट्रांसपोर्ट सिस्टम (आरआरटीएस) परियोजना के तहत न्यू अशोक नगर से साहिबाबाद तक 5.6 किलोमीटर के भूमिगत मार्ग के निर्माण का ठेका एक चीनी कंपनी शंघाई टनल इंजीनियरिंग कंपनी लिमिटेड को दिया है.
देश की पहली क्षेत्रीय आरआरटीएस को क्रियान्वित करने वाली एनसीआरटीसी ने कहा कि निर्धारित प्रक्रिया और दिशानिर्देशों के तहत यह ठेका दिया गया है.
एनसीआरटीसी के एक प्रवक्ता ने बताया, ‘बहुपक्षीय एजेंसियों द्वारा वित्त पोषित बोलियों के लिए विभिन्न स्तरों पर स्वीकृति लेनी होती है. निर्धारित प्रक्रिया और दिशानिर्देशों के बाद ही यह ठेका दिया गया है.’
प्रवक्ता ने कहा, ‘अब, 82 किलोमीटर लंबे दिल्ली-गाजियाबाद-मेरठ गलियारे के सभी सिविल काम के लिए निविदाएं दे दी गई है और समय पर परियोजना को चालू करने के लिए निर्माण पूरे जोरों पर चल रहा है.’
दिल्ली-गाजियाबाद-मेरठ के बीच 82 किलोमीटर लंबे आरआरटीएस कॉरिडोर को एशियाई विकास बैंक (एडीबी) द्वारा वित्त पोषित किया जा रहा है. इसमें खरीद प्रक्रिया बैंक और सरकार के दिशानिर्देशों के तहत संचालित हो रही है.
एडीबी की खरीद दिशानिर्देशों के अनुसार, बैंक के सभी सदस्य देशों के विक्रेता बिना किसी भेदभाव के बोली प्रक्रिया में भाग लेने के लिए पात्र हैं.
समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार, एनसीआरटीसी ने नौ नवंबर, 2019 को न्यू अशोक नगर से दिल्ली गाजियाबाद मेरठ आरआरटीएस गलियारे के साहिबाबाद तक सुरंग के निर्माण के लिए बोलियां आमंत्रित की थीं, जहां पांच कंपनियों ने तकनीकी बोलियां लगाई थीं और तकनीकी मूल्यांकन में पांचों ही चुने गए थे.
अंतिम बोली एडीबी के तकनीकी मूल्यांकन में एनओसी मिलने के बाद खोली गई थीं. इन पांच कंपनियों में से शंघाई टनल इंजीनियरिंग कंपनी लिमिटेड सभी मानकों पर खरी पाई गयी और इसके साथ करार किया गया.
बीते साल सितंबर में केंद्रीय आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय द्वारा आरआरटीएस ट्रेन का डिज़ाइन पहली बार साझा किया गया था, जो दिल्ली के प्रसिद्ध लोटस टेम्पल से प्रेरित है. बताया गया था कि दिल्ली-गाजियाबाद-मेरठ कॉरिडोर पर इसकी अधिकतम गति 180 किलोमीटर प्रति घंटा है.
मंत्रालय के अनुसार, इन आरआरटीएस ट्रेनों की बाहरी संरचना स्टेनलेस स्टील की होगी और ये बेहद हल्की और पूरी तरह एयर कंडीशंड होंगी.
यह देश में बनने वाला पहला आरआरटीएस कॉरिडोर है. अधिकारियों का कहना है कि वर्तमान में सड़क मार्ग से दिल्ली से मेरठ पहुंचने वाला तीन से चार घंटे का समय इस ट्रेन के आने से घटकर एक घंटे से भी कम हो जाएगा.
इस प्रोटोटाइप के 2022 तक पूरा होने की संभावना है, जिसे विस्तृत ट्रायल्स के बाद जनता के लिए खोला जाएगा.
साहिबाबाद से दुहाई तक के 17 किलोमीटर लंबे प्रायोरिटी कॉरिडोर 2023 से काम करना शुरू करेगा और 2025 तक पूरे कॉरिडोर के पूरा होने की संभावना है.
लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर भारत और चीन में तनाव के बीच दिल्ली-मेरठ आरआरटीएस परियोजना की 5.6 किलोमीटर सुरंग के निर्माण के लिए एसटीईसी द्वारा सबसे कम बोली लगाने वाले के रूप में उभरने के बाद पिछले साल जून में विवाद पैदा हो गया था.
मालूम हो कि सीमाई विवाद को लेकर 2020 के जून महीने में चीनी सैनिकों द्वारा हमले में भारत के 20 जवान शहीद हो गए थे. हालांकि मई महीने से ही भारत और चीन की सेनाएं पूर्वी लद्दाख में एक दूसरे के आमने-सामने बनी हुई थीं.
पांच मई को गश्त के दौरान भारत और चीन के बीच लद्दाख के पैंगोंग झील के उत्तरी किनारे पर झड़प हुई थी. विवाद बढ़ने के बाद 15 जून को गलवान घाटी ने चीनी सेनाओं ने हमला किया था, जिसके कारण भारत के कम से कम 20 जवान शहीद हो गए.
चीनी पक्ष के सैनिक भी हताहत हुए थे लेकिन इस बारे में चीन द्वारा अब तक कोई ब्यौरा उपलब्ध नहीं कराया गया. इसी के बाद देश में बड़े पैमाने पर चीन की कंपनियों और उत्पादों के बहिष्कार की मांग की जा रही है
एलएसी पर चीनी सैनिकों के साथ तनावपूर्ण स्थिति के बीच भारत सरकार ने जून महीने में ही टिकटॉक, यूसी ब्राउजर समेत 59 चीनी मोबाइल ऐप पर प्रतिबंध लगा दिया.
इसके बाद जुलाई में सूचना और प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने 47 और ऐप्स पर प्रतिबंध लगाया, जो जून में प्रतिबंधित किए गए 59 चीनी ऐप्स के क्लोन (प्रतिरूप) या इसी के प्रकार थे.
इसी दौरान भारतीय रेल ने 417 किमी लंबी कानपुर-दीनदयाल उपाध्याय (डीडीयू) के एक प्रोजेक्ट के लिए लिए चीनी कंपनी के साथ हुए 417 करोड़ रुपये के करार को रद्द कर दिया था. करार वापस लिए जाने से पहले ही चीनी इंजीनियरिंग कंपनी अदालत चली गई थी.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)