नासिक और नंदूरबार ज़िलों की उमराने तथा खोंडामली की ग्राम पंचायतों के सरपंच और सदस्य पदों के लिए सार्वजनिक रूप से बोली लगने की ख़बरें थीं. चुनाव आयोग ने चुनाव पर्यवेक्षकों और ज़िला प्रशासन से मिली रिपोर्ट तथा दस्तावेजों व वीडियो देखने के बाद समूची चुनाव प्रक्रिया को रद्द कर दिया.
मुंबई: राज्य निर्वाचन आयोग ने महाराष्ट्र के नासिक और नंदूरबार जिलों के दो गांवों में पंचायत चुनाव रद्द कर दिया है.
आयोग ने यह कदम सरपंच और सदस्य के पदों के लिए सार्वजनिक रूप से बोली लगने के साक्ष्य सामने आने के बाद उठाया है.
राज्य निर्वाचन आयुक्त यूपीएस मदान ने 15 जनवरी को होने वाले ग्राम पंचायत चुनाव से दो दिन पहले यह घोषणा की है.
आधिकारिक बयान के अनुसार, नासिक और नंदूरबार जिलों की क्रमश: उमराने तथा खोंडामली की ग्राम पंचायतों के सरपंच और सदस्य पदों के लिए सार्वजनिक रूप से बोली लगने की खबरें थीं.
बयान में कहा गया, ‘आयोग ने जिलाधिकारियों, चुनाव पर्यवेक्षकों, उपमंडल अधिकारियों और तहसीलदारों से मिली रिपोर्ट का अध्ययन करने तथा दस्तावेजों और वीडियो टेप देखने के बाद वहां समूची चुनाव प्रक्रिया को रद्द करने का निर्णय किया है.’
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, नासिक के उमराने गांव के पदों के लिए दो करोड़ रुपये और नंदूरबार के खोंडामली गांव के पदों की बोली 42 लाख रुपये लगाई गई थी.
इंडियन एक्सप्रेस ने पुणे जिले के तीन खेड़ तालुका के तीन ग्राम पंचायतों- मोइ, कुरुली और कुडे बद्रूक में देखा कि सभी पंचायत सदस्य निर्विरोध चुने गए.
एक ग्राम पंचायत में सामान्य तौर पर नौ से 18 सदस्य होते हैं जो कि गांव की जनसंख्या और उसके आकार पर निर्भर करता है.
इसके साथ ही तीनों ग्राम पंचायतों में गांववालों ने स्वीकार किया कि वे आम सहमति वाले उम्मीदवार के लिए काम करते हैं. कई मामलों में यह नीलामी द्वारा चुनावी प्रक्रिया को खत्म करने की तरह है.
उदाहरण के लिए मोइ गांव के किरण गावरे निर्विरोध जीतने वाले हैं. उन्होंने दावा किया, ‘व्यापक सार्वजनिक परामर्शों के माध्यम से हम निर्विरोध उम्मीदवारों को प्राप्त करने में कामयाब रहे. यह तय किया गया था कि चुनाव में खर्च होने वाले धन को गांव में एक मंदिर के निर्माण में योगदान दिया जाएगा.’
हालांकि, उन्होंने इस सवाल पर कोई टिप्पणी करने से इनकार कर दिया कि उनके नामांकन का खर्च किसने दिया.
इसी तरह, पुणे जिले के 746 ग्राम पंचायतों में से कम से कम 81 में हर सीट पर केवल एक उम्मीदवार होता है.
नंदूरबार के 87 ग्राम पंचायतों में से 22 पर सभी ग्राम पंचायत सदस्य निर्विरोध जीतने वाले हैं. बीड जिले में 129 ग्राम पंचायतों में से 18 के विजेता तय हो चुके हैं. जबकि कोल्हापुर के 433 में से 47 में विजेता तय हो चुके हैं. लातुर में 401 ग्राम पंचायतों में से 25 के विजेता तय हो चुके हैं.
