सुप्रीम कोर्ट ने वन्यजीवों के शिकारियों और तस्करों द्वारा फॉरेस्ट रेंजरों पर हमले की घटनाओं पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि कई राज्यों में वनकर्मियों को समुचित सुविधाएं ही नहीं मिली हुई हैं, ऐसे में वे किस तरह क़ानून लागू करवा सकते हैं और कैसे पर्यावरण की रक्षा कर सकते हैं.
नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने वन्यजीवों के शिकारियों और तस्करों द्वारा फॉरेस्ट रेंजरों पर हमले की घटनाओं पर शुक्रवार को चिंता व्यक्त की और कहा कि वह इन अधिकारियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए उन्हें हथियार, बुलेट प्रूफ जैकेट और हेलमेट उपलब्ध कराने के बारे में आदेश पारित कर सकता है.
उच्चतम न्यायालय ने कहा कि महाराष्ट्र में वनकर्मियों पास अपनी सुरक्षा करने के लिए सिर्फ लाठी है, जबकि कर्नाटक में वे चप्पल पहनकर घूमते देखे जा सकते हैं, ऐसे में वे भारी हथियारों से लैस शिकारियों से कानून एवं पर्यावरण की रक्षा कैसे करेंगे.
शीर्ष न्यायालय ने हैरानी जताई कि असम में वन प्रहरी हथियारों से बखूबी लैस हैं, जबकि अन्य राज्यों में उनके पास पर्याप्त पोशाक भी नहीं है.
न्यायालय ने कहा कि एक खास श्रेणी से ऊपर के अधिकारियों को शिकारियों से उनका बचाव करने के लिए हथियार, बुलेट प्रूफ जैकेट और हेलमेट मुहैया करने का आदेश जारी किया जा सकता है.
प्रधान न्यायाधीश एसए बोबडे और जस्टिस एएस बोपन्ना तथा जस्टिस वी. रामसुब्रमण्यन की पीठ 25 साल पुरानी टीएन गोदावर्मन तिरुमुल्पाद की जनहित याचिका में दाखिल एक अंतरिम आवेदन पर विचार कर रही थी.
पीठ ने कहा कि वन अधिकारियों का मुकाबला बड़ी ताकतों से है और तस्करों द्वारा लाखों डॉलर हड़पे जा रहे हैं.
पीठ ने पर्यावरण एवं वन मंत्रालय की ओर से पेश हुए सॉलीसीटर जनरल तुषार मेहता, न्यायमित्र एडीएन राव और एक गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान से उन उपायों के बारे में एक संयुक्त दलील सौंपने को कहा, जो वन संरक्षण और वन अधिकारियों तथा वन कर्मियों की जान की सुरक्षा के लिए अपनाए जा सकते हैं.
पीठ ने कहा, ‘हमारा मानना है कि स्थिति गंभीर है और हम यह नहीं समझ पा रहे हैं कि ये वन अधिकारी और वन कर्मी कैसे पर्यावरण एवं वन की सुरक्षा कर पाएंगे, जहां आमतौर पर विस्तृत क्षेत्र गैर-आबादी वाली है और शिकारी अपनी नापाक गतिविधियों को अंजाम देने के लिए इस स्थिति का फायदा उठाते हैं.’
न्यायालय ने कहा कि शहर में पुलिस संकट के समय में मदद मांग सकती है, लेकिन वन अधिकारी शिकारियों के हमला कर देने से संकट पैदा होने पर मदद तक नहीं मांग सकते. इसलिए इसके लिए कुछ इंतजाम होना चाहिए.
सीजेआई ने एक वन क्षेत्र की अपनी हालिया यात्रा को याद करते हुए कहा, ‘पिछले महीने मैं महाराष्ट्र के एक जंगल में था और देखा कि वन अधिकारी सशस्त्र तक नहीं हैं. जब उन पर हमला होगा तो वे अपनी सुरक्षा कैसे कर पाएंगे? सॉलीसीटर जनरल, हम चाहते हैं कि आप संभावनाएं तलाशें. इन अपराधों पर रोक लगाने की जरूरत है.’
पीठ ने राव से पूछा कि ऐसी समस्या क्यों है कि कुछ राज्यों में वन अधिकारी हथियारों से लैस हैं जबकि अन्य में उनके पास पर्याप्त पोशाक तक नहीं है.
राव ने कहा कि कुछ राज्यों द्वारा कोष का उपयोग न करने के चलते वन अधिकारियों के पास पर्याप्त बुनियादी चीजें और सुरक्षा उपकरण नहीं हैं.
पीठ ने सुझाव दिया कि लकड़ी की तस्करी के जरिये तस्करों द्वारा मनी लॉन्ड्रिंग करने के अपराध से निपटने के लिए प्रवर्तन निदेशालय की एक अलग वन्य जीव शाखा होनी चाहिए.
पीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान के इस कथन का संज्ञान लिया कि वन अधिकारियों पर होने वाले हमलों में भारत की हिस्सेदारी 38 प्रतिशत है.
उन्होंने राजस्थान, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में वन अधिकारियों पर हमले की घटनाओं की ओर पीठ का ध्यान आकर्षित किया.
दीवान ने कहा, ‘फॉरेस्ट रेंजरों पर बर्बरतापूर्ण हमले किए जा हैं. यही नहीं, ये लोग इन अधिकारियों के खिलाफ भी मामले दर्ज करा रहे हैं.’
पीठ ने कहा, ‘हम जब असम जाते हैं, तो (देखते हैं) उन्हें हथियार दिए गए हैं जबकि महाराष्ट्र में उनके पास सिर्फ ‘लाठी’ होती है. कर्नाटक में वन अधिकारी चप्पल पहनकर घूमते देखे जा सकते हैं.’
न्यायालय ने कहा, ‘हम चाहते हैं कि एसजी अगली तारीख पर इस बारे में एक बयान दें कि कर्मियों को हथियार दिया जा रहा है.’
पीठ ने अपने आदेश में इस बात को भी दर्ज किया कि विभिन्न राज्यों में फॉरेस्ट रेंजरों पर हमले किए जा रहे हैं और उन्हें अपने कर्तव्य से विमुख करने के लिए उनके खिलाफ झूठे मामले दर्ज कराए जा रहे हैं.
पीठ ने कहा, ‘यह कल्पना करना भी मुश्किल है कि इतने व्यापक भूक्षेत्र में गैरकानूनी गतिविधियां जारी रखने वाले इन शिकारियों से किस तरह वन अधिकारियों की रक्षा की जाए. घातक हथियारों से लैस शिकारियों की तुलना में निहत्थे वन अधिकारियों द्वारा किसी भी कानून को लागू करा पाना बहुत ही मुश्किल है.
पीठ ने इस मामले की सुनवाई चार सप्ताह के लिए स्थगित करते हुए कहा कि संबंधित अधिवक्ताओं के वक्तव्यों को ध्यान में रखते हुए उचित आदेश पारित किया जाएगा.