सुप्रीम कोर्ट द्वारा नए कृषि क़ानूनों पर रोक लगाते हुए किसानों से बात करने के लिए समिति बनाने के निर्णय पर किसान संगठनों ने कहा कि वे इस समिति को मान्यता नहीं देते. जब तक क़ानून वापस नहीं लिए जाते तब तक वे अपना आंदोलन ख़त्म नहीं करेंगे.
नई दिल्ली: नए कृषि कानूनों का विरोध कर रहे किसान संगठनों और किसान नेताओं ने तीनों कृषि कानूनों पर रोक लगाने के उच्चतम न्यायालय के फैसले का मंगलवार को स्वागत किया, लेकिन कहा कि जब तक कानून वापस नहीं लिए जाते तब तक वे अपना आंदोलन खत्म नहीं करेंगे.
संगठनों ने शीर्ष अदालत द्वारा नियुक्त समिति को मंगलवार को मान्यता नहीं दी और कहा कि वे समिति के समक्ष पेश नहीं होंगे और अपना आंदोलन जारी रखेंगे.
सिंघु बॉर्डर पर संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए किसान नेताओं ने दावा किया कि शीर्ष अदालत द्वारा गठित समिति के सदस्य ‘सरकार समर्थक’ हैं.
उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को अगले आदेश तक विवादास्पद कृषि कानूनों को लागू करने पर रोक लगा दी और केंद्र तथा दिल्ली की सीमाओं पर कानून को लेकर आंदोलनरत किसान संगठनों के बीच जारी गतिरोध को समाप्त करने के लिए चार सदस्यीय समिति का गठन किया.
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने तीन कृषि कानूनों को लेकर किसानों के विरोध प्रदर्शन से निबटने के तरीके पर सोमवार को केंद्र को आड़े हाथ लिया और कहा कि किसानों के साथ उसकी बातचीत के तरीके से वह ‘बहुत निराश’ है.
We had said yesterday itself that we won't appear before any such committee. Our agitation will go on as usual. All the members of this Committee are pro-govt and had been justifying the laws of the Government: Balbir Singh Rajewal, Bhartiya Kisan Union (R) https://t.co/KE9vMGUKjl pic.twitter.com/n2FFh5oj9k
— ANI (@ANI) January 12, 2021
मंगलवार को कोर्ट के आदेश के बाद किसान नेता बलबीर सिंह राजेवाल ने एक संवाददाता सम्मेलन में कहा, ‘उच्चतम न्यायालय की तरफ से गठित समिति के सदस्य विश्वसनीय नहीं हैं, क्योंकि वे लिखते रहे हैं कि कृषि कानून किसानों के हित में है. हम अपना आंदोलन जारी रखेंगे.’
किसान नेता ने कहा कि संगठनों ने कभी मांग नहीं की कि उच्चतम न्यायालय कानून पर जारी गतिरोध को समाप्त करने के लिए समिति का गठन करे और आरोप लगाया कि इसके पीछे केंद्र सरकार का हाथ है.
उन्होंने कहा, ‘हम सिद्धांत तौर पर समिति के खिलाफ हैं. प्रदर्शन से ध्यान भटकाने के लिए यह सरकार का तरीका है.’
किसान नेताओं ने कहा कि उच्चतम न्यायालय स्वत: संज्ञान लेकर कृषि कानूनों को वापस ले सकता है.
एक अन्य किसान नेता दर्शन सिंह ने कहा कि वे किसी समिति के समक्ष पेश नहीं होंगे. उन्होंने कहा कि संसद को मुद्दे पर चर्चा करनी चाहिए और इसका समाधान करना चाहिए.
उन्होंने कहा, ‘हम कोई बाहरी समिति नहीं चाहते हैं.’ बहरहाल, किसान नेताओं ने कहा कि वे 15 जनवरी को सरकार के साथ होने वाली बैठक में शामिल होंगे.
Bill wapasi nahi, ghar wapasi nahi (Won't return home until the bill is taken back), says Rakesh Tikait, Spokesperson, Bhartiya Kisan Union on being asked about Supreme Court's order on three Farm Laws https://t.co/O6Stqcqg3f pic.twitter.com/E0ro7e9FMW
— ANI (@ANI) January 12, 2021
भाकियू नेता राकेश टिकैत ने भी स्पष्ट कहा कि बिल वापसी नहीं तो घर वापसी नहीं.
गौरतलब है कि कोर्ट की तरफ से बनाई गई चार सदस्यों की समिति में भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष भूपिंदर सिंह मान, शेतकारी संगठन (महाराष्ट्र) के अध्यक्ष अनिल घानवत, अंतरराष्ट्रीय खाद्य नीति शोध संस्थान दक्षिण एशिया के निदेशक प्रमोद कुमार जोशी और कृषि अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी शामिल हैं.
इन सभी सदस्यों को लेकर हो रही आलोचना का बिंदु इन सभी के द्वारा नए कृषि कानूनों का समर्थन किया जाना है.