ऐसी भी चर्चा है कि सीटों की नीलामी हो रही है या उन्हें पैसे से खरीदा जा रहा है.
बीते 4 जनवरी को मदन ने इन नीलामी के वीडियो और मीडिया रिपोर्टों का संज्ञान लिया था औरइन घटनाओं को लोकतंत्र की भावना के विपरीत बताते हुए जिला कलेक्टरों को जांच करने का आदेश दिया था.
बुधवार को दो ग्राम पंचायतों में चुनाव रद्द करने की घोषणा करते हुए चुनाव आयोग ने कहा, ‘आयोग ने जिलाधिकारियों, चुनाव पर्यवेक्षकों, उपमंडल अधिकारियों और तहसीलदारों से मिली रिपोर्ट का अध्ययन करने तथा दस्तावेजों और वीडियो टेप देखने के बाद वहां समूची चुनाव प्रक्रिया को रद्द करने का निर्णय किया है. जिला कलेक्टरों को नीलामी में शामिल लोगों के खिलाफ आवश्यक कानूनी कार्रवाई करने के लिए निर्देशित किया जाता है.’
हालांकि, कई मामलों में नीलामी की वास्तविक प्रक्रिया पर्दे के पीछे होती है. नंदूरबार जिला अधिकारी राजेंद्र भरुद ने पाया कि नीलामी में शामिल होने वाले लोगों ने ग्राम पंचायत पद के लिए कभी नामांकन ही नहीं किया.
नांदेड़ के जिलाधिकारी डॉ. विपिन इथांकर ने भी चुनाव आयोग में ऐसी रिपोर्ट सौंपी.
नंदूरबार जिला अधिकारी राजेंद्र भरुद ने कहा, ‘ऐसा लगता है कि विजेता बोली लगाने वाले लोगों ने नामांकन दाखिल नहीं किया था. लेकिन हमने उनके खिलाफ आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन के मामले दर्ज किए हैं.’
सूत्रों ने कहा कि ऐसा इसलिए है क्योंकि नीलामी के विजेता सामान्य तौर पर खुद चुनाव नहीं लड़ते हैं बल्कि परिवार के सदस्यों या अन्य छद्म उम्मीदवारों को खड़ा कर देते हैं, जिससे प्रशासन को उन तक पहुंचने में मुश्किल आती है.
नांदेड़ से शिवसेना नेता प्रह्लाद इंगोल भी ग्राम पंचायत चुनाव लड़ना चाहते थे लेकिन पैसे का जुगाड़ नहीं कर सके.
उन्होंने कहा, ‘काम करने का ढंग सरल है. गांव में कुछ प्रभावशाली आवाज़ें उम्मीदवारों को बुलाती हैं और उन्हें एक आम कार्य के लिए पैसे देने के लिए कहती हैं. यह एक मंदिर के निर्माण या एक स्कूल के विस्तार के लिए हो सकता है और आमतौर पर ऐसे खर्च किसी भी सरकारी योजनाओं के अंतर्गत नहीं आते हैं. सहमति जताने वालों को विश्वास में लिया जाता है और जो कार्य के लिए अधिकतम धन देता है, उसे चुनाव लड़ने के लिए हरी झंडी दी जाती है. दूसरों को चुपचाप मैनेज कर लिया जाता है.’
जमीनी लोकतंत्र के लिए काम करने वाले एक मुंबई स्थित संगठन महिला राजसत्ता अभियान को चलाने वाले भीम रस्कर ने कहा, ‘74 वें संशोधन के बाद से ग्राम पंचायतों को उन फंड्स तक पहुंच मिली है जो पहले जिला परिषद या पंचायत समितियों द्वारा नियंत्रित थे. यह कोई आश्चर्य नहीं है कि पंचायत चुनावों पर अब इतना ध्यान जाता है.’
रस्कर ने कहा कि उन्हें खुद कम से कम 16 शिकायतें पंचायत सीटों के लिए खुली नीलामी को लेकर मिलीं.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)