आरबीआई की वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर वृहत आर्थिक माहौल और ख़राब होता है और गंभीर दबाव की स्थिति उत्पन्न होती है, तो सकल एनपीए अनुपात 14.8 प्रतिशत तक जा सकता है. सामान्य स्थिति में यह 13.5 प्रतिशत पर पहुंचेगा, जो 23 साल का उच्चतम स्तर होगा.
मुंबई: बैंकों का सकल एनपीए (गैर-निष्पादित परिसंपत्ति) यानी फंसा कर्ज तुलनात्मक आधार पर सितंबर 2021 तक बढ़कर 13.5 प्रतिशत पर पहुंच सकता है जो 23 साल को उच्चतम स्तर होगा.
पिछले साल सितंबर में बैंकों का सकल एनपीए 7.5 प्रतिशत था. भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट (एफएसआर) में यह जानकारी दी गई है.
रिपोर्ट के अनुसार, अगर वृहत आर्थिक माहौल और खराब होता है और गंभीर दबाव की स्थिति उत्पन्न होती है तो सकल एनपीए अनुपात 14.8 प्रतिशत तक जा सकता है.
द मिंट के अनुसार, ऐसी परिस्थिति पैदा होने पर बैंकों का एनपीए 25 साल के उच्चतम स्तर पर पहुंच सकता है. इससे पहले बैंकों ने एनपीए को लेकर ऐसा दबाव 1996-97 में महसूस किया था, जब बैंकों का एनपीए 15.7 फीसदी पर पहुंच गया था.
वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट के अनुसार, ‘दबाव की स्थिति के विश्लेषण से यह संकेत मिलता है कि सभी अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों का सकल एनपीए तुलनात्मक आधार पर सितंबर 2020 में 7.5 प्रतिशत से बढ़कर सितंबर 2021 तक 13.5 प्रतिशत हो सकता है.’
बैंक समूह में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का सकल एनपीए अनुपात सितंबर 2020 में 9.7 प्रतिशत था जो सितंबर 2021 में 16.2 प्रतिशत पर पहुंच सकता है.
वहीं निजी क्षेत्र और विदेशी बैंकों का सकल एनपीए अनुपात 4.6 प्रतिशत और 2.5 प्रतिशत से बढ़कर क्रमश: 7.9 प्रतिशत और 5.4 प्रतिशत हो सकता है.
वृहद आर्थिक माहौल और बिगड़ने या दबाव बढ़ने पर सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों, निजी बैंकों और विदेशी बैंकों का सकल एनपीए सितंबर 2021 तक बढ़कर क्रमश: 17.6 प्रतिशत, 8.8 प्रतिशत और 6.5 प्रतिशत हो सकता है.
इसमें कहा गया है, ‘सकल एनपीए अनुपात का यह अनुमान बैंक के पोर्टफोलियो के मूल्य में कमी का संकेत है.’
रिपोर्ट के अनुसार, खास बात यह है कि दबाव की स्थिति का यह विश्लेषण जुलाई, 2020 में पेश किए गए आरबीआई के पिछले एफएसआर से अलग नहीं है.
अपनी उस रिपोर्ट में आरबीआई ने कहा था कि बैंकों के सकल एनपीए का अनुपात मार्च, 2021 तक 12.5 फीसदी तक बढ़ सकता है और बेहद खराब हालात में यह 14.7 फीसदी तक जा सकता है.
हालिया एफएसआर रिपोर्ट में कहा गया है, ‘सकल एनपीए के ये अनुमान बैंकों के पोर्टफोलियो में निहित आर्थिक दुर्बलता का संकेत देते हैं, जो पूंजी नियोजन को प्रभावित करते हैं.’
बता दें कि नवंबर, 2020 में ही रघुराम राजन सहित आरबीआई के चार पूर्व गवर्नरों ने कोविड-19 के कारण पैदा हुए आर्थिक संकट से उबरने में सरकारी बैंकों के सामने सबसे बड़ी समस्या के रूप में एनपीए को ही बताया था और कहा था कि सरकार को उनकी मदद करनी चाहिए.
रघुरान राजन ने कहा था, ‘बैड लोन यानी कि एनपीए (नॉन-परफॉर्मिंग एसेट्स या गैर-निष्पादित परिसंपत्ति) की समस्या से जूझ रहे सरकारी बैंक महामारी के चलते बर्बाद हुई अर्थव्यवस्था को उबारने की दिशा में एक बड़ा संकट होंगे, जब तक कि सरकार इनकी मदद नहीं करती है.’
वहीं, वाईवी रेड्डी ने कहा था कि बैड लोन न सिर्फ समस्या है बल्कि अन्य समस्याओं का प्रभाव है.
इसी तरह डी. सुब्बाराव एनपीए को एक बहुत बड़ी और वास्तविक समस्या के रूप में देखा था. सी. रंगराजन ने नोटबंदी जैसे नीतिगत फैसलों को इस समस्या में बढ़ोतरी का जिम्मेदार ठहराया था.
आरबीआई ने सरकार के ऊंचे कर्ज पर जताई चिंता
आरबीआई ने सोमवार को कहा कि महामारी के कारण बढ़ी सरकारी उधारी ने इसकी निरंतरता को लेकर चिंताएं बढ़ा दी है. आरबीआई ने कहा कि इससे निजी क्षेत्र के लिए संसाधनों की कमी हो जाने की आशंका है.
आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा कि राजस्व में कमी के बीच अधिक उधारी ने बैंकों पर अतिरिक्त दबाव भी डाला है, जो महामारी की वजह से गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (एनपीए) में वृद्धि जैसी समस्याओं का सामना कर रहे हैं.
रिजर्व बैंक ने छमाही वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट (एफएसआर) में कहा, ‘सरकारी राजस्व पर प्रतिकूल प्रभाव और इसके चलते आर्थिक वृद्धि को गति देने के लिए संप्रभु उधारी बढ़ रही है. यह अब ऐसे स्तर पर पहुंच गया है, जो इस बात की चिंता पैदा करने लगा है कि वित्तपोषण की मात्रा और लागत दोनों संदर्भों में निजी क्षेत्र इससे बाहर न हो जाए.’
उल्लेखनीय है कि विशेषज्ञ पहले भी सरकारी कर्ज और सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के बढ़ते अनुपात पर चिंता जता चुके हैं.
रिजर्व बैंक ने रिपोर्ट में कहा कि एक अंतराल के बाद बैंकों की बैलेंस शीट पर दबाव दिखने लगेगा. उसने कहा कि कॉरपोरेट वित्त पोषण को नीतिगत उपायों और महामारी के चलते किस्तों के भुगतान से दी गई छूट के माध्यम से सहारा दिया गया.
रिपोर्ट में कहा गया, ‘दबाव एक अंतराल के बाद दिखने लगेगा. इसका बैंकिंग क्षेत्र पर प्रतिकूल असर होगा, क्योंकि कॉरपोरेट और बैंकिंग क्षेत्र की समस्याएं आपस में जुड़ी हुई हैं.’
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)