‘समिति के चारों सदस्य ‘काले कानूनों के पक्षधर’, इससे किसानों को न्याय नहीं मिल सकता’
कांग्रेस समेत कई विपक्षी दलों ने केंद्रीय कृषि कानूनों को लेकर चल रहे गतिरोध को खत्म करने के मकसद से समिति के सदस्यों को लेकर सवाल खड़े किए और इन तीनों कानूनों को खत्म करने की मांग दोहराई.
कांग्रेस ने कृषि कानूनों को लेकर चल रहे गतिरोध को खत्म करने के मकसद से सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित की गई समिति के चारों सदस्यों को ‘काले कृषि कानूनों का पक्षधर’ करार दिया और दावा किया कि इन लोगों की मौजूदगी वाली समिति से किसानों को न्याय नहीं मिल सकता.
साथ ही, कई किसान नेताओं ने कानूनों के अमल पर न्यायालय द्वारा रोक लगाए जाने का स्वागत भी किया.
कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने कहा कि क्या कृषि-विरोधी क़ानूनों का लिखित समर्थन करने वाले व्यक्तियों से न्याय की उम्मीद की जा सकती है?
क्या कृषि-विरोधी क़ानूनों का लिखित समर्थन करने वाले व्यक्तियों से न्याय की उम्मीद की जा सकती है?
ये संघर्ष किसान-मज़दूर विरोधी क़ानूनों के ख़त्म होने तक जारी रहेगा।
जय जवान, जय किसान!
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) January 12, 2021
वहीं, कांग्रेस ने समिति के चारों सदस्यों को ‘काले कृषि कानूनों का पक्षधर’ करार दिया और दावा किया कि इन लोगों की मौजूदगी वाली समिति से किसानों को न्याय नहीं मिल सकता.
पार्टी के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने यह भी कहा कि इस मामले का एकमात्र समाधान तीनों कानूनों का रद्द करना है.
उन्होंने आगे कहा, ‘कमेटी के जो चारों सदस्य हैं वह पहले से ही मोदी जी के साथ खड़े हैं, काले कानूनों के साथ खड़े हैं. खेत और खलिहान की मोदी जी की साजिश के साथ खड़े हैं तो यह कमेटी किसानों से न्याय कैसे करेगी? या कैसे कर सकती है? और इसका नतीजा क्या निकलेगा.’
किसानों को इस कमेटी से न्याय नहीं मिल सकता। जो पहले से ही मोदी जी और काले कानूनों के साथ खड़े हैं, MSP खत्म करवाने के साथ खड़े हैं। इस पर हर व्यक्ति को सोचना चाहिए और अंतरमंथन करने की जरुरत है : श्री @rssurjewala
— Congress (@INCIndia) January 12, 2021
इस बीच अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति (आईकेएससीसी) की ओर से जारी बयान में कहा गया, ‘यह स्पष्ट है कि कई शक्तियों द्वारा समिति के गठन को लेकर भी न्यायालय को गुमराह किया जा रहा है. समिति में वो लोग शामिल हैं जिनके बारे में पता है कि उन्होंने तीनों कानूनों का समर्थन किया और इसकी खुलकर पैरवी भी की थी.’
किसान नेताओं ने यह भी कहा है कि वे समिति की किसी भी गतिविधि में शामिल होने के इच्छुक नहीं है, लेकिन इस बारे में किसान संगठनों का समूह ‘संयुक्त किसान मोर्चा’ कोई औपचारिक फैसला करेगा.
करीब 40 आंदोलनकारी किसान संगठनों का प्रतिनिधित्व करने वाले संयुक्त किसान मोर्चा ने अगले कदम पर विचार करने के लिए एक बैठक बुलाई है.
किसान नेताओं ने कहा कि उच्चतम न्यायालय की तरफ से नियुक्त किसी भी समिति के समक्ष वे किसी भी कार्यवाही में हिस्सा नहीं लेना चाहते हैं लेकिन इस बारे में औपचारिक निर्णय मोर्चा लेगा.
मोर्चा के वरिष्ठ नेता अभिमन्यु कोहाड़ ने कहा, ‘कृषि कानूनों पर रोक लगाने के अदालत के आदेश का हम स्वागत करते हैं लेकिन हम चाहते हैं कि कानून पूरी तरह वापस लिए जाएं, जो हमारी मुख्य मांग है.’
एक अन्य किसान नेता हरिंदर लोखवाल ने कहा कि जब तक विवादास्पद कृषि कानून वापस नहीं लिए जाते हैं, तब तक प्रदर्शन जारी रहेगा.
अखिल भारतीय किसान सभा (पंजाब) के उपाध्यक्ष लखबीर सिंह ने कहा, ‘समिति के विचार पर हमें विश्वास नहीं है और जब सरकार ने समिति के गठन का सुझाव दिया था तभी से हम यह कहते रहे हैं. लेकिन इस बार उच्चतम न्यायालय ने ऐसा कहा है और हम इस समिति के कामकाज को देखेंगे.’
इससे पहले मोर्चा ने सोमवार को बयान जारी कर कहा कि संगठन शीर्ष अदालत की तरफ से नियुक्त समिति की किसी भी कार्यवाही में हिस्सा नहीं लेना चाहते हैं.
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने भी समिति के सदस्यों को लेकर सवाल किया.
उन्होंने कहा, ‘उच्चतम न्यायालय द्वारा किसानों के विरोध पर व्यक्त की गई चिंता एक जिद्दी सरकार द्वारा पैदा स्थिति को देखते हुए उचित और स्वागत योग्य है. समाधान निकालने में सहायता के लिए समिति बनाने का निर्णय सुविचारित है. हालांकि, चार सदस्यीय समिति की रचना पेचीदा और विरोधाभासी संकेत देती है.’
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा किसानों के विरोध पर व्यक्त की गई चिंता, एक जिद्दी सरकार द्वारा बनाई गई स्थिति पर उचित और स्वागत योग्य है।
समाधान खोजने में सहायता के लिए समिति बनाने का निर्णय सुविचारित है।
हालाँकि, चार सदस्य समिति की रचना पेचीदा और विरोधाभासी संकेत भेजती है।— P. Chidambaram (@PChidambaram_IN) January 12, 2021
वहीं, केरल के कृषि मंत्री वीएस सुनील कुमार ने भी शीर्ष अदालत के निर्णय का स्वागत किया, लेकिन समिति के सदस्यों के को लेकर संदेह जाहिर किया है.
Prima Facie, I welcome the verdict of the Supreme Court but I doubt the committee formed by the apex court because all its members are supporters of farm laws: Kerala Agriculture Minister VS Sunil Kumar pic.twitter.com/50ums1bMqD
— ANI (@ANI) January 12, 2021
हालांकि इस बीच राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष शरद पवार ने तीन नए कृषि कानूनों के अमल पर रोक लगाए जाने और सरकार एवं किसान संगठनों के बीच जारी गतिरोध को हल करने के वास्ते चार सदस्यीय समिति गठित किए जाने के उच्चतम न्यायालय के आदेश का स्वागत किया है.
पवार ने ट्वीट कर कहा, ‘तीन कृषि कानूनों के अमल पर रोक लगाया जाने और मुद्दे को हल करने के वास्ते चार सदस्यीय समिति गठित किए जाने का उच्चतम न्यायालय का आदेश स्वागत योग्य है.’
द्रमुक नेता एमके स्टालिन ने भी इस निर्णय का स्वागत किया और कहा कि यह आंदोलनकारी किसानों की जीत है. उन्होंने कहा, ‘मैं सरकार फिर आग्रह करता हूं कि संसद के आगामी सत्र में इन कानूनों को रद्द किया जाए.’
गौरतलब है कि हरियाणा और पंजाब सहित देश के विभिन्न हिस्सों के किसान पिछले वर्ष 28 नवंबर से दिल्ली की अलग-अलग सीमाओं पर प्रदर्शन कर रहे हैं और तीनों कानूनों को वापस लेने तथा अपनी फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की वैधानिक गारंटी की मांग कर रहे हैं.
गौरतलब है कि इससे पहले केंद्र और किसान संगठनों के बीच हुई आठवें दौर की बातचीत में भी कोई समाधान निकलता नजर नहीं आया क्योंकि केंद्र ने विवादास्पद कानून निरस्त करने से इनकार कर दिया था जबकि किसान नेताओं ने कहा था कि वे अंतिम सांस तक लड़ाई लड़ने के लिए तैयार हैं और उनकी ‘घर वापसी’ सिर्फ कानून वापसी के बाद होगी.
केंद्र और किसान नेताओं के बीच 15 जनवरी को अगली बैठक प्रस्तावित है.
मालूम हो कि केंद्र सरकार द्वारा लगाए गए कृषि से संबंधित तीन विधेयकों– किसान उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सुविधा) विधेयक, 2020, किसान (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) मूल्य आश्वासन अनुबंध एवं कृषि सेवाएं विधेयक, 2020 और आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक, 2020- के विरोध में किसान प्रदर्शन कर रहे हैं.
किसानों को इस बात का भय है कि सरकार इन अध्यादेशों के जरिये न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) दिलाने की स्थापित व्यवस्था को खत्म कर रही है और यदि इसे लागू किया जाता है तो किसानों को व्यापारियों के रहम पर जीना पड़ेगा.
दूसरी ओर केंद्र में भाजपा की अगुवाई वाली मोदी सरकार ने बार-बार इससे इनकार किया है. सरकार इन अध्यादेशों को ‘ऐतिहासिक कृषि सुधार’ का नाम दे रही है. उसका कहना है कि वे कृषि उपजों की बिक्री के लिए एक वैकल्पिक व्यवस्था बना रहे हैं.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)